संदर्भ:

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) और स्वतंत्र अध्ययनों द्वारा हाल ही में किए गए आकलन इस ओर संकेत करते हैं कि भारत के जीवाश्म ईंधन CO₂ उत्सर्जन में 2025 में केवल 1.4% की वृद्धि होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष की 4% वृद्धि की तुलना में धीमी उत्सर्जन वृद्धि को दर्शाता है।

मुख्य अवलोकन

  • वैश्विक तुलना: भारत में आर्थिक मंदी देखी जा रही है, जबकि वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन के उपयोग से CO2 उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। 2025 में यह उत्सर्जन 38.1 बिलियन टन तक पहुँचने की संभावना है, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 1.1% अधिक है।
  • प्रति व्यक्ति उत्सर्जन: विश्व का तीसरा सबसे बड़ा पूर्ण उत्सर्जक होने के बावजूद भारत प्रति व्यक्ति उत्सर्जक के मामले में निम्न स्थान पर बना हुआ है।
  • दशकीय बदलाव: औसत वार्षिक उत्सर्जन वृद्धि 6.4% (2005-14) से घटकर 3.6% (2015-24) हो गई, जो उत्सर्जन वृद्धि और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के बीच क्रमिक वियोजन का संकेत है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका: विस्तारित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन ने कोयले की खपत को लगभग स्थिर रखा है, जिससे उत्सर्जन वृद्धि सीमित हो गई है।
  • मौसम संबंधी प्रभाव: शीघ्र और प्रबल मानसून ने पीक कूलिंग की माँग को कम कर दिया है, जिससे बिजली क्षेत्र में उत्सर्जन में कमी आई है।
  • कमज़ोर होते प्राकृतिक सिंक: भूमि और महासागरीय सिंक के माध्यम से CO₂ को अवशोषित करने की पृथ्वी की क्षमता में गिरावट आ रही है।
  • अधिकतर अर्थव्यवस्थाएँ अपने उत्सर्जन में कमी ला रहीं हैं: 2015 और 2024 के बीच, 35 देशों ने अपने उत्सर्जन में कमी की, और उनकी अर्थव्यवस्थाओं का विस्तार एक दशक पहले की तुलना में दोगुनी गति से हुआ।

भारत के लिए निहितार्थ

  • जलवायु प्रतिबद्धताओं के लिए समर्थन: यह मंदी भारत के एनडीसी लक्ष्यों के अनुरूप है—2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी लाना और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना।
  • प्रगति के प्रमाण: नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार और ऊर्जा दक्षता में सुधार राष्ट्रीय उत्सर्जन को सार्थक रूप से प्रभावित करने लगे हैं।
  • राष्ट्रीय ऊर्जा संक्रमण की गति: कोयले की मांग में कमी से संकेत मिलता है कि भारत अगले दशक में कोयला-आधारित उत्सर्जन वृद्धि में एक स्थिर स्तर पर पहुँच सकता है।
  • पूर्ण उत्सर्जन अभी भी बढ़ रहा है: धीमी वृद्धि के बावजूद, कुल उत्सर्जन में वृद्धि जारी है, जिससे उत्सर्जन के चरम को हासिल करने में देरी हो रही है।
  • बाहरी कारकों के प्रति भेद्यता: मौसम की अनियमितताओं या कमी की वार्षिक गारंटी नहीं दी जा सकती। दीर्घकालिक परिवर्तन के लिए संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है, न कि केवल एक बार घटित होने वाली घटनाओं पर निर्भर रहना।
  • वैश्विक प्रासंगिकता: भारत का प्रक्षेप पथ वैश्विक मार्गों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, और निरंतर संयम समतामूलक जलवायु कार्रवाई में भारत के नेतृत्व को मजबूती प्रदान करता है।

आवश्यक उपाय

  • नवीकरणीय क्षमता और ग्रिड एकीकरण में तेज़ी लाना: नवीकरणीय ऊर्जा में उच्च हिस्सेदारी के लिए भंडारण, संचरण और लचीलापन तंत्र का सुदृढ़ीकरण।
  • कोयला संक्रमण की योजना बनाना: कोयला उत्पादन को धीरे-धीरे कम करने, पुराने संयंत्रों का पुनः उपयोग करने और श्रमिकों व राज्यों के लिए न्यायोचित परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रवार रोडमैप।
  • ऊर्जा दक्षता बढ़ाना: सख्त मानकों, विद्युतीकरण और दक्षता प्रोत्साहनों के माध्यम से उद्योग, भवन और परिवहन को लक्षित करना।
  • कार्बन सिंक को बढ़ावा देना: प्राकृतिक कार्बन अवशोषण को बढ़ाने के लिए वन क्षेत्र, कृषि वानिकी और भूमि पुनर्स्थापन का विस्तार करना।
  • जलवायु वित्त जुटाना: हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहनों, स्वच्छ उद्योग प्रौद्योगिकियों और लचीले बुनियादी ढाँचे के लिए घरेलू और वैश्विक वित्त का लाभ उठाना।
  •  विकास योजना में जलवायु लक्ष्यों को शामिल करना: आर्थिक, औद्योगिक और क्षेत्रीय विकास नीतियों के साथ डीकार्बोनाइजेशन का एकीकरण।

Sources:
The Print
The Wire
The Hindu
Indian Express

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