संदर्भ 

हाल ही में, विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund-WWF) ने लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (LPR), 2024 जारी की, जिसमें वैश्विक जैव विविधता संबंधी चिंतित करने वाले रुझान देखने को मिला है।

रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु 

प्रकृति के ह्रास  को मापना   

इस रिपोर्ट के अनुसार  वर्ष 1970 के बाद से निगरानी की गई वन्यजीव आबादी के औसत संख्या में 73 प्रतिशत की कमी आई। 

  • यह कमी 35,000 वन्यजीव आबादी और उभयचरों, पक्षियों, मछलियों, स्तनधारियों और सरीसृपों की 5,495 प्रजातियों को प्रभावित करती है।

वर्ष 1970 से  2020 के दौरान, मीठे पानी की प्रजातियों में 85 प्रतिशत की सबसे अधिक कमी, स्थलीय प्रजातियों की आबादी में 69 प्रतिशत और समुद्री प्रजातियों की आबादी में 56 प्रतिशत की कमी आई है ।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार, क्षेत्रीय स्तर पर, लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्रों में सबसे अधिक 95 प्रतिशत की कमी देखने को मिली, इसके बाद अफ्रीका का स्थान है, जहाँ 76 प्रतिशत की कमी देखी गई।

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वन्यजीव आबादी में 60 प्रतिशत की कमी देखी गयी।
  • इसके विपरीत, यूरोप में बहुत कम नुकसान देखने को मिला है , जबकि मध्य एशिया और उत्तरी अमेरिका में क्रमशः 35 प्रतिशत और 39 प्रतिशत की कमी देखी गई है ।

प्रमुख कारक: इसमें पर्यावास का क्षरण, संसाधनों का अतिदोहन, कीट एवं आक्रामक प्रजातियाँ शामिल हैं।

  • जलवायु परिवर्तन के कारण लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्रों में इनकी आबादी में कमी आई है, जबकि उत्तरी अमेरिका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में प्रदूषण इसका मुख्य कारण है।

इस रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि इस प्रवृत्ति के जारी रहने से विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं तथा  पृथ्वी की जीवन रक्षक प्रणालियां  अस्थिर हो सकती हैं।

विनाशकारी  टिपिंग प्वाइंट  

  • प्रवाल भित्तियों का विरंजन: व्यापक स्तर पर प्रवाल भित्तियों का विरंजन विश्व की 75 प्रतिशत से ज़्यादा प्रवालों को प्रभावित कर रहा  है, जो  अत्यंत गंभीर स्थिति तक  पहुँच गई हैं, जिससे तटीय समुदायों और जैव विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • अमेज़न वर्षावन  टिपिंग प्वाइंट से वायुमंडल में की कई टन कार्बन उत्सर्जित होगा, जिससे वैश्विक स्तर पर मौसम  पैटर्न में  बदलाव होगा । 
  • महासागरीय परिसंचरण में, ग्रीनलैंड के दक्षिण में एक वृत्ताकार धारा, उपध्रुवीय गाइरे के पतन से यूरोप और उत्तरी अमेरिका के  मौसम  पैटर्न में अप्रत्याशित परिवर्तन लाएगा।
  • हिममंडल (पृथ्वी के जमे हुए भाग) में, ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र का स्तर कई मीटर बढ़ जाएगा, जबकि स्थायी तुषार-भूमि (पर्माफ्रॉस्ट) के व्यापक स्तर पर पिघलने से बहुत अधिक मात्र में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों का उत्सर्जन होगा।

वैश्विक लक्ष्य और  प्रगति 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से आधे से अधिक के अपने लक्ष्य प्राप्त करने की संभावना नहीं है, उनमें से 30% या तो पहले ही चूक गए हैं या उनकी स्थिति 2015 की आधार रेखा से भी खराब है।

  • वर्ष 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से आधे से अधिक  लक्ष्यों  को प्राप्त करने की संभावना नहीं है। इनमें से 30 प्रतिशत प्राप्त नहीं किए जा सकें  हैं या इनकी स्थिति वर्ष 2015 की बेस लाइन से भी खराब है।
  • राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं के कारण सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में औसतन लगभग 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी, जिसके कारण अनेक विनाशकारी टिपिंग प्वाइंट बन जाएंगे।
  • इसके लिए निर्धारित राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीतियाँ और कार्य योजनाएँ अपर्याप्त हैं तथा उनमें वित्तीय और संस्थागत समर्थन का अभाव है।

संधारणीय समाधान

  • संरक्षण में परिवर्तन:  स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों को समर्थन देना जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके पास विश्व की लगभग एक-चौथाई भूमि का प्रबंधन, उपयोग या अधिग्रहण हैं। 
  • खाद्य प्रणाली में परिवर्तन: फसल की पैदावार, पशुधन  उत्पादकता, मत्स्य पालन और जलीय कृषि को अनुकूलित करके संधारणीय, प्रकृतिक आधारित  खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देना, जिससे   खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन दोनों सुनिश्चित हो सके।
  • खाद्यान की बर्बादी को कम करना चाहिए, क्योंकि वैश्विक स्तर पर 30 से 40 प्रतिशत खाद्यान बर्बाद हो जाता है, जो कुल कैलोरी का 25 प्रतिशत, कृषि भूमि और जल उपयोग का 20 प्रतिशत तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 4.4 प्रतिशत है।
  • ऊर्जा प्रणाली में परिवर्तन: ऊर्जा उत्पादन और खपत जलवायु परिवर्तन के मुख्य निर्धारक हैं, जो लोगों और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए, हमें जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ना चाहिए, ताकि वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को आधा किया जा सके।

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