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सामान्य अध्ययन-3: समावेशी विकास और उससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

संदर्भ: 

G20 की दक्षिण अफ्रीकी प्रेसीडेंसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक असमानता अब “आपातकालीन स्तर” पर पहुँच चुकी है, जिससे लोकतंत्र, आर्थिक स्थिरता और जलवायु परिवर्तन पर प्रगति को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

अन्य संबंधित जानकारी 

  • यह रिपोर्ट वैश्विक असमानता पर G20 की स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक विशेष समिति द्वारा तैयार की गई थी, जिसका नेतृत्व नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ कर रहे थे।
  • यह रिपोर्ट, वैश्विक असमानता के आपातकालीन स्तर को रेखांकित करते हुए, “इंटरनेशनल पैनल ऑन इनइक्वलिटी (IPI)” नामक एक नई संस्था गठित करने की सिफारिश करती है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

भारत से संबंधित निष्कर्ष: रिपोर्ट के अनुसार देश के शीर्ष 1% अमीरों की संपत्ति 2000 से 2023 के बीच 62% तक बढ़ गई है।

वैश्विक निष्कर्ष:

  • विश्व की लगभग 90% आबादी को कवर करने वाले 83% देशों में आय असमानता बेहद अधिक है — जहाँ गिनी गुणांक 0.4 से ऊपर है।
  • वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2000 के बाद से लोगों के बीच आय असमानता में कुछ कमी आई है, जिसका मुख्य कारण चीन में तीव्र आर्थिक विकास रहा है। हालांकि, असमानता अब भी अत्यधिक बनी हुई है, और वैश्विक गिनी गुणांक 0.61 है।
  • वर्ष 2000 से 2024 के बीच, दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों ने नई सृजित कुल संपत्ति का लगभग 41% हिस्सा अपने कब्ज़े में लिया, जबकि सबसे गरीब 50% आबादी को इसका केवल 1% ही मिला।

सामाजिक और आर्थिक परिणाम:

  • दुनिया भर में हर चार में से एक व्यक्ति (करीब 2.3 अरब लोग) हल्की या गंभीर खाद्य असुरक्षा से जूझ रहा है — यानी उन्हें नियमित रूप से भोजन छोड़ना पड़ता है। यह संख्या 2019 की तुलना में 33.5 करोड़ अधिक है।
  • विश्व की आधी आबादी अब भी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के दायरे से बाहर है, जबकि लगभग 1.3 अरब लोग अपनी जेब से स्वास्थ्य पर खर्च करने के कारण गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं।
  • अनुमान के अनुसार, जिन देशों में असमानता अधिक है, वहाँ धन का अधिक समान वितरण करने वाले देशों की तुलना में संस्थागत और लोकतांत्रिक गिरावट का जोखिम सात गुना अधिक होता है।

असमानता के कारक:

  • वैश्विक अस्थिरता जैसे COVID-19 महामारी, यूक्रेन युद्ध, और ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव, का सबसे अधिक असर कम आय वाले परिवारों पर पड़ता है।
  • व्युत्क्रम प्रभाव डालने वाली टैक्स व्यवस्था (रिग्रेसिव टैक्स स्ट्रक्चर), श्रम बाजार में ढिलाई, और कमज़ोर डेटा प्रणाली प्रभावी संपत्ति पुनर्वितरण और निगरानी में गंभीर बाधाएँ पैदा करती हैं।

प्रमुख सिफ़ारिशे  

रिपोर्ट में “इंटरनेशनल पैनल ऑन इनइक्वलिटी (IPI)” नामक एक नई संस्था गठित करने का प्रस्ताव दिया गया है, जो “इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC)” के मॉडल पर आधारित होगी। यह संस्था सरकारों और बहुपक्षीय एजेंसियों को असमानता पर विश्वसनीय मूल्यांकन और विश्लेषण के माध्यम से सहयोग प्रदान करेगी।

रिपोर्ट में कई प्रगतिशील राजकोषीय उपाय लागू करने की सिफारिश की गई है, जिनमें शामिल हैं:

  • वेल्थ और इनहेरिटेंस टैक्स लगाना, क्योंकि वैश्विक स्तर पर अरबपति अपनी संपत्ति पर औसतन केवल 0.3% का प्रभावी कर  चुकाते हैं — जो G20 द्वारा 2024 में चर्चा किए गए न्यूनतम 2% टैक्स दर से काफी कम है।
  • न्यूनतम प्रभावी कॉर्पोरेट टैक्स दर तय करना और टैक्स हेवन पर प्रतिबंध लगाना।
  • अत्यधिक अमीरों को लाभ पहुँचाने वाली उल्टी कर छूट और टैक्स लूपहोल्स को समाप्त करना।

‘बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS)’ पर OECD की चर्चाओं से सीख लेते हुए, संयुक्त राष्ट्र (UN) में अंतरराष्ट्रीय कर सहयोग पर एक फ्रेमवर्क कन्वेंशन स्थापित करने के लिए चल रही बातचीत, वैश्विक कर शासन में व्यापक और संरचनात्मक सुधार लाने का एक ऐतिहासिक अवसर प्रदान करती है।

Sources:
India Today
Business-Standard
The Hindu

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