संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने नागरिकों की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने हेतु कई दिशानिर्देश जारी किए हैं।

अन्य संबंधित जानकारी:

  • संविधान के अनुच्छेद 142  के तहत, उच्चतम न्यायालय ने ‘संरचना विध्वंस बनाम अन्य मामले’ में नागरिकों की संपत्ति ध्वस्तीकरण  के लिए ‘कानून की उचित प्रक्रिया’ का पालन सुनिश्चित करने हेतु दिशा-निर्देशों की एक श्रृंखला निर्धारित की।
  • ये दिशानिर्देश उस मामले में न्यायालय के फैसले का हिस्सा थे, जिसमें किसी अपराध में संपत्ति के मालिक की कथित संलिप्तता के लिए दंड के रूप में राज्य प्राधिकारियों द्वारा संपत्ति को ध्वस्त करने का मुद्दा उठाया गया था।
  • यह मामला उन याचिकाओं से संबंधित था, जिनमें आपराधिक गतिविधियों के आरोपियों  के घरों को ध्वस्त करने की “न्यायेतर प्रकृति ” की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि:

  • विवादास्पद प्रक्रिया : मनमाने ढंग से संपत्ति ध्वस्त करने के मुद्दे को अक्सर “बुलडोजर न्याय” के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसमें आपराधिक गतिविधियों के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के रूप ध्वस्तीकरण  किया जाता  हैं।
  • बुलडोजर न्याय: यह अपराधी  व्यक्तियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर/भारी मशीनरी का उपयोग करने की प्रक्रिया  को संदर्भित करता है (कानून की उचित प्रक्रिया के बिना)। इससे राज्य द्वारा दंडात्मक कार्रवाई की जाती है जो प्रक्रियात्मक और न्यायिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर देती है।
  • विभिन्न राज्यों में घटनाएं: यह कार्यवाही  उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में देखी गई है, जहां आरोपी व्यक्तियों के घरों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त कर दिया जाता है।
  • सांप्रदायिक तनाव: कई मामलों में, सांप्रदायिक हिंसा या विरोध के बाद तोड़फोड़ की गई, जिससे निष्पक्षता और वैधता पर बहस छिड़ गई। उदाहरण के लिए, वर्ष 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हिंसा के बाद संपत्ति नष्ट कर दी गईं।
  • कानूनी चुनौतियाँ: कई याचिकाएँ दायर की गईं, जिनमें से एक जमीयत-उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर की गई थी।   इसमें इस तरह के विध्वंस की न्यायेतर प्रकृति और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन पर चिंता जताई गई थी।
  • नोट: संविधान का अनुच्छेद 142:  उच्चतम न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक  डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है। 
  • उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश: नोटिस की आवश्यकताएं: प्राधिकारियों को किसी भी विध्वंस से पहले न्यूनतम 15 दिन का नोटिस देना होगा, जिसमें नोटिस में संरचना और विध्वंस के कारणों के बारे में विस्तृत जानकारी शामिल होनी चाहिए।
  • दस्तावेज़ीकरण प्रोटोकॉल: नोटिस को पंजीकृत डाक के माध्यम से भेजा जाना चाहिए और भवन के बाहरी हिस्से पर चिपका दिया जाना चाहिए साथ ही स्थानीय कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट को तत्काल ईमेल सूचना भी दी जानी चाहिए।
  • प्रशासनिक जिम्मेदारी: कलेक्टरों एवं जिला मजिस्ट्रेटों को ध्वस्तीकरण प्रक्रियाओं की निगरानी के लिए समर्पित नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा।
  • सुनवाई प्रक्रिया: व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है।  जिसमें कार्यवाही का विवरण उचित रूप से रिकार्ड किया जाएगा तथा विस्तृत दस्तावेजीकरण किया जाएगा।
  • आदेश विनिर्देश: अंतिम विध्वंस आदेश में प्रस्तुत तर्कों, विध्वंस के औचित्य तथा विध्वंस ही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प क्यों है, इसके  स्पष्टीकरण के लिएव्यापक जानकारी शामिल होनी चाहिए।
  • कार्यान्वयन समय-सीमा: अंतिम आदेश के बाद 15 दिन की छूट अवधि प्रदान की जानी चाहिए ताकि संपत्ति मालिकों को निर्माण हटाने या आदेश को कानूनी रूप से चुनौती देने का अवसर मिल सके।
  • वीडियो दस्तावेजीकरण: सभी विध्वंस कार्यवाहियों की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए तथा विस्तृत निरीक्षण और विध्वंस रिपोर्ट के साथ उसे संरक्षित किया जाना चाहिए।
  • जवाबदेही के उपाय: इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर जिम्मेदार प्राधिकारियों के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
  • संरचनात्मक मूल्यांकन: प्राधिकारियों को यह निर्धारित करना होगा कि क्या अनधिकृत संरचनाएं समझौता योग्य हैं और यह भी बताना होगा कि उनका पूर्ण विध्वंस क्यों आवश्यक है।
  • अधिकारों का संरक्षण: कार्यपालिका उचित न्यायिक प्रक्रिया के बिना किसी अभियुक्त को दोषी घोषित नहीं कर सकती तथा उसके घर को ध्वस्त नहीं कर सकती।

