IN-SPACe ने ‘अंतरिक्ष प्रयोगशाला’ स्थापित करने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किए

संदर्भ: हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने पूरे भारत में चयनित शैक्षणिक संस्थानों में ‘अंतरिक्ष प्रयोगशाला’ स्थापित करने हेतु ‘प्रस्ताव के लिए अनुरोध’ (RfP) जारी किया है।

अन्य संबंधित जानकारी

• इस योजना का उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबंधित पाठ्यक्रम कर रहे छात्रों को व्यावहारिक प्रशिक्षण और वास्तविक अनुभव प्रदान करना है।  

• IN-SPACe प्रत्येक संस्थान को अधिकतम ₹5 करोड़ तक, कुल परियोजना लागत का 75 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता प्रदान करेगा, जो निर्धारित माइलस्टोन के आधार पर जारी की जाएगी। 

  • चयन प्रक्रिया दो चरणों में पूरी की जाएगी। संस्थानों की पहले RfP में उल्लिखित पात्रता मानदंडों के आधार पर स्क्रीनिंग की जाएगी। इसके बाद, शॉर्टलिस्ट किए गए आवेदकों का मूल्यांकन और रैंकिंग एक अधिकार प्राप्त समिति द्वारा की जाएगी, जिसके बाद जोन-वार अंतिम चयन किया जाएगा।

• इस योजना के तहत देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों (जोन) से चरणबद्ध तरीके से सात शैक्षणिक संस्थानों तक का चयन किया जाएगा। 

• यह क्षेत्रीय (जोन) अप्रोच संतुलित क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र (जोन) में एक प्रयोगशाला प्रस्तावित है।

  • ये प्रयोगशालाएं देशभर में फैले शैक्षणिक संस्थानों में अंतरिक्ष तकनीक के पाठ्यक्रम पढ़ रहे छात्रों को व्यावहारिक प्रशिक्षण और अनुभव प्रदान करेंगी।

• यह सुविधा संबंधित क्षेत्रों  के भीतर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए भी सुलभ होगी।

• यह कार्यक्रम उद्योग और शिक्षा जगत के बीच सहयोग को मजबूत करने तथा व्यावहारिक अनुसंधान और नवाचार का समर्थन करने के लिए तैयार किया गया है।

IN-SPACe 

• भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) एक सिंगल-विंडो, स्वायत्त नोडल एजेंसी है, जिसे 2020 में भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (DOS) के अंतर्गत स्थापित किया गया था।

• इसका प्राथमिक मिशन भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना, सक्षम बनाना और विनियमित करना है। 

जोखिम-आधारित जमा बीमा प्रीमियम फ्रेमवर्क

संदर्भ: हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के केंद्रीय निदेशक मंडल ने हैदराबाद, तेलंगाना में हुई अपनी बैठक में बैंकों के लिए एक जोखिम-आधारित जमा बीमा फ्रेमवर्क को मंजूरी दी है।

अन्य संबंधित जानकारी 

• यह निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की हैदराबाद में आयोजित 620वीं बैठक में लिया गया।

• यह मंजूरी बैंकों के लिए मौजूदा समान-दर (flat-rate) प्रीमियम प्रणाली से जोखिम-आधारित जमा बीमा फ्रेमवर्क में संक्रमण की अनुमति देती है। 

• इस फ्रेमवर्क को जल्द ही औपचारिक रूप से अधिसूचित किया जाएगा और इसे अगले वित्तीय वर्ष से प्रभावी करने की योजना है।

जोखिम-आधारित जमा बीमा फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएं  

• यह प्रणाली बैंकों से उनके जोखिम प्रोफाइल के आधार पर बीमा प्रीमियम वसूलती है, न कि एक समान दर पर।

• यह फ्रेमवर्क 1962 से निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (DICGC) द्वारा संचालित लंबे समय से चले आ रहे ‘फ्लैट प्रीमियम मॉडल’ का स्थान लेगा।

• इस मॉडल के तहत, आर्थिक रूप से मजबूत और बेहतर प्रबंधित बैंकों को कम प्रीमियम देना होगा, जबकि जोखिम वाले बैंकों को अधिक प्रीमियम देना होगा। 

