संदर्भ:

आगरा की पारंपरिक कारीगरी, पच्चकारी (सांदूखे में पत्थर गोंदाई का काम), को आधिकारिक रूप से भूगोलिक संकेत (GI) टैग से सम्मानित किया गया है।

अधिक जानकारी:

  • GI पंजीकरण प्रक्रिया का भाग ‘A’ पूरा हो चुका है, जिसमें इस कला को आगरा की विशिष्ट परंपरा के रूप में मान्यता दी गई है।
  • अब भाग ‘B’ की प्रक्रिया चल रही है, जिसके पूरा होने पर इस कला से जुड़े कारीगर और उद्यमी अपने उत्पादों पर आधिकारिक तौर पर GI टैग का उपयोग कर सकेंगे।
  • पच्चकारी एक विशिष्ट कला है जिसमें रंगीन पत्थरों का उपयोग कर संगमरमर की सतह प र नाजुक और जटिल डिज़ाइन बनाए जाते हैं।
  • यह कला मुगल काल में आगरा में फली-फूली, जिसका भव्य रूप ताज महल, इतमाद-उद-दौला और अन्य ऐतिहासिक स्मारकों में देखा जा सकता है।
  • सरकार द्वारा पच्चकारी को GI टैग से सम्मानित करने से यह आगरा की सांस्कृतिक विरासत के रूप में मजबूत हुआ है, जिससे कारीगरों और उद्यमियों का मनोबल और व्यापार अवसर बढ़ेंगे।
  • GI टैग हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ युवाओं के लिए नए स्वरोजगार के अवसर भी प्रदान करेगा।
  • यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए व्यवसाय, ब्रांडिंग और मार्केटिंग में महत्वपूर्ण वृद्धि का अवसर प्रदान करता है।

GI टैग के बारे में:

  • GI टैग एक आधिकारिक प्रमाणीकरण चिह्न है जो उत्पाद को उसके विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जोड़ता है, चाहे वह देश, क्षेत्र या शहर हो।
  • जब कोई उत्पाद निर्धारित भौगोलिक मानकों को पूरा करता है, तो उसे सरकार से अनुमोदन प्राप्त होता है और वह उस स्थान के साथ जुड़ जाता है।
  • भारत में भूगोलिक संकेत प्रणाली 15 सितंबर 2003 को लागू की गई थी।
  • यह उत्पाद की पहचान की रक्षा करता है और उसके नाम के बिना अनुमति के उपयोग को रोकता है।
  • डार्जिलिंग चाय भारत का पहला ऐसा उत्पाद था जिसे GI टैग मिला।
Shares: