संदर्भ:
हाल ही में, कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP29) का 29वां सत्र अज़रबैजान के बाकू में आयोजित किया गया।
अन्य संबंधित जानकारी:
विषय: “हरित विश्व के लिए एकजुटता”
मुख्य क्षेत्र:
- पेरिस समझौते के अंतर्गत प्रतिबद्धताओं को मजबूत करना।
- समतामूलक जलवायु वित्त, शमन रणनीतियाँ और अनुकूलन उपाय।
COP29 के मुख्य परिणाम:
(I) जलवायु वित्त और NCQG के बीच स्पष्ट अंतर
जलवायु वित्त: जलवायु वित्त में तकनीकी रूप से प्रत्येक डॉलर शामिल होता है जो ‘जलवायु’ के किसी पहलू से दूर-दूर तक जुड़ा होता है और इसलिए इसमें लाभ कमाने वाले व्यावसायिक निवेश भी शामिल होते हैं।
- पेरिस समझौते के अनुसार, विकसित देशों ने वर्ष 2021-22 में 115 बिलियन डॉलर जुटाए और हस्तांतरित किए हैं (हालांकि सभी देश इससे सहमत नहीं हैं)। लेकिन, समझौते के अनुसार, वर्ष 2025 में 100 बिलियन डॉलर से अधिक के नए लक्ष्य पर सहमति होनी थी।
जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG): यह उस धन को संदर्भित करता है जो विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को उनके जलवायु-संबंधी लक्ष्यों/उद्देश्यों को पूरा करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने में मदद के लिए दिया जाएगा।
- यह विकासशील देशों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए जलवायु वित्त जुटाने का वार्षिक लक्ष्य है।
- वर्ष 2035 तक 1.3 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का व्यापक लक्ष्य अपनाया गया, लेकिन केवल 300 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष विकसित देशों से अनुदान और कम ब्याज वाले ऋण के लिए निर्धारित किया गया ताकि विकासशील देशों को कम कार्बन अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तन करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए तैयार होने में सहायता मिल सके।
भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत वर्तमान स्वरूप में लक्ष्य प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है। जो राशि जुटाने का प्रस्ताव है, वह बेहद कम है। यह देश के लिए आवश्यक अनुकूल जलवायु कार्रवाई को सक्षम करने में अपर्याप्त है।
(II) कार्बन ट्रेडिंग के लिए नए नियम
- यह विकसित, धनी और उच्च उत्सर्जन वाले देशों को विकासशील देशों से कार्बन क्रेडिट (ऑफसेट) खरीदने की अनुमति देता है।
- यह पहल, जिसे पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के रूप में जाना जाता है, जो प्रत्यक्षरूप से राष्ट्रों के मध्य कार्बन व्यापार और संयुक्त राष्ट्र-विनियमित बाज़ार दोनों के लिए रूपरेखा निर्धारित करती है।
- यह विकासशील देशों में एक महत्वपूर्ण निवेश के रूप में कार्य कर सकता है, जहां पुनर्वनीकरण, कार्बन सिंक की सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन जैसी गतिविधियों के माध्यम से कई कार्बन क्रेडिट का सृजन करता हैं।
(III) बाकू कार्ययोजना
- COP29 सम्मेल में जलवायु कार्रवाई में स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधित्व को सुदृढ़ करने के लिए बाकू कार्ययोजना को अपनाया गया।
- यह निम्न तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है – सहभागिता के लिए क्षमता निर्माण, ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना तथा जलवायु नीतियों और कार्यों में विविध मूल्यों एवं ज्ञान प्रणालियों को शामिल करना।
(IV) बाकू पारदर्शिता मंच
- यह COP29 प्रेसीडेंसी द्वारा उन्नत पारदर्शिता ढांचे (ETF) में भागीदारी बढ़ाने और विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए मौजूदा पारदर्शिता सहायता को सक्षम बनाने की एक पहल है।
COP29 के दौरान शुरू किए गए विभिन्न पहल:
(I) जैविक अपशिष्ट से मीथेन को कम करने की घोषणा
- अपने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता के अनुसार, कुछ हस्ताक्षरकर्ताओं ने जैविक अपशिष्ट से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए क्षेत्रीय लक्ष्य निर्धारित किया है।
- हस्ताक्षरकर्ता देश भी इन मीथेन न्यूनीकरण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नीतियों और रूपरेखा को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
- उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट (2024) के अनुसार, कृषि और जीवाश्म ईंधन जैविक अपशिष्ट को मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है।
