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सामान्य अध्ययन -3: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

संदर्भ: भारतीय वैज्ञानिकों ने एक स्वदेशी “सूक्ष्म” विकल्प विकसित किया है, जो मालिकाना CRISPR-Cas उपकरणों का सस्ता और प्रभावी वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करता है।

स्वदेशी जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी

  • भारतीय वैज्ञानिकों ने ट्रांसपोसॉन-संबद्ध प्रोटीन (TnpB) का उपयोग करके एक जीनोम-एडिटिंग टूल विकसित किया। TnpB प्रोटीन, CRISPR-Cas प्रणाली का छोटा और कम लागत वाला विकल्प है।
  • इस तकनीक का पेटेंट भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के पास है।
  • यह तकनीक पौधों में DNA को सटीकता से काटने के लिए एक आणविक कैंची के रूप में कार्य करती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • TnpB प्रोटीन Cas9 (1,000-1,400 अमीनो एसिड) की तुलना में आकार में बहुत छोटे (लगभग 400-500 अमीनो एसिड) होते हैं, जिससे इन्हें कोशिकाओं में पहुँचाना आसान होता है।
  • छोटे आकार के कारण वायरल वेक्टर का उपयोग करके सीधे कोशिका में इन्हें पहुँचाना संभव है, और इसके लिए जटिल टिशू कल्चर विधियों की आवश्यकता नहीं होती।
  • यह तकनीक किसी विदेशी DNA को प्रवेश कराए बिना स्थानीय पौधों के जीन को संपादित (एडिट) करती है और इसी कारण यह आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) से भिन्न है।

लाभ

  • यह तकनीक विदेशी बौद्धिक संपदा (IP) प्रतिबंधों से मुक्त है, जिससे इसकी लाइसेंसिंग लागत कम होती है।
  • यह, कृषि जैव प्रौद्योगिकी में स्वावलंबन को बढ़ावा देकर और संप्रभुता की रक्षा करके आत्मनिर्भर भारत की दिशा में हुई प्रगति को रेखांकित करती है।
  • यह किफायती वाणिज्यिक जीनोम-संपादित (GE) फसलों को संभव बनाती है, और छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभकारी है।
  • TnpB प्रोटीन के छोटे आकार के कारण यह आसानी से वायरल वेक्टर में पैक हो सकता है, और फिर इसे सीधे कोशिका में प्रवेश कराया जा सकता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें और जीन संपादित (GE) फसलों में अंतर:

Sources:
Indian Express
Alliance for Science

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