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सामान्य अध्ययन-2: भारतीय संविधान — ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं मूल संरचना।
संदर्भ:
भारत 25 जून, 2025 को राष्ट्रीय आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है। 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया था।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह भारत के इतिहास में तीसरा राष्ट्रीय आपातकाल था। पहले दो आपातकाल 1962 (चीन युद्ध) और 1971 (पाकिस्तान युद्ध) के दौरान लगाए गए थे।
- तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारत की सुरक्षा को आंतरिक अशांति से खतरे का हवाला देते हुए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी।
- 1975 की आपातकाल अवधि में सत्ता के दुरुपयोग की जाँच के लिए शाह आयोग का गठन मई 1977 में किया गया था।
- इस अवधि में आंतरिक सुरक्षा संधारण अधिनियम (MISA) लागू किया गया, जो दमनकारी था।
- नागरिकों के मौलिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर निलंबन, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, और प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई।
आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions)
- संविधान का भाग XVIII (अनुच्छेद 352 से 360) तक आपातकालीन प्रावधानों से संबंधित है। ये प्रावधान केन्द्र सरकार को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
- इन प्रावधानों को असामान्य परिस्थितियों में देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, सुरक्षा और लोकतंत्र की रक्षा हेतु जोड़ा गया है।
संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का उल्लेख है:
- राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency)
- राज्य आपातकाल / संवैधानिक संकट (President’s Rule)
- वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency)
राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा:
- अनुच्छेद 352 के तहत, यदि युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत की सुरक्षा को खतरा हो, तो राष्ट्रपति वास्तविक घटना से पहले भी राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं, यदि आसन्न खतरा मौजूद हो।
- 38वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 राष्ट्रपति को एक से अधिक आपातकाल घोषणाओं की अनुमति देता है, भले ही एक पहले से लागू हो।
- 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978 ने “आंतरिक अशांति” शब्द को हटाकर “सशस्त्र विद्रोह” जोड़ा, ताकि 1975 की तरह इस प्रावधान का दुरुपयोग न हो सके।
- यदि आपातकाल युद्ध या बाहरी आक्रमण के आधार पर है, तो इसे बाहरी आपातकाल कहा जाता है।
- यदि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर है, तो इसे आंतरिक आपातकाल कहा जाता है।
- आपातकाल पूरे देश या किसी विशेष भाग में लागू किया जा सकता है।
- 42वाँ संशोधन (1976) ने राष्ट्रपति को किसी सीमित क्षेत्र में ही आपातकाल लागू करने का अधिकार प्रदान किया।
- 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कैबिनेट से परामर्श किए बिना आपातकाल घोषित किया था; 44वाँ संशोधन अब अनिवार्य बनाता है कि राष्ट्रपति को आपातकाल घोषित करने से पूर्व कैबिनेट की सिफारिश आवश्यक है।
- 38वाँ संशोधन (1975) में आपातकाल की न्यायिक समीक्षा को समाप्त कर दिया गया था, जिसे बाद में 44वें संशोधन (1978) द्वारा हटाया गया।
राष्ट्रीय आपातकाल के परिणाम:
1. केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रभाव:
- कार्यपालिका पर प्रभाव: केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश दे सकती है कि वे अपने कार्यकारी अधिकारों का प्रयोग किस प्रकार करें।
- विधायिका पर प्रभाव: संसद राज्य सूची में भी कानून बना सकती है। राज्य विधानसभाएँ कार्य करती रहती हैं, लेकिन उनकी शक्ति प्रभावहीन हो जाती है।
- वित्तीय संबंध पर प्रभाव: राष्ट्रपति केंद्र-राज्य वित्तीय वितरण में परिवर्तन कर सकते हैं। यह व्यवस्था आपातकाल समाप्त होने के बाद समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष तक लागू रहती है और संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है।
2. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं पर प्रभाव:
- संसद, लोकसभा की अवधि एक वर्ष तक बढ़ा सकती है, परंतु आपातकाल समाप्ति के छह महीने के भीतर इसे समाप्त करना आवश्यक है।
- राज्य विधानसभाओं की अवधि भी एक वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, लेकिन वह भी आपातकाल समाप्ति के छह महीने के भीतर समाप्त होनी चाहिए।
3. मौलिक अधिकारों पर प्रभाव:
- अनुच्छेद 358: आपातकाल घोषित होने पर अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार स्वतः निलंबित हो जाते हैं।
- अनुच्छेद 359: राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे आपातकाल की अवधि में मौलिक अधिकारों के न्यायालयीय प्रवर्तन को निलंबित कर सकते हैं।