संदर्भ:
एक शोध के अनुसार गर्म होते महासागरों में प्रोकैरियोट्स के पनपने की संभावना है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु परिवर्तन के प्रयासों पर असर होगा।
शोध के मुख्य निष्कर्ष:
- अध्ययन का उद्देश्य यह मूल्यांकन करना था कि जलवायु परिवर्तन प्रोकैरियोट्स के बायोमास और कार्बन उत्पादन को किस प्रकार प्रभावित करता है।
- प्रोकेरियोट्स के महासागरीय तापमान में वृद्धि के साथ फलने-फूलने की संभावना है, तथा प्रत्येक डिग्री तापमान में वृद्धि के साथ उनके बायोमास में लगभग 1.5% की कमी देखी जाती है, जबकि बड़े प्लवक, मछली और स्तनधारियों में 3-5% की गिरावट देखी जाती है।
- इस बदलाव से प्रोकैरियोट्स के वर्चस्व वाले समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो सकता है, जिससे मनुष्यों के लिए मछली की उपलब्धता संभावित रूप से कम हो सकती है।
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प्रोकैरियोट्स के बारे में:
- प्रोकेरियोट्स एककोशिकीय जीव हैं जिनमें नाभिक या कोशिकांग नहीं होते, इनमें बैक्टीरिया और आर्किया शामिल हैं।
- वे पृथ्वी के सबसे प्राचीन कोशिका-आधारित जीवन रूपों में से हैं और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से लेकर ध्रुवों तक वैश्विक स्तर पर पनपते हैं।
- प्रोकेरियोट्स समुद्री जीवन का 30% हिस्सा बनाते हैं और समुद्री पोषक चक्र के लिए आवश्यक हैं।
महासागरीय कार्बन स्तर को संतुलित करने में प्रोकैरियोट्स की भूमिका
- 200 मीटर की गहराई तक प्रतिवर्ष लगभग 20 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जित करते हैं , जो कि मनुष्यों के कार्बन उत्सर्जन से दोगुना है।
- इसे फाइटोप्लांकटन द्वारा संतुलित किया जाता है, जो कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करता है।
- प्रोकैरियोट्स और फाइटोप्लांकटन मिलकर समुद्री कार्बन स्तर को संतुलित करते हैं।
समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु पर प्रभाव:
- खाद्य श्रृंखला में व्यवधान: प्रोकैरियोट की वृद्धि से पोषक तत्व मछलियों से दूर हो सकते हैं, जिससे संभवतः मानव खाद्य स्रोत कम हो सकते हैं।
- कार्बन अवशोषण: बढ़ी हुई प्रोकैरियोट गतिविधि मानव कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करने की महासागर की क्षमता को कम कर सकती है।
- मछली स्टॉक में गिरावट का कम अनुमान: वर्तमान अनुमान वैश्विक मछली आबादी पर प्रभाव को कम आंक सकते हैं।
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