संदर्भ:
भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को बढ़ावा देने के तहत, अमेरिका भारत के साथ असैन्य परमाणु सहयोग पर लागू होने वाले नियमों में ढील देने के लिए कदम उठा रहा है।
अन्य संबंधित जानकारी
- इसका उद्देश्य भारत के परमाणु संस्थानों को अमेरिकी कंपनियों के साथ सहयोग बढ़ाने में मदद प्रदान करना है।
- अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने संभावित भारतीय सरकारी संगठनों जैसे: भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR), और इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) को अमेरिकी इकाई सूची (US entity list) से हटाने की घोषणा की है।
अमेरिकी इकाई सूची क्या है?
- अमेरिकी इकाई सूची उन विदेशी व्यक्तियों, व्यवसायों और संगठनों की सूची है, जो कुछ वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों के लिए निर्यात प्रतिबंधों और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं का सामना करते हैं।
इसे अमेरिकी वाणिज्य विभाग के उद्योग एवं सुरक्षा ब्यूरो (BIS) द्वारा ऐसे व्यापार को रोकने के लिए बनाया गया था जो:
- आतंकवाद का समर्थन कर सकता है
- सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) कार्यक्रमों में सहायता कर सकता है
- अमेरिकी विदेश नीति या राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को नुकसान पहुंचा सकता है
प्रमुख चुनौतियाँ:
अमेरिकी पक्ष की ओर से चुनौतियाँ:
- अमेरिकी “10CFR810” प्राधिकरण अमेरिकी परमाणु
- को कठोर सुरक्षा उपायों के तहत भारत को उपकरण निर्यात करने की अनुमति देता है, लेकिन यह भारत के भीतर परमाणु उपकरणों के विनिर्माण या परमाणु डिजाइन कार्य के निष्पादन की अनुमति नहीं देता है।
- यह विनिर्माण मूल्य श्रृंखला में भाग लेने और संयुक्त परमाणु परियोजनाओं के लिए घटकों का सह-उत्पादन करने के भारतीय प्रयास में बाधा उत्पन्न करता है।
भारतीय पक्ष की ओर से चुनौतियाँ:
- भारत का परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 परमाणु दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजा देने, दायित्व तय करने और मुआवजा प्रक्रियाओं को निर्दिष्ट करने के लिए एक तंत्र स्थापित करता है।
- यह विधायन ऑपरेटरों की जिम्मेदारी उपकरण आपूर्तिकर्ताओं पर डालता है तथा जी.ई.-हिताची, वेस्टिंगहाउस और ओरानो (पूर्व में अरेवा) जैसे विदेशी विक्रेता भविष्य में जिम्मेदारी उठाने के डर से भारत के परमाणु क्षेत्र में निवेश करने को लेकर चिंता जता रहे हैं।
सहयोग के संभावित क्षेत्र :
महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल ( iCET):
- iCET दोनों पक्षों की चिंताओं का समाधान कर सकता है और भारत में नई परमाणु रिएक्टर परियोजनाओं के लिए विशेष रूप से अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों की तैनाती के माध्यम से परमाणु घटकों के संयुक्त निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
हल्के जल रिएक्टरों (LWR) में सहयोग : भारत मुख्य रूप से दबावयुक्त भारी जल रिएक्टरों (PHWRs) का उपयोग करता है जो कि अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों द्वारा उपयोग किए जाने वाले आधुनिक हल्के जल रिएक्टरों (LWR) की तुलना में पुराने हो रहे हैं।
- इस परमाणु समझौते के तहत भारत को उन्नत LWR प्रौद्योगिकी तक पहुंच मिल सकेगी, जिससे वर्तमान परमाणु परियोजनाओं से जुड़ी दक्षता संबंधी चुनौतियों का समाधान हो सकेगा।
चीन का मुकाबला : चीन छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) उद्योग में अग्रणी बनने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है जबकि बड़े रिएक्टरों के मामले में वह पीछे रहा है।
- भारत छोटे परमाणु रिएक्टरों (30 मेगावाट-300 मेगावाट) के विनिर्माण में अग्रणी बनना चाहता है, जो बड़े रिएक्टरों की तुलना में सस्ते और अधिक लचीले होते हैं।
- चीन SMRs को कूटनीतिक पहुंच के एक उपकरण के रूप में देखता है, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में।
- अमेरिका को भारत के कम लागत वाले विनिर्माण क्षेत्र से लाभ मिल सकता है, जिससे भारत को वैश्विक परमाणु बाजार में प्रतिस्पर्धा करने और चीनी प्रभाव का मुकाबला करने में सहायता मिलेगी।