संदर्भ:
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2000 के बाद से दो-तिहाई देशों में वेतन असमानता में अत्यधिक गिरावट आई है।
अन्य संबधित जानकारियाँ
- यह रिपोर्ट ‘वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2024-25: क्या वैश्विक स्तर पर वेतन असमानता कम हो रही है ?’ नाम से जारी की गई है।
- यह वैश्विक स्तर पर, क्षेत्रवार और राष्ट्र के स्तर पर वेतन प्रवृत्तियों की एक वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत करता है।
मुख्य बिन्दु :
वैश्विक वास्तविक वेतन में वृद्धि
- वर्ष 2023 में, इसमें 1.8% की वृद्धि हुई थी जबकि वर्ष 2024 के अनुमान में 2.7% की वृद्धि को दर्शाया गया।
क्षेत्रीय अंतर:
- वर्ष 2023 में, उभरती हुई G-20 अर्थव्यवस्थाओं के वास्तविक वेतन में 6.0% की वृद्धि देखी गयी।
- वर्ष 2023 में, विकसित G-20 अर्थव्यवस्थाओं के वास्तविक वेतन में 0.5% की गिरावट देखी गई।
वैश्विक स्तर पर वेतन असमानता में कमी
- इसके अनुसार, औसतन 0.5 से 1.7% की वार्षिक दर से कमी आई है।
क्षेत्रीय अंतर
- निम्न आय वाले राष्ट्र: इसके अनुसार, वेतन असमानता में अप्रत्याशित कमी आई है। इन देशों में वार्षिक स्तर पर 3.2% से 9.6% तक की कमी आई है।
समृद्ध राष्ट्र: उच्च और उच्च-मध्यम आय वाले देशों में, वेतन असमानता में कमी की दर धीमी रही। इन देशों में वार्षिक स्तर पर 0.3% से 1.3% तक की कमी आई है। दीर्घकालिक वेतन असमानताएँ
- सबसे कम वेतन पाने वाले 10% श्रमिक वैश्विक वेतन बिल का केवल 0.5% आय अर्जित करते हैं, जबकि सबसे अधिक वेतन पाने वाले 10% श्रमिक लगभग 38% ही आय सृजन कर पाते हैं।
- उच्च वेतन पाने वालों में, निम्न वेतन पाने वालों की तुलना में वेतन असमानता की दर में अधिक कमी देखी गई।
- निम्न आय वाले देशों में, वेतन असमानता सबसे अधिक है, यहाँ 22% वेतन श्रमिकों को कम वेतन पाने वालों की श्रेणी में रखा गया है।
उत्पादकता और वेतन के बीच वियोजन
- वर्ष 1999 से वर्ष 2024 के बीच उच्च आय वाले देशों में उत्पादकता में 29% की वृद्धि के बावजूद, वास्तविक वेतन में केवल 15% की वृद्धि हुई है, जो उत्पादकता लाभ को श्रमिकों के साथ समान रूप से साझा करने में विफलता को रेखांकित करता है।
न्यूनतम वेतन समायोजन
- वर्ष 2022 में, लगभग 60% देशों ने अपने न्यूनतम वेतन को समायोजित किया, किंतु इनमें से केवल 25% वृद्धि ही मुद्रास्फीति के अनुरूप थी।
- वर्ष 2023 में, 55% देशों के न्यूनतम वेतन में वास्तविक वृद्धि देखी गई, हालाँकि कई देशों ने पिछली वर्ष की कमी की पूरी तरह से भरपाई नहीं की।
दीर्घकालिक लैंगिक वेतन में अंतर
- महिलाएँ, विशेषकर निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में, अनौपचारिक, अनिश्चित और कम वेतन वाले कार्यों में अत्यधिक प्रतिनिधित्व के कारण वेतन असमानता से असमान रूप से प्रभावित रहती हैं।
भारत की स्थिति
- वर्ष 2008 से वर्ष 2018 के बीच, भारत में कम वेतन वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी में औसतन 6.3% की वार्षिक दर से कमी आई है, जबकि कम वेतन या बिना वेतन वाले श्रमिकों में 12.7% की कमी आई है।
- संयुक्त रूप से, दोनों श्रेणियों में 10 वर्षों में 11.1% की गिरावट आई है।
- भारत में औसत प्रति घंटा वेतन के 50% से कम वेतन पाने वाले मज़दूरों की हिस्सेदारी 9.5% है। वही दूसरी ओर, पाकिस्तान (9.4%), नेपाल (10.5%), बांग्लादेश (11.2%), भूटान (13.7%), तथा श्रीलंका (25.9%) में यह दर काफी अधिक है।
पाल्मा अनुपात (Palma Ratio)
- इस रिपोर्ट में वेतन असमानता को मापने के लिए पाल्मा अनुपात का उपयोग किया गया है।
- इसकी गणना सबसे अमीर 10% को प्राप्त हिस्से को सबसे गरीब 40% के हिस्से से विभाजित करके की जाती है।
- इसका अनुपात जितना कम होगा, असमानता उतनी ही कम होगी।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)
- यह सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और श्रम अधिकारों को बढ़ावा देने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- वर्ष 1919 में, प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाले वर्साय की संधि के माध्यम से इसका गठन किया गया है।
- वर्ष 1946 में, यह संयुक्त राष्ट्र की पहली विशेष एजेंसी बनी।
- इसकी त्रिपक्षीय संरचना श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकारों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने के साथ-साथ सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए उचित कार्य को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान करती है।