संदर्भ:

हाल ही में शास्त्रीय तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया भाषाओं को बढ़ावा देने वाले विशेष केंद्रों ने अपने कामकाज में स्वायत्तता की मांग की है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • ये केंद्र, जो वर्तमान में केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के अधीन हैं, अपनी शक्तियों को बेहतर ढंग से उपयोग करने के लिए स्वतंत्रता चाहते हैं।
  • सेंटर फॉर तमिल स्वायत्त संस्था है। 

स्वायत्तता की मांग

  • वित्तीय बाधाएँ: वर्तमान में केंद्रों को किसी भी आयोजन या गतिविधि के लिए केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान से वित्तीय स्वीकृति की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर प्रतिपूर्ति में देरी होती है। इससे कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से आयोजित करने और नियमित संचालन बनाए रखने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
  • कर्मचारी संबंधी समस्याएँ: अनियमित वित्तपोषण के कारण शोधार्थियों और प्रशासनिक कर्मचारियों के कई पद रिक्त रहते हैं। उदाहरण के लिए, नेल्लोर में शास्त्रीय तेलुगु केंद्र में स्वीकृत 36 कर्मचारियों में से केवल 12 ही भरे हुए हैं।
  • परिचालन संबंधी चुनौतियाँ: परियोजना निदेशकों के पास वित्तीय आहरण शक्ति का अभाव है, जिसके कारण उन्हें प्रत्येक व्यय के लिए केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान के निदेशक से अनुमोदन लेना पड़ता है। यह नौकरशाही प्रक्रिया इन केंद्रों के कुशल संचालन में उल्लेखनीय बाधा डालती है।
  • अन्य शास्त्रीय भाषाओं के साथ तुलना: इन चार भाषाओं के विपरीत, तमिल के लिए केंद्र स्वायत्त रूप से संचालित होता है और एक सफल मॉडल के रूप में कार्य करता है। संस्कृत को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से समर्पित विश्वविद्यालयों के माध्यम से सीधे वित्तपोषण प्राप्त होता है।

भारत में शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा

  • भारत में अभी छह शास्त्रीय भाषाएँ (तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया) हैं।
  • अक्टूबर 2004 में, सरकार ने पहली बार भाषाओं को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में वर्गीकृत करने के लिए एक अधिसूचना जारी की।
  • तमिल को वर्ष 2004 में, संस्कृत को वर्ष 2005 में, कन्नड़ को वर्ष 2008 में, तेलुगु को वर्ष 2008 में, मलयालम को वर्ष 2013 में और ओडिया को वर्ष 2014 में शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया।
  • सभी शास्त्रीय भाषाएँ संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने का मानदंड

  • 1000 वर्षों से अधिक पुराने प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की उच्च प्राचीनता।
  • प्राचीन साहित्य का एक संग्रह जिसे पीढ़ियों द्वारा मूल्यवान विरासत माना जाता है।
  • मूल साहित्यिक परंपरा, किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार नहीं ली गई।
  • भाषा और साहित्य अपने आधुनिक स्वरूप से अलग होना चाहिए तथा शास्त्रीय और बाद के संस्करणों या शाखाओं के बीच मुमकिन असंतुलन होना चाहिए।

शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लाभ

  • अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त होने से निर्दिष्ट भाषाओं के विद्वानों को दो प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिलते हैं, जिससे उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा बढ़ती है।
  • समर्पित अनुसंधान केंद्र: सरकार प्रत्येक शास्त्रीय भाषा में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करती है, जिससे गहन अनुसंधान और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा मिलता है।
  • शैक्षिक एकीकरण: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध किया गया है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए निश्चित संख्या में पीठों का सृजन करे, जिससे शैक्षिक विशेषज्ञता को बढ़ावा मिले।
  • वित्तीय सहायता: शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण धनराशि आवंटित की गई है। जैसे- तीन वर्षों में संस्कृत के प्रचार-प्रसार पर 643.84 करोड़ रुपए खर्च किए गए।

शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा

  • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया को बढ़ावा देता है, जो भारत की चार शास्त्रीय भाषाएं हैं।
  • भारत सरकार द्वारा 17 जुलाई, 1969 को मैसूर में स्थापित यह संस्थान भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देता है। शिक्षा मंत्रालय के अधीन संचालित यह संस्थान पिछले पाँच दशकों में भाषा विकास के लिए अग्रणी संस्थान बन गया है।
  • भारत सरकार तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों (जिन्हें शिक्षण और अनुसंधान के लिए धन मिलता है) के माध्यम से संस्कृत को सहायता करती है। हालाँकि, शास्त्रीय संस्कृत परियोजनाओं के लिए अलग से कोई धन नहीं है।
  • केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान (CICT) तमिल के विकास और संवर्धन कार्य करता है। 

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