संबंधित पाठ्यक्रम

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: भारत और इसके पड़ोसी- संबंध

संदर्भ: 

म्यांमार में फरवरी 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से मिजोरम राज्य शरणार्थी संकट से जूझ रहा है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • दो प्रतिद्वंद्वी सशस्त्र समूहों के बीच आपसी लड़ाई के बाद जुलाई के पहले सप्ताह में लगभग 4,000 शरणार्थी म्यांमार से सीमा पार कर मिजोरम आ गए।
  • मिज़ोरम अब उन शरणार्थियों (जोकि राज्य के प्रमुख मिज़ो लोगों से जातीय रूप से संबंधित हैं) को वापस भेजने और सीमित संसाधनों तथा केंद्र की ओर से उदासीन प्रतिक्रिया के बावजूद उन्हें रहने देने की समस्या का समाधान तलाश रहा है। 

वर्तमान घटनाक्रम:

  • 3 जुलाई से अब तक म्यांमार के चिन राज्य से लगभग 4,000 लोग मिजोरम के चम्फाई ज़िले में प्रवेश कर चुके हैं।
  • ऐसा दो सैन्य-विरोधी सशस्त्र समूहों, चिन नेशनल डिफेंस फ़ोर्स (CNDF) और चिनलैंड डिफेंस फ़ोर्स-हुआलंगोरम (CDF-H) के बीच भीषण गोलीबारी के बाद हुआ।
  • ये दोनों समूह म्यांमार की लोकतंत्र समर्थक नेशनल यूनिटी सरकार से संबद्ध पीपुल्स डिफेंस फोर्स का हिस्सा हैं, जिसने पिछले कुछ महीनों में चिन राज्य (जहाँ जुंटा का कब्ज़ा था) के बड़े हिस्से पर नियंत्रण हासिल कर लिया है। 
  • ऐसा कहा जाता है कि भारत के साथ व्यापार के लिए रणनीतिक माने जाने वाले क्षेत्रों पर नियंत्रण करने के कारण वे एक-दूसरे के खिलाफ हो गए।
  • भारतीय खुफिया अधिकारियों का कहना है कि CNDF ने CDF-H पर विजय प्राप्त की और उसके शिविरों पर कब्जा कर लिया।

 शरणार्थियों की शुरुआत

  • म्यांमार के नागरिक लंबे समय से मिजोरम में आते-जाते रहे हैं, यहाँ तक कि 1968 की मुक्त आवागमन व्यवस्था (फ्री मूवमेंट रेगुलेशन) में भी सीमावर्ती निवासियों को 40 किलोमीटर तक की यात्रा की अनुमति नहीं थी। 2004 में इसे घटाकर 16 किलोमीटर कर दिया गया, और 2016 में और भी सख्त नियम जोड़े गए।
  • केंद्र ने फरवरी 2024 में मुक्त आवागमन व्यवस्था को निलंबित करने की घोषणा की, लेकिन इस संबंध में कोई आधिकारिक अधिसूचना या द्विपक्षीय समझौता नहीं हुआ है।  इसके अलावा गृह मंत्रालय दिसंबर 2024 में मुक्त आवागमन को 10 किमी. तक सीमित करने के लिए एक नया प्रोटोकॉल लाया।
  • 2022 में यह संकट और भी गहरा गया जब 2,000 बावम शरणार्थी बांग्लादेश से भाग गए, इसके बाद मणिपुर से हज़ारों कुकी-ज़ो लोग भी भागकर यहाँ आ गए।
  • मिज़ोरम में अब म्यांमार, बांग्लादेश और मणिपुर के 40,000 से अधिक शरणार्थी शरण लिए हुए हैं।

मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR)

  • FMR के तहत, पहाड़ी जनजातियों का कोई भी सदस्य जो भारत या म्यांमार का नागरिक है, और जो दोनों ओर सीमा के 16 किलोमीटर के दायरे में रहता है, वह सीमा पास (जो आमतौर पर एक वर्ष के लिए वैध होता है) दिखाकर सीमा पार कर सकता है और प्रति यात्रा  के दौरान दो सप्ताह तक रह सकता है।

