संदर्भ:
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस प्रतिवर्ष 12 सितंबर को मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस के विवरण
- संयुक्त राष्ट्र कार्यालय इस वर्ष का विषय “दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से एक बेहतर कल” के साथ अंतर्राष्ट्रीय दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस को बढ़ावा दे रहा है,
- मूलतः यह दिवस 19 दिसंबर को मनाया जाता था। वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस की तिथि को बदलकर 12 सितंबर कर दिया गया।
- इसकी स्थापना के बाद से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपने प्रस्ताव 58/220 के तहत यह दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
- प्रस्ताव 58/220 विकासशील देशों के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर जोर देता है।
- यह तिथि विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने और कार्यान्वित करने के लिए वर्ष 1978 में ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (Buenos Aires Plan of Action-BAPA) को अपनाए जाने की याद दिलाती है।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग का विकास
- “दक्षिण” शब्द का तात्पर्य प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आधार पर अपेक्षाकृत कम विकसित [उत्तर (विकसित देश)] और विकासशील देशों से है।
- यह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और तकनीकी क्षेत्रों में दक्षिण के देशों के बीच सहयोग और आदान-प्रदान के लिए एक व्यापक ढांचा है।
विभिन्न स्तरों पर दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने के लिए निम्न कई संस्थाएँ स्थापित की गई हैं:
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (1961)
- ग्रुप ऑफ़ 77 (1964)
- आसियान (1967)
- आईबीएसए (2003)
- ब्रिक्स (2009)
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC) का गठन वर्ष 1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा वैश्विक और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली-व्यापी आधार पर दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग पर जोर देने और समन्वय के लिए की गई थी। अपनी स्थापना के बाद से, इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा संचालित किया गया है।
- त्रिकोणीय सहयोग में दो या दो से अधिक विकासशील देशों के बीच दक्षिण-संचालित साझेदारी शामिल है, जिसे विकास सहयोग कार्यक्रमों और परियोजनाओं को लागू करने के लिए एक विकसित देश/या बहुपक्षीय संगठन द्वारा समर्थन दिया जाता है।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग के उद्देश्य
- विकासशील देशों की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और मजबूत करना।
- विकासशील देशों के बीच सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और मजबूत करना।
- सबसे कम विकसित देशों, स्थल-रुद्ध विकासशील देशों, छोटे द्वीपीय विकासशील राष्ट्रों तथा प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य संकटों से सबसे अधिक प्रभावित देशों की समस्याओं और आवश्यकताओं को पहचानना तथा उनका समाधान करना।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग कई अलग-अलग रूप ले सकता है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं:
- अनुसंधान साझेदारी एवं तकनीकी सहायता और क्षमता विकास गतिविधियों सहित ज्ञान-साझाकरण गतिविधियाँ
- वस्तु या नकद संसाधनों (जुड़वां साझेदारी सहित) का जुटाव
- भुखमरी समाप्त करने के लिए नीति पर जोर
- सामूहिक अंतर और अंतर-क्षेत्रीय कार्रवाई तथा क्षेत्रीय एकीकरण के लिए सहायता
- प्रदर्शन स्थलों का समर्थन के साथ अध्ययन दौरे और सहकर्मी शिक्षण कार्यक्रम