दिशानिर्देशों के अपवाद:

  • सार्वजनिक स्थान: ये दिशानिर्देश सड़कों, गलियों या फुटपाथों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत संरचनाओं पर लागू नहीं होते हैं।
  • रेलवे संपत्ति: रेलवे लाइनों से सटे ढांचे को इन दिशानिर्देशों से छूट दी गई है।
  • जल निकाय: नदियों या जल निकायों के निकट निर्माण इन दिशानिर्देशों के दायरे से बाहर है।
  • न्यायालय के आदेश: जिन मामलों में न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण के आदेश जारी किए जाते हैं, उन्हें इन दिशानिर्देशों से छूट दी गई है।

दिशानिर्देशों के समर्थन में तर्क:

  • संवैधानिक संरक्षण: दिशानिर्देशों का उद्देश्य मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘आश्रय के अधिकार’ की रक्षा करना है।
  • शक्तियों का पृथक्करण: न्यायालय इस बात पर बल  देता है कि कार्यकारी प्राधिकारी न्यायिक कार्य नहीं कर सकते तथा दोष या दंड का निर्धारण नहीं कर सकते।
  • मानवीय चिंताएं: न्यायालय ने कमजोर वर्गों पर पड़ने वाले प्रभाव को स्वीकार किया है तथा स्पष्ट किया है-  महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को विस्थापित होते देखना “कोई सुखद दृश्य नहीं” है।
  • पारदर्शिता की आवश्यकता : दिशानिर्देश यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी कार्य पारदर्शी हों और अधिकारी अपने निर्णयों के लिए जवाबदेह हों।

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:

  • प्रशासनिक प्रतिरोध: स्थानीय प्राधिकारियों को नई प्रक्रियागत आवश्यकताओं और समय-सीमा की बाध्यताओं के अनुकूल ढलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • संसाधन आवंटन: वीडियो दस्तावेजीकरण एवं उचित सूचना प्रदाय तंत्र के कार्यान्वयन के लिए अतिरिक्त संसाधनों और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है।
  • निगरानी तंत्र: विभिन्न राज्यों और नगर पालिकाओं में अनुपालन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण समन्वय चुनौतियां प्रस्तुत करता है।
  • कानूनी जागरूकता: संपत्ति मालिकों को  अधिकारों और  उपलब्ध नई प्रक्रियात्मक सुरक्षा के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।

आगे की राह:

  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: विध्वंस प्रक्रियाओं के दस्तावेजीकरण, अधिसूचना और निगरानी के लिए डिजिटल प्रणालियों का कार्यान्वयन।
  • क्षमता निर्माण: दिशानिर्देशों की उचित समझ और कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम।
  • जन जागरूकता: नागरिकों को उनके अधिकारों और नई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
  • शिकायत निवारण: इन दिशानिर्देशों के उल्लंघन के बारे में शिकायतों को दूर करने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करना।
  • निगरानी ढांचा: विभिन्न क्षेत्रों में अनुपालन पर नज़र रखने और उल्लंघन के स्वरूप की पहचान करने के लिए प्रणालियाँ विकसित करना।

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