संदर्भ  

इस वर्ष केरल में हुए मोपला विद्रोह के 104 वर्ष पूरे हुए  हैं। कुछ संगठन इस विद्रोह को हिंदू नरसंहार (Hindu Genocide) घोषित करने की माँग कर रहे हैं।   

अन्य संबंधित जानकारी

  • 25 सितम्बर, 1921 को उत्तरी केरल में खिलाफत नेताओं में से एक चंब्रासरी इम्बिची कोइथंगल (Chambrassery Imbichi Koithangal) ने अपने 4,000 से अधिक समर्थकों के साथ एक रैली आयोजित की, जिसके दौरान 38 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।
  • इन हत्याओं के कारण, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने माँग की है कि वर्ष 1921 के मोपला विद्रोह को हिन्दू नरसंहार कहा जाए।
  • इस वर्ष, अगस्त में मलयालम में मप्पिला लाहला और ब्रिटिश औपनिवेशिक अभिलेखों में मोपला विद्रोह के रूप में जानी जाने वाली घटना के 104 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह विद्रोह मालाबार क्षेत्र में हुआ था ।

मोपला विद्रोह 

  •  मालाबार/ मोपला विद्रोह, केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा ब्रिटिश अधिकारियों और उनके सहयोगी  हिंदू जमींदारों (जिन्हें जेनमी भी कहा जाता है) के खिलाफ किया गया एक सशस्त्र विद्रोह था।
  • मोपला काश्तकारों के द्वारा किए गए विद्रोह के प्रमुख कारण थे:  
  • मोपलाओं को बिना किसी उचित नोटिस के उनकी भूमि से बेदखल करना तथा  अनुचित भूमि स्वामित्व प्रणाली के कारण असुरक्षा का  भाव होना।
  • जेनमियों द्वारा निर्धारित नवीनतम शुल्क का अधिक होना। 
  • उनके विरुद्ध भेदभाव का होना, क्योंकि हिंदू काश्तकारों की तुलना में मोपला काश्तकारों से  अधिक शुल्क लिया जाता  था।
  • वर्ष 1920 में मंजेरी के मालाबार जिला कांग्रेस समिति की बैठक में काश्तकारों के मुद्दे का समर्थन किया गया तथा जमींदार-काश्तकार संबंधों को विनियमित करने के लिए कानून बनाने की माँग की गई।
  • ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1921 में खिलाफत सभाओं के विरुद्ध निषेधाज्ञा जारी की।
  • अगस्त, 1921 में पुलिस ने एक मस्जिद पर छापा मारा और निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाईं, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हो गई। इसके कारण दोनों पक्षों में झड़पें हुईं, सरकारी दफ्तरों में तोडफोड की गई, सरकारी अभिलेखों को जलाने के साथ-साथ सरकारी खजाने को लूटा गया।
  • इस विद्रोह में मोपला लोगों के हमले के निशाने पर अलोकप्रिय जेनमियों, पुलिस स्टेशन, कोषागार और कार्यालय तथा ब्रिटिश बागान मालिक थे।
  • दिसंबर, 1921 तक, सभी विद्रोह समाप्त हो गए थे। कुछ ऐतिहासिक आँकड़ों से पता चलता हैं कि इस विद्रोह के कारण लगभग 10,000 लोगों की जान चली गई, जिनमें 2,339 विद्रोही शामिल थे।
  • इसे दक्षिण भारत में पहले राष्ट्रवादी विद्रोहों में से एक माना जाता है।

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