- इस समझौते पर करीब 35 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। भारत ने इस प्रतिबद्धता पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
(II) किसानों के लिए बाकू हार्मोनिया जलवायु पहल
- यह संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि (UN-FAO) द्वारा सतत परिवर्तन हेतु खाद्य एवं कृषि (FAST) साझेदारी के साथ शुरु किया गया एक समूहक(एग्रीगेटर) मंच है।
- उद्देश्य: कृषि खाद्य प्रणालियों को जलवायु प्रतिरोधी मॉडल में बदलने में किसानों की सहायता करना। इसका उद्देश्य महिलाओं और युवाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ निवेश को बढ़ावा देना और किसानों को सशक्त बनाना भी है।
(III) जलवायु वित्त कार्रवाई कोष (CFAF)
- इसका पूंजीकरण जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों और कंपनियों के योगदान से किया जाएगा।
- यह योगदान स्वैच्छिक होगा जिससे जीवाश्म ईंधन उत्पादक कम्पनियां और देश अपने उत्पादन की मात्रा के आधार पर या एक निश्चित वार्षिक राशि के आधार पर योगदान कर सकेंगे।
- इसके अलावा, निवेश से उत्पन्न राजस्व का 20% रैपिड रिस्पांस फंडिंग फैसिलिटी (2R2F) को आवंटित किया जाएगा। यह जलवायु से संबंधित तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए अत्यधिक अनुदान-आधारित सहायता और रियायती दरें प्रदान करता है।
- एकत्रित की गई इन धनराशियों को समान रूप से आवंटित किया जाएगा: 50% विकासशील देशों में जलवायु-संबंधी परियोजनाओं को सहायता प्रदान की जाएगी। 50% विकासशील देशों में उनकी संबंधित राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं के कार्यान्वयन में सहायता प्रदान की जाएगी।
- यह निधि तब चलायमान हो जाती है जब इसकी न्यूनतम राशि 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाती है।
(IV) वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन (UAE द्वारा शुरू किया गया)
- यह गठबंधन सर्वोत्तम कार्यपद्धतियों के संकलन और प्रसार पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें अफ्रीकी देशों की सहायता पर विशेष बल दिया जाएगा।
- गठबंधन का उद्देश्य रणनीतिक सार्वजनिक-निजी साझेदारी को प्रोत्साहित करना तथा ऊर्जा दक्षता पहलों में निवेश को बढ़ावा देना है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक ऊर्जा दक्षता को दोगुना करना तथा उत्सर्जन में कमी लाना है।
COP29 में भारत की भूमिका:
- ग्लोबल साउथ के देश एक ओर शमन के लिए जलवायु कार्रवाईयों के कारण भारी वित्तीय लागत वहन कर रहे हैं और दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान और क्षति का वहन कर रहे हैं।
- भारत ने विकसित देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में आने वाली बाधाओं को दूर करने, सार्वजनिक जलवायु वित्त को बढ़ाने तथा जलवायु कार्रवाई के नाम पर अनुचित व्यापार उपायों से बचने का आह्वान किया।
- हाल ही में, भारत ने अपने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान लक्ष्यों, जिसके तहत वर्ष 2030 तक कार्बन तीव्रता में 45% की कमी लाने तथा नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाकर 50% करने का लक्ष्य रखा गया है को अद्यतन किया है।
- भारत ने विकसित देशों से न्यायसंगत वित्तीय सहायता पर भी बल दिया है तथा इस बात पर बल दिया है कि जलवायु वित्तरियायती वित्तपोषण, गैर-ऋण व्युत्पन्नों और अनुदानों से आना चाहिए।
- पेरिस समझौते के अनुसार, भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है। यह लक्ष्य देश के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि वह अपनी विकासात्मक गतिविधियों को स्थिरता लक्ष्यों के साथ संतुलित करने का प्रयास कर सके।
- भारत अक्षय ऊर्जा पहल में वैश्विक अग्रमी देशों में से एक है जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है। इसके अलावा भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की भी समर्थन करता है जो विश्व में सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देता है।
- भारत ने लाइफ (LiFE) पहल पर बल दिया जो वैश्विक स्तर पर सतत उपभोग प्रणाली और पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली को प्रोत्साहित करती है।