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सामान्य अध्ययन-3: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना,संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय।

संदर्भ: ‘ऑन द ब्रिंक: ट्रेड फाइनेंस एंड द रिशेपिंग ऑफ द ग्लोबल इकॉनमी’ शीर्षक से जारी हुई नवीनतम व्यापार और विकास रिपोर्ट 2025  के अनुसार, जलवायु संकट, मुद्रा की अस्थिरता और तरलता में कमी के कारण वैश्विक व्यापार का वित्तीय आधार लगातार कमजोर होता जा रहा है।  

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • व्यापार वृद्धि और विकास
    • रिपोर्ट के आकलन के अनुसार, वर्ष 2025 में वैश्विक आर्थिक विकास की दर 2.3% रहने का अनुमान है, जो मंदी की आशंका वाली सीमा से कम है। इसका मुख्य कारण कमज़ोर मांग, व्यापार में अप्रत्याशित झटके और विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली व्यापक अनिश्चितता है।
    • वर्ष 2025 की शुरुआत में, टैरिफ लागू होने से पहले माल जमा करने (स्टॉकपाइलिंग) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में हुए निवेश के कारण वस्तु व्यापार में 4% की वृद्धि देखी गई। हालांकि, मार्च तक माल ढुलाई की दरों में 40% की भारी गिरावट आने के बावजूद भी व्यापार की वास्तविक (अंतर्निहित) वृद्धि दर 2.5% से 3% के बीच है।
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 90% से अधिक हिस्सा लेटर ऑफ क्रेडिट (L/C) और गारंटी जैसे वित्तीय साधनों पर निर्भर करता है। इस भारी निर्भरता के कारण, व्यापार का मुख्य जोखिम अब लॉजिस्टिक्स (परिवहन/माल की आवाजाही) के बजाय, कंपनियों के अस्थिर तुलन पत्रों (बैलेंस शीट) की ओर स्थानांतरित हो गया है।
  • व्यापार वित्त में जलवायु भेद्यता:
    • तूफान, हीटवेव और सूखा जैसे जलवायु संकटों के कारण, बीमा प्रीमियम की लागत बढ़ जाती हैं, बैंकों के जोखिम मूल्यांकन मॉडल अधिक सख्त हो जाते हैं, और निर्यात गारंटियों की उपलब्धता कम हो जाती है। इन सबका कृषि और पण्यों (commodities) के व्यापार पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • मुद्रा की अस्थिरता, डॉलर की कमी, और अफ्रीका, दक्षिण एशिया तथा लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में बैंकों की सीमित उपस्थिति के कारण, विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ कमजोर वित्तपोषण, निर्यात में कटौती, धीमी आर्थिक वृद्धि और उच्च जोखिम के  दुष्चक्र  का सामना कर रही हैं।
    • यह स्थिति विभाजन का कारण बनती है: एक ओर मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार वाले राष्ट्र अपने व्यापार को स्थिरता प्रदान करते हुए बनाए रखते हैं, वहीं दूसरी ओर कमजोर राष्ट्रों को लगातार बढ़ती लागत, अलग-थलग पड़ जाने (हाशियाकरण), और पर्यावरण-अनुकूल सुधारों (ग्रीन अपग्रेड) तथा कम कार्बन उत्सर्जन वाली मूल्य श्रृंखलाओं में शामिल होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • ऋण और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का दबाव:
    • 68 निम्न-आय वाले देशों में से 35 देश पहले से ही गंभीर ऋण संकट का सामना कर रहे हैं। इसके साथ ही, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की ओर पूंजी पलायन और उच्च उधारी लागत (ब्याज दर) के कारण उनका प्रदर्शन पहले से और खराब होता जा रहा है।
    • नीतिगत अस्पष्टता के कारण निवेश में विलंब हो रहा है। इसके अतिरिक्त, केन्द्रीय बैंकों द्वारा पूर्व में लागू की गई सख़्त मौद्रिक नीतियों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने के बावजूद, यह स्थिति छोटी फर्मों और निम्न-आय वाले देशों पर वर्ष 2026 तक वित्तीय दबाव को और बढ़ाएगी।
    • ऐसे समय में, जब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तक सुरक्षित और विश्वसनीय पहुँच होना बहुत आवश्यक है, जलवायु वित्तपोषण की कमी इन देशों की ऋण चुकाने की क्षमता (साख) को और अधिक कमज़ोर कर रही है।
  • दक्षिणदक्षिण व्यापार लचीलापन:
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र (या उभरता एशिया) की वैश्विक व्यापार में एक तिहाई हिस्सेदारी है और यह पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में मजबूत अंतर- क्षेत्रीय संबंधों का लाभ उठाकर, विविधीकरण और मूल्य-वर्धित निर्यात को बढ़ावा देता है और  अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाता है।
    • यह क्षेत्र शिपमेंट को पुनर्निर्देशित करके और मूल्य-श्रृंखला एकीकरण को बढ़ाकर बाहरी झटकों से प्रभावी ढंग से बचाव करता है, जो इसे उन्नत उत्तरी अर्थव्यवस्थाओं से उत्पन्न होने वाली अस्थिरता से बचाता है।
    • यह क्षेत्र (एशिया-प्रशांत) शिपमेंट (माल) को अन्य मार्गों पर भेजने और अपनी उत्पादन मूल्य-श्रृंखलाओं के एकीकरण को बढ़ाकर बाहरी आर्थिक झटकों से सफलतापूर्वक अपना बचाव करता है। यह रणनीति इस क्षेत्र को उन्नत उत्तरी अर्थव्यवस्थाओं से उत्पन्न होने वाली अस्थिरता के प्रभावों से बचाती है।

