संबंधित पाठ्यक्रम

सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ: 

भारत ने 12 अन्य देशों और अफ्रीकी देशों के एक क्षेत्रीय गठबंधन के साथ मिलकर ब्राज़ील के बेलेम में COP30 के दौरान हुए मंत्रिस्तरीय कार्यक्रम में “राष्ट्रीय जलवायु और प्रकृति वित्त मंच” स्थापित करने की घोषणा की।

अन्य संबंधित जानकारी

  • इस कार्यक्रम का संयुक्त आयोजन ब्राज़ील के वित्त मंत्रालय और हरित जलवायु कोष (GCF) ने किया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय, सार्वजनिक तथा निजी जलवायु वित्त के नेताओं के साथ मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य प्रमुख व्यक्तियों ने हिस्सा लिया।
  • विकासशील देशों की ओर से भारत ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 पर केंद्रित चर्चाओं को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई। उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 9.1 के तहत विकसित देशों के लिए शमन और अनुकूलन के लिए विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना अनिवार्य है।
  • भारत द्वारा राष्ट्रीय मंच की घोषणा उसके उन मौजूदा प्रयासों के अनुरूप है, जिनमें वह अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA) के लिए संकेतकों को अंतिम रूप दे रहा है। यह मंच विश्वभर में जलवायु अनुकूलन प्रयासों की प्रगति को मापने का एक ढांचा प्रदान करेगा।

पेरिस समझौते के बारे में

यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है|

इसे 12 दिसंबर 2015 को फ्रांस के पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में 195 पक्षकारों द्वारा अपनाया गया था और यह 4 नवंबर 2016 को यह प्रभावी हुई।

 इसके मुख्य उद्देश्य हैं:

  • “वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना”, और
  • “तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए निरंतर प्रयास करना।”

राष्ट्रीय जलवायु और प्रकृति वित्त मंच 

  • यह मंच एक राष्ट्रीय-स्तरीय समन्वय तंत्र है, जो सरकार, दाताओं, वित्तीय साझेदारों और अन्य हितधारकों को जोड़ता है।
  • इसका उद्देश्य देशों को जलवायु वित्त प्राप्त करने में अपनाए जा रहे “खंडित दृष्टिकोण” से बाहर निकालना है।
  • GCF के रेडीनेस कार्यक्रम के समर्थन से यह मंच राष्ट्रीय जलवायु प्राथमिकताओं के अनुरूप वित्तीय प्रवाह को संरेखित करेगा, प्रारंभिक चरण की कार्रवाइयों को प्रोत्साहित करेगा और व्यक्तिगत परियोजनाओं से परे, एक समग्र कार्यक्रम के तहत व्यवस्थित निवेश को बढ़ावा देगा।
  • इस नई पहल का मार्गदर्शन एक संचालन समिति करेगी, जिसमें अधिकांश प्रतिनिधि विकासशील देशों से होंगे, और यह एक सक्षम सचिवालय के माध्यम से संचालित होगी। अपने प्रारंभिक चरण (Incubation Period) में इसे अफ्रीका क्लाइमेट फ़ाउंडेशन (ACF) का समर्थन प्राप्त होगा।
  • लगभग 4 मिलियन डॉलर की प्रारंभिक निधि से शासन, समन्वय, ज्ञान-साझाकरण और मंच के प्रारंभिक डिज़ाइन में सहायता मिलेगी।

हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund) 

  • GCF, UNFCCC का वित्तीय तंत्र और 2015 के पेरिस समझौते की मुख्य कार्यकारी इकाई है, जो विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए व्यापक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • 2024 तक, 134 विकासशील देशों को USD बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक देने की प्रतिबद्धता जताई थी।
  • रेडीनेस प्रोग्राम (Readiness Programme) राष्ट्रीय संस्थाओं को सशक्त बनाता है, जिनमें राष्ट्रीय नामित प्राधिकरण (NDA) और डायरेक्ट एक्सेस एंटिटीज़ (DAE) शामिल हैं। इसके माध्यम से परियोजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDCs) और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (NAPs) जैसी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं के अनुरूप संरेखित करने में सहायता मिलती है।

भारत की प्रतिबद्धता और सहभागिता

  • अगस्त 2024 तक, भारत को 11 परियोजनाओं/कार्यक्रमों के लिए GCF से कुल $782 मिलियन की प्रतिबद्धता प्राप्त हो चुकी है, जिनमें पानी, स्वच्छ ऊर्जा, तटीय प्रबंधन, आजीविका, परिवहन, मध्यम और छोटे उद्यम, और जलवायु स्टार्ट-अप्स जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • अधिकांश वित्तीय सहायता रियायती ऋण (Concessional Loans) के रूप में प्रदान की जाती है।
  • पर्यावरण मंत्रालय नोडल नामित प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे राज्य सरकारों और निजी संस्थाओं को GCF फंड तक सहज और प्रभावी पहुँच प्राप्त हो सके।

चुनौतियाँ और आलोचनाएं

  • GCF को छोटी, समुदाय-आधारित पहलों की तुलना में जटिल फंड वितरण, सीमित तकनीकी सहायता और बड़े प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देने के दृष्टिकोण के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है।
  • जिसमें विकसित और विकासशील दोनों देशों के सदस्य होने के कारण इसके 24-सदस्यीय बोर्ड को सर्वसम्मति से निर्णय लेने और नीतियों को लागू करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

Sources:
The Hindu
Green Climate

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