एशियन सीड कांग्रेस 2025
संदर्भ:
हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने मुंबई में एशियन सीड कांग्रेस 2025 का शुभारंभ किया।
एशियन सीड कांग्रेस 2025 के बारे में

- 2025 की कांग्रेस का विषय “गुणवत्तापूर्ण बीजों के माध्यम से समृद्धि का बीज बोना” है।
- यह विषय खाद्य सुरक्षा, कृषि लचीलापन और आर्थिक विकास में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की भूमिका पर जोर देता है।
- यह कांग्रेस एशिया और प्रशांत बीज संघ (APSA) द्वारा भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) और राष्ट्रीय बीज संघ (NSAI) के सहयोग से 17–21 नवंबर, 2025 तक आयोजित की जा गई।
- एशिया और प्रशांत बीज संघ (APSA) दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय बीज संघ है, जिसकी स्थापना 1994 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन और विपणन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
- भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) एक R&D आधारित पौध विज्ञान उद्योग संघ है, जो देश में खाद्य, चारा और फाइबर के लिए उच्च उपज देने वाले गुणवत्तापूर्ण बीजों के उत्पादन में संलग्न है।
- भारतीय राष्ट्रीय बीज संघ (NSAI) भारतीय बीज उद्योग का प्रमुख प्रतिनिधि संगठन है। इसका उद्देश्य अनुसंधान-आधारित उद्योग का संवर्धन करना है, जो किसानों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करें।
- पहली एशियन सीड कांग्रेस 1994 में चियांग माई, थाईलैंड में आयोजित की गई थी और तब से यह प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है।
- भारत अब तक पांच बार अर्थात 1995 (नई दिल्ली), 2000 (बेंगलुरु), 2008 (हैदराबाद), और 2015 (गोवा) और 2025 (मुंबई) में एशियन सीड कांग्रेस का आयोजन कर चुका है।
उद्देश्य और महत्त्व
- यह कांग्रेस नेटवर्किंग, व्यापार विकास और सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच है।
- यह ज्ञान के आदान-प्रदान, तकनीकी चर्चाओं और नीति संवाद की सुविधा प्रदान करता है।
- यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के तेजी से विकसित हो रहे रणनीतिक बाजारों के साथ जुड़ाव को संभव बनाता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्मार्ट तकनीकी समाधान
संदर्भ:
हाल ही में गति शक्ति विश्वविद्यालय (GSV) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्मार्ट तकनीकी समाधान विकसित करने हेतु एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।
अन्य संबंधित जानकारी

- ऐसा माना जा रहा है कि इस सहयोग से स्वदेशी रक्षा प्रणालियों की स्थापना से जुड़े पहलुओं के लिए तकनीकी समाधान विकसित होंगे।
- यह समझौता ज्ञापन लॉजिस्टिक्स प्रबंधन, सामरिक-संचालनात्मक-रणनीतिक स्तर पर परिचालन लॉजिस्टिक्स के लिए अवधारणाओं के विश्लेषण और परिचालन लॉजिस्टिक्स योजनाओं के सत्यापन, चिप डिज़ाइन एवं हार्डवेयर सुरक्षा, तथा होमोमॉर्फिक/ब्लॉकचेन-आधारित एन्क्रिप्शन जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अध्ययन और अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देने का माध्यम बनेगा।
- यह परिचालन और सैन्य विज्ञान, लॉजिस्टिक्स प्रबंधन तथा तकनीकी अनुसंधान के क्षेत्रों में शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों की क्षमता विकसित करने पर केन्द्रित होगा।
गति शक्ति विश्वविद्यालय (GSV)
- GSV की स्थापना 2022 में केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम के तहत एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी।
- यह भारत सरकार के रेल मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
- यह परिवहन और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र पर केन्द्रित भारत का पहला विश्वविद्यालय है।
- विश्वविद्यालय रेल, राजमार्ग, बंदरगाह, उड्डयन, समुद्री परिवहन और शिपिंग सहित सभी प्रमुख परिवहन क्षेत्रों को कवर करता है।
अमेरिका के साथ भारत का पहला प्रमुख एलपीजी आयात समझौता
संदर्भ:
हाल ही में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री ने बताया कि भारतीय पीएसयू तेल कंपनियों ने 2026 के लिए एक वर्ष के संरचित अनुबंध के तहत अमेरिकी गल्फ कोस्ट से लगभग 2.2 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) एलपीजी आयात करने का समझौता किया।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह भारत के लिए अमेरिका के साथ पहला संरचित एलपीजी अनुबंध है और भारत के वार्षिक एलपीजी आयात का लगभग दस प्रतिशत है।
- इंडियन ऑइल, BPCL और HPCL की एक टीम ने जुलाई 2025 में अमेरिका का दौरा किया जहाँ उन्होंने मोंट बेलव्यू को बेंचमार्क मानते हुए प्रमुख अमेरिकी उत्पादकों के साथ बातचीत की।
- मोंट बेलव्यू बेंचमार्क प्राकृतिक गैस द्रव (NGLs), खासकर प्रोपेन और ब्यूटेन, के लिए वैश्विक मूल्य मानक हैं, जो टेक्सास के मोंट बेलव्यू में स्थित एक प्रमुख हब पर निर्धारित किए जाते हैं।
- सरकार ने उच्च वैश्विक कीमतों के बावजूद उज्ज्वला लाभार्थियों के लिए घरेलू एलपीजी की कीमतें कम रखी हैं और इसके लिए पर्याप्त सब्सिडी व्यय वहन किया है।
एलपीजी आयात समझौते के प्रमुख कारण:
- भारत को एक संरचित दीर्घकालिक एलपीजी आपूर्ति अनुबंध की आवश्यकता थी और चूँकि अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े और तेजी से उभरते एलपीजी बाजारों में से एक है और उसे स्थिर आयात स्रोतों की जरूरत है।
- भारत के एलपीजी आयात की घरेलू खपत में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है और एक विश्वसनीय आपूर्ति व्यवस्था राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करती है।
- यह अनुबंध भारत की एलपीजी स्रोत-रणनीति में एक महत्वपूर्ण विविधीकरण (Diversification) को दर्शाता है, क्योंकि भारत पारंपरिक निर्यातकों से आगे बढ़कर अपने आयात स्रोतों का विस्तार कर रहा है।
- भारत ने यह अनुबंध इसलिए भी किया क्योंकि पिछले वर्ष वैश्विक एलपीजी कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी हुई थी, और अमेरिका से पूर्वानुमेय एवं स्थिर आपूर्ति, कीमतों में उतार-चढ़ाव को प्रबंधित करने में मदद करेगी।
केंद्र की परमाणु ऊर्जा पहल में शामिल हुआ ‘महाराष्ट्र’
संदर्भ:
महाराष्ट्र केंद्र की परमाणु आधारित ऊर्जा उत्पादन पहल में शामिल होने वाला पहला राज्य बन गया है।
अन्य संबंधित जानकारी
- महागेनको (महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड) और भारत के परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) के बीच मुंबई में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुए।
- NPCIL, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, जो भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के डिज़ाइन, निर्माण, संचालन और कमीशनिंग के लिए जिम्मेदार है।
- इस समझौते का उद्देश्य महाराष्ट्र में परमाणु ऊर्जा क्षमता के संयुक्त विकास और स्वच्छ तथा निर्बाध बिजली तक पहुंच बढ़ाना है।
- यह समझौता केंद्र की परमाणु ऊर्जा पहल के तहत पहली राज्य-स्तरीय साझेदारी को दर्शाता है और राज्यों को परमाणु ऊर्जा विकास में शामिल करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- इस समझौते के तहत महागेनको NPCIL की तकनीकी और संचालन संबंधी विशेषज्ञता का उपयोग करके परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए NPCIL के साथ सहयोग कर सकेगा।
- इस साझेदारी का लक्ष्य महाराष्ट्र को विश्वसनीय और 24 घंटे स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करना है, ताकि 2047 तक आर्थिक विकास और दीर्घकालिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
भारत की परमाणु ऊर्जा विस्तार योजना
- सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षमता को वर्तमान 8,180 मेगावाट से 2031-32 तक 22,480 मेगावाट करने के लिए उपाय किए हैं।
- इस विस्तार में गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कुल 8,000 मेगावाट की क्षमता वाले दस रिएक्टरों का निर्माण करना और कमीशनिंग शामिल है।
अमेरिका का सबसे बड़ा गैर- NATO सहयोगी ‘सऊदी अरब’
संदर्भ:
सऊदी क्राउन प्रिंस के व्हाइट हाउस दौरे के अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब को प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी (Major Non-NATO Ally) घोषित किया।
अन्य प्रमुख जानकारी