प्रमुख नीतिगत अनुशंसाएं

  • जलवायु सुभेद्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए देशों द्वारा वित्तीय सुरक्षा को सुदृढ़ करना:
    • जलवायु-संवेदनशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए सार्वजनिक व्यापार-वित्त गारंटी का विस्तार करना।
    • व्यापार के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों को प्रति-चक्रीय तरलता प्रदान करनी चाहिए।
    • मुद्रा जोखिम-मुक्ति तंत्र लागू करना और क्षेत्रीय डॉलर-वैकल्पिक भुगतान प्लेटफॉर्म का सृजन करना।
    • यह सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक नियम बनाना कि हरित मानक व्यापार के लिए नई बाधाएं न बनें।
  • सरकारों द्वारा सक्रिय तौर पर राजकोषीय प्राथमिकताओं का विकास और लचीलेपन की ओर पुन: उन्मुखीकरण:
    • खर्च को सैन्य क्षेत्रों से बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सुरक्षा की ओर पुनर्निर्देशित करना।
    • घरेलू राजस्व जुटाना, आर्थिक विविधीकरण और समग्र आर्थिक स्थिरता को बढ़ाना।
    • समावेशी बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना जो वैश्विक वित्तीय विषमताओं में सुधार करे और जलवायु भेद्यताओं से निपटने में मदद करे।
  • दीर्घकालिक विकास के लिए राज्यों द्वारा नीतिगत सामंजस्य सुनिश्चित करना
    • सतत विकास के लिए राजकोषीय, मौद्रिक और औद्योगिक नीतियों  को संरेखित करना।
    • कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर, दीर्घकालिक विकास पथों  पर चलने में सक्षम बनाने वाली एकीकृत रणनीतियों को अपनाना।

व्यापार और विकास रिपोर्ट के बारे में

  • व्यापार और विकास रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा प्रकाशित की जाती है।
  • व्यापार और विकास रिपोर्ट की शुरुआत 1981 में हुआ था। यह व्यापार और विकास बोर्ड के वार्षिक सत्र के लिए प्रतिवर्ष जारी की जाती है।
  • यह रिपोर्ट वर्तमान आर्थिक प्रवृत्तियों और अंतर्राष्ट्रीय चिंता के प्रमुख नीतिगत विषयों का विश्लेषण करती है, और विभिन्न स्तरों पर इन मुद्दों के समाधान के लिए सुझाव देती है।
  • यह रिपोर्ट श्रृंखला  विशेष रूप से अर्थशास्त्रियों, सरकारी नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और व्यापार एवं आर्थिक क्षेत्र के अनुसंधान तथा विश्लेषण से जुड़े सभी पेशेवरों को लक्षित करती है।

Sources:
Down To Earth
Unctad

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