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सामान्य अध्ययन-2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्यप्रणाली;सरकार के मंत्रालय और विभाग; दबाव समूह और औपचारिक/अनौपचारिक संघ और राजनीति में उनकी भूमिका।
सामान्य अध्ययन -3: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के क्षेत्र में जागरूकता।

संदर्भ: भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग (CRP) ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता और न्यायपालिका’ शीर्षक से एक महत्वपूर्ण श्वेत पत्र जारी किया है, जिसमें रेखांकित किया गया है कि किस प्रकार  कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखते हुए न्यायिक प्रक्रिया की दक्षता को बढ़ा सकती है।

न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका

  • मामलों का प्रबंधन: AI केस शेड्यूलिंग में सहायक हो सकता है, जो लंबित मामलों की संख्या कम करने और केस प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है।
  • जोखिम का आकलन: AI ऐतिहासिक फैसलों का विश्लेषण करके संभावित केस परिणामों की जानकारी दे सकता है और जोखिम का आकलन करने में मदद कर सकता है।
  • दस्तावेज़ प्रोसेसिंग: AI न्यायालय के दस्तावेज़ों की फाइलिंग को स्वचालित ढंग से कर सकता है और मानव तरीकों की तुलना में तेजी से बड़ी मात्रा में कानूनी डेटा का विश्लेषण कर सकता है।
  • संचालन लागत में दक्षता: प्रशासनिक कार्यों को स्वचालित करके AI अदालतों की संचालन लागत को कम करने में मददगार हो सकता है।

भारत का उभरता न्यायिक AI इकोसिस्टम

  • SUPACE: सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट एफिशिएंसी (Supreme Court Portal for Assistance in Court Efficiency) दस्तावेज़ों को स्वचालित रूप से निकालने, मामले का संक्षिप्त विवरण तैयार करने, और प्रासंगिक कानूनी संदर्भों की पहचान करने में न्यायाधीशों की मदद करता है जिससे शोध प्रक्रिया की दक्षता में वृद्धि होती है।
  • SUVAS: सर्वोच्च न्यायालय विधिक अनुवाद सॉफ़्टवेयर फैसलों का 19 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करता है, जिससे अंग्रेज़ी न बोलने वाले वादियों के लिए भाषाई समावेशन सुनिश्चित होता है।
  • TERES: ट्रांसक्रिप्शन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड एंड स्पीच सिस्टम सिस्टम (Transcription of Electronic Record and Speech system) संविधान पीठ की सुनवाइयों के दौरान रियल-टाइम में न्यायालय की सुनवाई का लिप्यंतरण उपलब्ध कराता है, जिससे पारदर्शिता और अभिलेख की सटीकता बढ़ती है।
  • LegRAA: न्यायालय का जनरेटिव AI टूल, जिसे भारतीय मामलों के कानून के अनुसार प्रशिक्षित किया गया है। यह कानूनी शोध में सहायता करता है और बाहरी AI सिस्टम पर निर्भरता को कम करता है, जिससे डोमेन आधारित सटीकता सुनिश्चित होती है।
  • AI-सक्षम e-फाइलिंग सिस्टम: ई-फाइलिंग में AI-संचालित डिफेक्ट डिटेक्शन प्रक्रियागत त्रुटियों को कम करता है, जिससे मामलों को दायर करने की प्रक्रिया सुगम बनती है और प्रशासनिक देरी में कमी आती है।

AI एकीकरण में खामियां

  • सटीकता संबंधी जोखिम और भ्रम: AI सिस्टम कभी-कभी गलत न्यायिक संदर्भ या असत्य कानूनी व्याख्या प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे भ्रामक जानकारी के कारण न्यायिक निर्णयों पर असर पड़ सकता है और न्यायपालिका की विश्वसनीयता कम हो सकती है।
  • डीपफेक साक्ष्य में हेरफेर: उन्नत कृत्रिम मीडिया मौखिक और दस्तावेज़ी साक्ष्यों में हेरफेर कर सकता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता और निष्पक्ष सुनवाई के मानक खतरे में पड़ सकते हैं।
  • एल्गोरिदम संबंधी भेदभाव: AI प्रशिक्षण डेटा में मौजूद पक्षपात सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा दे सकता है और न्यायिक निर्णयों में भेदभावपूर्ण परिणाम ला सकता है, जिससे कानून के समक्ष न्याय और समानता का खतरा उत्पन्न होता है।
  • डेटा संरक्षण और गोपनीयता की चिंता: संवेदनशील मामले के डेटा का असुरक्षित या विदेशी AI प्लेटफ़ॉर्म पर उपयोग निजता और न्यायिक गोपनीयता के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर सकता है, जिससे महत्वपूर्ण जानकारी उजागर होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • न्यायिक निर्णय लेने की क्षमता का प्रभावित होना: स्वचालित AI उपकरणों पर अत्यधिक निर्भरता मानव की न्यायिक निर्णय क्षमता को कमजोर कर सकती है और मानवीय विवेक की भूमिका पर सवाल उठाती है।

भावी रणनीति

  • न्यायिक निर्णय में मानवीय विवेक की उपस्थिति: AI केवल सहायक उपकरण के रूप में कार्य करता है, जबकि सभी निर्णयों पर न्यायाधीशों का पूर्ण अधिकार है। AI द्वारा उत्पन्न प्रत्येक आउटपुट को मानव द्वारा सत्यापित किया जाना आवश्यक है, जिससे न्यायिक तर्क पूरी तरह से मानव-प्रधान बना रहे।
  • AI के कार्यक्षेत्र की स्पष्ट सीमाएँ: AI को केवल प्रशासनिक और सहायक कार्यों तक सीमित रखा जाना चाहिए, जैसे अनुवाद, लिप्यंतरण और दस्तावेज़ प्रबंधन, और इसे न्यायिक विवेक या मूल तर्क को प्रतिस्थापित करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, जब तक कि न्यायाधीश द्वारा स्पष्ट रूप से इसकी समीक्षा न की जाए।
  • नैतिक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत निगरानी: AI एथिक्स कमिटी की स्थापना एक शासन तंत्र प्रदान करती है, जो न्यायिक AI सिस्टम के उपयोग की निगरानी, ऑडिट, शिकायत निवारण और जवाबदेही लागू करने का कार्य करता है।
  • कानूनी इकोसिस्टम में क्षमता निर्माण: न्यायाधीशों, वकीलों और न्यायालय के कर्मचारियों को AI साक्षरता प्रशिक्षण देना संस्थागत तत्परता को सुदृढ़ करता है, इसके दुरुपयोग को कम करता है और इसके जिम्मेदार, सूचित अंगीकरण को प्रोत्साहित करता है।
  • समावेशी न्याय के लिए ओपन-सोर्स और बहुभाषी AI: ओपन-सोर्स और बहुभाषी उपकरणों पर जोर समान पहुँच सुनिश्चित करता है, विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमि वाले वादियों को सहायता प्रदान करता है और सुलभ न्याय की संवैधानिक प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

Sources:
Just Ai
New Indian Express

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