शरणार्थी घुसपैठ का कारण

  • छिद्रित सीमा: भारत और म्यांमार के बीच 1,643 किलोमीटर लंबी बाड़रहित सीमा है।
  • बढ़ता संघर्ष: म्यांमार की सेना ने नागरिकों पर, विशेष रूप से भारत के निकट सागाइंग, चिन और काचिन जैसे सीमावर्ती राज्यों में बड़े पैमाने पर हवाई हमले और गोलाबारी की है।
  • मानवीय संकट: इस संघर्ष ने एक बड़ा मानवीय संकट उत्पन्न कर दिया है, जिससे कई लोग विस्थापित हो गए हैं और उन्हें भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
  • राज्यविहीनता: म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को लंबे समय से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जिससे विस्थापन और शरणार्थी संकट बढ़ रहा है।

शरणार्थी संकट का समाधान 

जातीय एकजुटता बनाम बढ़ता तनाव: मिजो समुदाय (मिजोरम में बहुसंख्यक) म्यांमार के चिन लोगों के साथ गहरे सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंध साझा करता है, साथ ही मणिपुर के कुकी-जो जनजातियों और बांग्लादेश के बावम समुदाय के साथ भी इसके संबंध अच्छे रहे हैं क्योंकि ये सामूहिक रूप से ज़ो जातीय समूह का हिस्सा हैं।

प्रारंभिक समर्थन: 2021 के म्यांमार तख्तापलट के बाद से, मिजोरम ने शरणार्थियों का स्वागत किया है, और मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने उन्हें निर्वासित न करने का कारण मानवीय और जातीय एकजुटता को बताया है। यंग मिज़ो एसोसिएशन (YMA) जैसे स्थानीय समूहों, चर्चों और व्यक्तियों ने भोजन, आश्रय और धन उपलब्ध कराया।

बढ़ता स्थानीय प्रतिरोध: जैसे-जैसे शरणार्थियों की संख्या बढ़ी, ग्रामीणों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। मार्च 2024 में, कई इलाकों में प्रतिबंध लगा दिए गए।

  • फार्कवन गांव (चंफाई जिला) ने शरणार्थियों के लिए  व्यापार करने पर प्रतिबंध लगा दिया और शिविरों के बाहर आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया।
  • मेल्थुम (आइजोल जिला) और लॉन्ग्टलाई शहर ने भी इसी तरह के आदेश जारी किए और पालन न करने पर उन्हें बेदखली की धमकी दी।

सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संबंधी चिंताएँ: कार्यकर्ता V.L. Thlamuanpuia  ने केंद्र को चेतावनी दी कि अनियंत्रित शरणार्थी: 

  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा (संभावित विद्रोही घुसपैठ) हैं।
  • जनसांख्यिकीय बदलाव स्थानीय पहचान को बदल रहे हैं।
  • संसाधनों का ह्रास (नौकरियाँ, स्वास्थ्य सेवा, राशन) हो रहा है।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया: 

कानूनी ढांचा और नीतिगत दृष्टिकोण: भारत एक औपचारिक शरणार्थी नीति के बिना काम करता है, क्योंकि इसने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। शरणार्थी मामलों को वर्तमान में मौजूदा विदेशियों से संबंधित कानूनों (विदेशी अधिनियम, 1946) और विनियमों के तहत सुलझाया जाता है।

  • सरकार मामला-दर-मामला शरणार्थी स्थिति निर्धारण पर संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ सहयोग करती है।

सीमा प्रबंधन पर बदलता रुख: केंद्र सरकार ने सीमा नियंत्रण के संदर्भ में सख्त रुख अपनाया है।

  • मिजोरम राज्य के अधिकारियों ने शरणार्थियों के निरंतर अंतर्वाह के कारण बढ़ती परिचालन चुनौतियों की रिपोर्ट दी है।

कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ और स्थानीय उपाय: मार्च 2024 में, मिजोरम के मुख्यमंत्री ने मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) को सीमा पार तस्करी में योगदान देने वाला बताया।

  • राज्य सरकार ने विदेशी राष्ट्रीय पहचान में सुधार के लिए मिजोरम (परिवार रजिस्टरों का रखरखाव) विधेयक के लिए राष्ट्रपति से औपचारिक तौर पर स्वीकृति देने का अनुरोध किया है।

स्रोत: The Hindu

https://www.thehindu.com/news/national/mizoram/how-is-mizoram-handling-the-refugee-crisis/article69805112.ece

Shares: