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संदर्भ: 

हाल ही में भारत ने हिंद महासागर के कार्ल्सबर्ग रिज में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड भंडार की खोज के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) से अन्वेषण लाइसेंस प्राप्त किया।

भारत द्वारा समुद्र तल अन्वेषण का विकासक्रम

  • मार्च 2002:  भारत ने मध्य हिंद महासागर बेसिन में खनिज नोड्यूल्स के लिए ISA के साथ अपने पहले अन्वेषण अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। इस अनुबंध के साथ ही देश गहरे समुद्र में खनिज अधिकारों के आधार पर अन्वेषण के क्षेत्र में प्रवेश कर गया है। यह अनुबंध शुरू में 15 वर्षों के लिए वैध था, जिसे दो बार बढ़ाया गया और अब यह 24 मार्च, 2027 को समाप्त होगा।
  • सितम्बर 2016:  भारत ने हिंद महासागर कटक में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड की खोज के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण के साथ दूसरे अनुबंध पर हस्ताक्षर किया, जो सितंबर 2031 तक वैध है।
  • जनवरी 2024: भारत ने मध्य हिंद महासागर में कार्ल्सबर्ग रिज और अफानासी-निकितिन सीमाउंट (ANS) में अतिरिक्त अन्वेषण अधिकारों के लिए ISA में आवेदन किया है। श्रीलंका के परस्पर विरोधी दावों के कारण ANS अन्वेषण अधिकार लंबित हैं।
  • सितम्बर 2025:  भारत ने कार्ल्सबर्ग रिज क्षेत्र में पॉलीमेटेलिक  सल्फाइड की खोज के लिए ISA से एक ऐतिहासिक और प्रथम वैश्विक लाइसेंस प्राप्त कर लिया, जिससे भारत को अब भारतीय और अरब टेक्टोनिक प्लेटों की सीमा से लगे 3,00,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अन्वेषण का अधिकार मिल गया है।

सामरिक और आर्थिक महत्व

  • महत्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा: लाइसेंस मैंगनीज, कोबाल्ट, निकल और तांबे जैसी महत्वपूर्ण धातुओं तक रणनीतिक पहुंच प्रदान करता है।
  • निर्भरता कम करना: बढ़ती वैश्विक मांग के साथ, सुनिश्चित पहुंच से भारत की आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
  • भू-राजनीतिक और सामरिक लाभ: गहरे समुद्र में खनिज अधिकार सामरिक प्रतिद्वंद्विता का एक नया क्षेत्र हैं। भारत का ISA लाइसेंस संसाधनों को सुरक्षित करेगा, प्रतिद्वंद्वी दावों का मुकाबला करेगा और उसकी समुद्री शक्ति की स्थिति में सुधार लाएगा।
  • भविष्य के लिए संसाधन सुरक्षा: अन्वेषण लाइसेंस से भारत भूवैज्ञानिक और पर्यावरणीय डेटासेट तैयार कर सकता है, जिससे निष्कर्षण की तैयारी व्यवहार्य हो जाती है।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA)

  • आईएसए एक स्वायत्त संगठन है जिसकी स्थापना 16 नवंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) द्वारा की गई थी।
  • क्षेत्र में समुद्र तल खनिज अन्वेषण और दोहन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण के साथ अनुबंध करना अनिवार्य है, क्योंकि राष्ट्रों को राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से बाहर उच्च समुद्र में काम करने के लिए ISA की मंजूरी लेनी होती है।
  • अब तक भारतीय, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों में 1.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक महासागरीय क्षेत्र के लिए 29 अन्वेषण अनुबंध किए जा चुके हैं।
  • इस संगठन का मुख्यालय किंग्स्टन, जमैका में है और भारत तथा यूरोपीय संघ सहित 168 देश इसके सदस्य हैं।

 कार्ल्सबर्ग रिज

  • कार्ल्सबर्ग रिज एक मध्य-महासागरीय कटक है जो 3,00,000 वर्ग किमी में फैला है और हिंद महासागर में, विशेष रूप से अरब सागर और उत्तर-पश्चिम हिंद महासागर में स्थित है।
  • कार्ल्सबर्ग रिज, मध्य भारतीय कटक का उत्तरी भाग है। मध्य भारतीय कटक, अफ्रीकी प्लेट और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के बीच एक अपसारी विवर्तनिक प्लेट सीमा है, जो हिंद महासागर के पश्चिमी क्षेत्रों से होकर गुजरती है।
  • यह रिज दक्षिण रॉड्रिग्स द्वीप के निकट एक ट्रिपल पॉइंट जंक्शन (रॉड्रिग्स ट्रिपल पॉइंट) से उत्तर की ओर ओवेन फ्रैक्चर ज़ोन के एक जंक्शन तक फैली हुई है।

पॉलीमेटेलिक सल्फर नोड्यूल्स

  • ये खनिज निक्षेप हैं जो समुद्र तल पर हाइड्रोथर्मल वेंट्स के आसपास बनते हैं, जहाँ गर्म, धातु-समृद्ध द्रव्य ठंडे समुद्री जल में मिल जाते हैं।
  • ये नोड्यूल्स गहरे समुद्र में पाए जाने वाले चट्टानों के समूह हैं और इनमें मैंगनीज, कोबाल्ट, निकल और तांबा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • ये खनिज मुख्य रूप से ज्वालामुखी और विवर्तनिक गतिविधि के कारण मध्य-महासागरीय कटकों, बैक-आर्क बेसिन (back-arc basins) और समुद्री टीलों (seamounts) पर पाए जाते हैं।

स्रोत:
The Hindu
Indian Defense News

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