- अमेरिका और सऊदी अरब ने अपनी आठ दशकों की रक्षा साझेदारी को मजबूत करने और क्षेत्रीय निवारक क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक रणनीतिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- “अमेरिकी सहयोगी” वह देश होता है जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में समर्थन और सहयोग करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ औपचारिक समझौता होता है।
- भारत औपचारिक तौर पर अमेरिका का सहयोगी नहीं है, क्योंकि उसने ऐतिहासिक रूप से अपनी विदेश नीति में स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी है और यह NATO जैसे किसी भी औपचारिक अमेरिकी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं है।
- इस दौरे में F-35 जेट्स जैसे रक्षा संबंधी बिक्री, निवेश प्रतिबद्धताएं, परमाणु ऊर्जा सहयोग, महत्वपूर्ण खनिज और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में सहयोग पर चर्चाएँ शामिल थीं।
- सऊदी क्राउन प्रिंस ने अमेरिका में सऊदी निवेश को एक ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने की घोषणा की, जो पहले के 600 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता से अधिक है।
दोनों देशों के लिए इस कदम का महत्व:
- यह कदम मध्य पूर्व में अमेरिका के प्रभाव को बढ़ाएगा क्योंकि इससे अमेरिका को एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार मिल गया है।
- अमेरिका के लिए रक्षा संबंधी उपकरणों की बिक्री के अधिक अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए सऊदी बाजार में प्रवेश करना आसान हो जाता है।
- इस घोषणा से सऊदी अरब को उन्नत अमेरिकी रक्षा तकनीकें आसानी से मिल जाएंगी, जिसमें F-35 फाइटर जेट्स भी शामिल हैं।
- यह सऊदी अरब की रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाता है और इसकी क्षेत्रीय शक्ति बनने की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करता है।
छठे राष्ट्रीय जल पुरस्कार
संदर्भ:
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नई दिल्ली के विज्ञान भवन में छठे राष्ट्रीय जल पुरस्कार और जल संचय जन भागीदारी पुरस्कार (1.0) प्रदान किए गए।
अन्य संबंधित जानकारी
- जल संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में उनके कार्यों के लिए दस श्रेणियों में 46 विजेताओं को प्रमाणणपत्र, ट्रॉफी और नकद पुरस्कारों का वितरण किया किया गया।
- जल संचय जन भागीदारी पुरस्कार पहल के तहत भूजल पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण में उनके योगदान के लिए एक सौ विशिष्ट हस्तियों को सम्मानित किया गया।
- कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय भूजल संसाधन आकलन 2025 और राष्ट्रीय भूजल गुणवत्ता आकलन 2025 पर रिपोर्टें जारी की गईं।
- भारत के राष्ट्रपति ने “जल संचय जन भागीदारी” योजना की सराहना की और मंत्रालय को इस योजना के पिछले वर्ष के लॉन्च के बाद से 35 लाख से अधिक भूजल पुनर्भरण संरचनाओं को पूरा करने पर बधाई दी।
राष्ट्रीय जल पुरस्कार
- पहले राष्ट्रीय जल पुरस्कार जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 2018 में शुरू किए गए थ।
- आमतौर पर राष्ट्रीय जल पुरस्कार वार्षिक रूप से दिए जाते हैं, लेकिन COVID-19 महामारी जैसी घटनाओं के कारण इसका कार्यक्रम बाधित रहा। पुरस्कार 2021 में नहीं दिए गए, लेकिन जल शक्ति मंत्रालय ने 2024 के लिए छठे राष्ट्रीय जल पुरस्कार की घोषणा की।
- छठे राष्ट्रीय जल पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ राज्य श्रेणी में पहला पुरस्कार महाराष्ट्र को दिया गया, जबकि गुजरात और हरियाणा ने क्रमशः दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया।
जल संचय जन भागीदारी पुरस्कार (1.0)
- वर्ष 2024 में समुदाय-आधारित जल संरक्षण प्रयासों के सम्मान में जल शक्ति अभियान: कैच द रेन (JSA: CTR) अभियान के तहत जल संचय जन भागीदारी पुरस्कार की शुरूआत की गई थी।
- जिसे सितंबर 2024 में शुरू की गई JSJB पहल ने जिलों और नगर निगमों के लिए 10,000 जल पुनर्भरण संरचनाओं और पहाड़ी जिलों के लिए 3,000 संरचनाओं के लक्ष्य निर्धारित किए।
- JSJB पुरस्कारों के तहत, श्रेणी 1 के जिले ₹2 करोड़, श्रेणी 2 के जिले ₹1 करोड़ और श्रेणी 3 के जिले ₹25 लाख प्राप्त करते हैं।
