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सामान्य अध्ययन-2: भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा करार|
संदर्भ: RCEP से बाहर होने के छह वर्षों के भीतर भारत ने अपनी व्यापारिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण चक्र पूरा कर लिया है। गौरतलब है कि अब चीन को छोड़कर इस विशाल आर्थिक गुट के लगभग प्रत्येक सदस्य देश के साथ भारत ने मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर कर लिए हैं।
अन्य संबंधित जानकारी
• भारत और न्यूजीलैंड के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) लागू होते ही, चीन को छोड़कर भारत के RCEP के सभी सदस्य देशों के साथ समझौतों हो जाएंगे। इससे भारत को चीन के समक्ष अपने टैरिफ (सीमा शुल्क) नियंत्रण का त्याग किए बिना, RCEP जैसे विशाल बाजार तक पहुंच प्राप्त हो जाएगी।
• भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता प्रभावी होते ही भारत, चीन को छोड़कर RCEP के अन्य सभी सदस्य देशों के साथ व्यापारिक संधियों का चक्र पूरा कर लेगा। यह रणनीति भारत को चीन के प्रति अपनी ‘टैरिफ सुरक्षा’ से समझौता किए बिना RCEP जैसे विशाल बाजार का लाभ उठाने में मदद करेगी।
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच एक संधि है, जिसका उद्देश्य व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए उनके बीच व्यापारिक बाधाओं को कम करना या समाप्त करना है।
भारत के RCEP से बाहर होने के कारण:

- चीनी से होने वाले आयात में वृद्धि: RCEP समझौते के अंतर्गत चीन को भारतीय बाजार में लगभग शून्य-शुल्क पहुंच प्राप्त हो जाती, जबकि इसमें भारतीय घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धी खतरों से बचाने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों का अभाव था।
- सेवा क्षेत्र के लिए बाजार पहुंच का अभाव: भारत की मुख्य शक्ति उसका सेवा क्षेत्र (आईटी, पेशेवर) है, जबकि RCEP का मुख्य ध्यान केवल वस्तुओं (Goods) के व्यापार पर था। इसमें पेशेवरों की आवाजाही को लेकर सीमित प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थीं। सुरक्षात्मक तंत्रों की अनुपस्थिति: भारत ने ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (RoO) के कड़े प्रावधानों और एक ‘स्वचालित ट्रिगर’ सुरक्षा तंत्र की शर्त रखी थी, जिससे आयात में अनियंत्रित वृद्धि होने की स्थिति में घरेलू उद्योगों के संरक्षण के लिए टैरिफ पुनः प्रभावी किए जा सकें।
- व्यापार घाटा संबंधी चिंताएँ: भारत का पहले से ही कई RCEP सदस्यों, विशेषकर चीन के साथ बड़ा व्यापार घाटा था।
RCEP का लाभ उठाने के लिए भारत की चीन रहित RCEP रणनीति:
• स्मार्ट जोखिम प्रबन्धन: RCEP के 15 में से 14 सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (FTA) करके और चीन को केवल संकीर्ण ‘APTA’ ढांचे तक प्रतिबंधित रखकर, भारत ने टैरिफ नियंत्रण (शुल्क सुरक्षा) को गंवाए बिना इन बाजारों तक अपनी पहुंच सुरक्षित कर ली है।

- आसियान–भारत मुक्त व्यापार समझौता (AIFTA) – इसमें सभी 10 आसियान (ASEAN) देश शामिल हैं: इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, फिलीपींस, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई
- भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)
- भारत-दक्षिण कोरिया व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता
- भारत-सिंगापुर व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA)
- भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA)
- भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता (FTA) (22 दिसंबर, 2025 को वार्ताओं के सफल समापन की घोषणा की गई)
• प्रणालीगत भेद्यता के बिना बाजार पहुंच: व्यक्तिगत RCEP देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करने से भारत को प्रणालीगत जोखिमों से बचने में मदद मिली है।
• चीन के आर्थिक प्रभाव पर अंकुश: RCEP की एकीकृत संरचना एक ‘चीन-केंद्रित’ बहुपक्षीय समझौते के रूप में कार्य कर रही थी। इससे अन्य सदस्य देशों के माध्यम से भारतीय बाजार में चीनी सामानों के ‘अप्रत्यक्ष प्रवेश’ का मार्ग प्रशस्त हो जाता।
अन्य महत्त्वपूर्ण पहल:
- आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन पहल (SCRI): यह भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा शुरू किया गया एक त्रिपक्षीय आर्थिक सहयोग फ्रेमवर्क है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लचीली, विविध और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करना है।
- इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क (IPEF): यह अमेरिका के नेतृत्व वाली एक आर्थिक पहल है, जिसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक सहयोग, आपूर्ति श्रृंखलाओं और नियमों को सुदृढ़ करने के लिए शुरू किया गया है; यह एक पारंपरिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) नहीं है।
- भारत-इजरायल-संयुक अरब अमीरात-संयुक्त राज्य अमेरिका (I2U2) समूह: यह भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करके RCEP तक पहुंच के अभाव को पूरा करता है और एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