• यह अप्रोच जमा बीमा सुरक्षा के तहत अत्यधिक जोखिम लेने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करके नैतिक जोखिम को कम करता है।

• यह फ्रेमवर्क निष्पक्षता को बढ़ावा देता है और यह सुनिश्चित करता है कि सुरक्षित बैंक, अधिक जोखिम वाले संस्थानों को सब्सिडी न दें।

• यह प्रणाली मौजूदा प्रीमियम दर 12 पैसे प्रति सौ रुपये (जमा पर) को ऊपरी सीमा के रूप में बरकरार रखेगी। 

• इस बदलाव का जमाकर्ताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि जमा बीमा कवरेज अभी भी प्रति जमाकर्ता प्रति बैंक 5 लाख रुपये पर सीमित है। 

• इस बीमा कवर के अंतर्गत बचत, चालू, सावधि और आवर्ती  जमा शामिल हैं, जिसमें मूलधन और अर्जित ब्याज दोनों शामिल हैं।

भारत और फ्रांस के बीच रक्षा विनिर्माण सहयोग

संदर्भ: भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग को और मजबूती प्रदान करते हुए, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड (IOL) और फ्रांसीसी कंपनी सैफ्रोन इलेक्ट्रॉनिक्स एंड डिफेंस ने एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

अन्य संबंधित जानकारी

• इस समझौते में SIGMA 30N डिजिटल रिंग लेजर गायरो इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम और CM3-MR डायरेक्ट फायरिंग साइट शामिल हैं।

• यह साझेदारी भारत में इन दोनों प्रणालियों के स्थानीय विनिर्माण, अंतिम असेंबली, परीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण की सुविधा प्रदान करती है।

• यह सहयोग जनवरी 2024 में दोनों कंपनियों के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) पर आधारित है।

समझौते की मुख्य विशेषताएँ 

• इस साझेदारी के तहत, IOL इन प्रणालियों के निर्माण, अंतिम असेंबली, परीक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण और पूर्ण जीवन-चक्र सहायता के लिए जिम्मेदार होगा और यह सुनिश्चित करेगा कि ये प्रणालियाँ भारतीय सेना की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करें।

• इस सहयोग के तहत निर्मित की जाने वाली प्रणालियों में शामिल हैं:

  • SIGMA 30N डिजिटल रिंग लेजर गायरो इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम, जिसका उपयोग आर्टिलरी गन, हवाई रक्षा प्रणालियों, मिसाइलों और रडार में किया जाता है।
  • CM3-MR डायरेक्ट फायरिंग साइट, जिसे विशेष रूप से आर्टिलरी गन और ड्रोन-रोधी प्रणालियों के लिए डिज़ाइन किया गया है।

समझौते का महत्त्व: 

• यह समझौता ‘मेक इन इंडिया’ के विजन के अनुरूप स्थानीय विनिर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा।

• यह साझेदारी भारत के रक्षा विनिर्माण इकोसिस्टम को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ थल सेना की युद्ध तत्परता और प्रदर्शन को बढ़ाने में योगदान देती है।

• यह नेविगेशन प्रणाली ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) संकेतों की अनुपस्थिति में भी स्वायत्त परिचालन क्षमता प्रदान करेगी।

• यह समझौता आयात पर निर्भरता कम करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टेक्नोलॉजी ट्रांसफर) को बढ़ावा देने में योगदान देता है।

DRDO और राष्ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी के बीच समझौता ज्ञापन

संदर्भ: हाल ही में, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और राष्ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी ने रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए अनुसंधान एवं विकास में सहयोग बढ़ाने हेतु एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।

अन्य संबंधित जानकारी

• इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण और ‘अमृत काल’ के दौरान ‘संपूर्ण-राष्ट्र दृष्टिकोण’ के अनुरूप, रक्षा और आंतरिक सुरक्षा प्रौद्योगिकियों में भारत की आत्मनिर्भरता को बल प्रदान करना है।

• समझौता ज्ञापन के तहत, दोनों संगठन संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं, पीएचडी और फेलोशिप कार्यक्रमों तथा सुरक्षा बलों के लिए विशेष प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में सहयोग करेंगे।

• इस सहयोग में उभरती परिचालन चुनौतियों, तकनीकी अंतरालों, भविष्य की जरूरतों और DRDO द्वारा विकसित प्रणालियों के जीवन-चक्र प्रबंधन पर अध्ययन करना भी शामिल होगा।

DRDO के बारे में 

• DRDO रक्षा मंत्रालय की अनुसंधान एवं विकास शाखा है, जो आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और तीनों सेनाओं (भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना) की आवश्यकताओं के अनुसार सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक प्रणालियों से लैस करने के लिए उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने पर केंद्रित है।

• इस संगठन का गठन 1958 में तत्कालीन कार्यरत तकनीकी विकास प्रतिष्ठानों (TDEs) के समामेलन (मिश्रण) से किया गया था।

• यह लगभग 50 प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है जो रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए कार्य कर रहे हैं।

कुट्टनाड के धान के खेतों में एल्युमीनियम का उच्च स्तर

संदर्भ: केरल का धान का कटोरे कहे जाने वाले कुट्टनाड के खेतों की मिट्टी का परीक्षण करने पर यहाँ के खेतों में  एल्युमीनियम की सांद्रता सामान्य से कहीं अधिक पाई गई है, जो फसलों और यहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

अन्य संबंधित जानकारी

• यह परीक्षण केरल कीट प्रबंधन केंद्र (KCPM) द्वारा किया गया था और केरल कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत धान अनुसंधान केंद्र, वैटिला में इसका परीक्षण किया गया।

• मिट्टी के नमूने कुट्टनाड और अपर कुट्टनाड के विभिन्न हिस्सों के 12 धान के खेतों से एकत्र किए गए थे और उन सभी में एल्युमीनियम की सांद्रता बहुत उच्च पाई गई।

• परीक्षण के परिणामों में एल्युमीनियम का स्तर 77.51 पार्ट्स प्रति मिलियन (ppm) से लेकर 334.10 ppm के बीच पाया गया।

  • उच्च अम्लता वाली मिट्टी में, एल्युमीनियम के साथ-साथ लौह भी इतनी अधिक मात्रा में मौजूद होता है जो पौधों के लिए हानिकारक (विषाक्त) होता है।

• यह धान की खेती के लिए निर्धारित 2 ppm की अनुमेय सीमा से लगभग 39 से 165 गुना अधिक है।

• इसका कारण मिट्टी की बढ़ती अम्लता है (pH मान 7 उदासीन होता है, 7 से अधिक क्षारीय और 7 से कम अम्लीय होता है)।

एल्युमीनियम के प्रभाव 

• मिट्टी का pH मान पाँच से कम होने पर एल्युमीनियम अधिक घुलनशील और विषाक्त हो जाता है, और pH में प्रत्येक एक इकाई की कमी आने के साथ इसकी उपलब्धता दस गुना बढ़ जाती है।

• एल्युमीनियम की अधिकता पौधों के जड़ तंत्र को नुकसान पहुँचाती है और फास्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए गंभीर बाधा बनती है।

• एल्युमीनियम का उच्च संदूषण “गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन” का संकेत होता है।

• इससे मिट्टी की उत्पादकता कम हो जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप धान की पैदावार में गिरावट आएगी और हजारों छोटे व सीमांत किसानों की आजीविका प्रभावित होगी।

कुट्टनाड के बारे में 

• कुट्टनाड एक मान्यता प्राप्त वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS) है, जिसे 2013 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा यह दर्जा दिया गया था।

• यह भारत के ऐसे केवल तीन स्थलों में से एक है; अन्य दो स्थल कश्मीर की केसर विरासत और ओडिशा की कोरापुट पारंपरिक कृषि हैं।

• कुट्टनाड भारत इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि यह भारत की एकमात्र ऐसी प्रणाली है जिसमें समुद्र तल से 1.2 से 3.0 मीटर (4 से 10 फीट) नीचे धान की खेती की जाती है।

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