संदर्भ:
भारत ने जैव विविधता सम्मेलन (CBD) के पक्षकारों के 16वें सम्मेलन (COP 16) में अद्यतन राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) जारी की।
अन्य संबंधित जानकारी
- भारत ने NBSAPs की स्थापना करते हुए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (केएम-जीबीएफ) के साथ संरेखित करने के लिए एनबीएसएपी को अद्यतन किया है ।
- भारत की अद्यतन NBSAP में ‘संपूर्ण सरकार’ और ‘संपूर्ण समाज’ दृष्टिकोण को अपनाया गया है। इसमें पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली और प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति के माध्यम से पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत किया गया है।
- अद्यतन NBSAP एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देता है और पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन दृष्टिकोण, कार्यान्वयन के लिए बॉटम- अप दृष्टिकोण और जैव विविधता को मुख्यधारा में लाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) (2024-2030)
- NBSAPs किसी देश की प्रकृति को संरक्षित करने और उसे पुनर्बहाल करने की योजना की रूपरेखा तैयार करते हैं। NBSAPs जैव विविधता की पुनर्बहाली के लिए व्यापक स्तर पर कार्रवाई को गति प्रदान करता है तथा वित्तपोषण को सुनिश्चित करता है।
- जैव विविधता सम्मेलन (CBD) के अनुच्छेद 6 में अनुबंध करने वाले पक्षों से NBSAP (या समकक्ष साधन) विकसित करने तथा जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय गतिविधियों में एकीकृत करने की अपेक्षा की गई है।
- NBSAP ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (KM-GBF) के तहत निर्धारित 23 वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप 23 राष्ट्रीय लक्ष्यों की रूपरेखा तैयार की है ।
- NBSAP का लक्ष्य वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों के अनुरूप 2030 तक कम से कम 30% स्थलीय, अंतर्देशीय जल, तटीय और समुद्री क्षेत्रों को संरक्षित करना है।
- पहली राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) 1999 में अस्तित्व में आयी।
जैव विविधता सम्मेलन (CBD)
- जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCBD), जिसे जैव विविधता सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है, कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर जैव विविधता को संरक्षित करना है।
- इस समझौते पर पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) (जून 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो )के दौरान हस्ताक्षर किये गये थे, जिसे ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’ के नाम से भी जाना जाता है ।
CBD दिसंबर 1993 में ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’ के बाद लागू हुआ। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं :
- जैव विविधता का संरक्षण.
- जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बंटवारा।
भारत 1993 में CBD का पक्षकार बना और 1999 में “जैव विविधता पर राष्ट्रीय नीति और बृहत् स्तरीय कार्रवाई रणनीति” शीर्षक से अपनी पहली NBAP तैयार की।
CBD के तत्वावधान में अब तक दो प्रोटोकॉल अपनाए गए हैं:
- जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल: इसे 2000 में एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के रूप में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न जीवित-रूपांतरित जीवों (LMOs) के सुरक्षित संचालन, परिवहन और उपयोग को सुनिश्चित करना है, जिनका जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए जोखिमों को भी ध्यान में रखना है ।
- नागोया प्रोटोकॉल : इसे 2010 में COP 10 के दौरान नागोया, जापान में अपनाया गया था। यह आनुवंशिक संसाधनों तक पहुंच और उनके उपयोग से उत्पन्न लाभों के निष्पक्ष और न्यायसंगत बंटवारे (ABS) पर आधारित है।
COP की बैठकें दो वर्षों में एक बार आयोजित की जाती हैं, नवीनतम COP-15 2022 में मॉन्ट्रियल, कनाडा में आयोजित की गई थी।
कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP 11) की ग्यारहवीं बैठक 2012 में हैदराबाद, भारत में आयोजित की गई थी।