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सामान्य अध्ययन 3: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय।
संदर्भ: हाल ही में, लोकसभा की प्रवर समिति ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक 2025 की समीक्षा के बाद, अपनी रिपोर्ट संसद में चर्चा के लिए प्रस्तुत की।
IBC संशोधन विधेयक 2025 के मुख्य विशेषताएँ
- लेनदार द्वारा शुरू की गई दिवाला प्रक्रिया: यह विधेयक लेनदारों को व्यावसायिक विफलताओं के मामले में अदालत के बाहर दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति देता है। इससे न्यायिक प्रणाली पर बोझ कम होगा और मामलों का शीघ्र निपटान सुनिश्चित हो सकेगा।
- समूह और सीमा–पार दिवाला ढांचा: नए प्रावधान एक ही कॉर्पोरेट समूह के भीतर आने वाली कंपनियों के समन्वित समाधान की सुविधा प्रदान करेंगे और सीमा-पार दिवाला के लिए भारतीय नियमों को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाएंगे।
- प्रक्रियात्मक अनुशासन: मामले को स्वीकार करने के निर्णयों के लिए 14 दिनों की सख्त समय सीमा लागू की जाएगी, और किसी भी देरी के मामले में देरी का लिखित कारण देना अनिवार्य होगा।
- लेनदारों की भूमिका का विस्तार: इन संशोधनों का उद्देश्य दिवाला प्रक्रिया में लेनदारों के अधिकारों और भूमिकाओं को स्पष्ट करके उन्हें सशक्त बनाना है, जिससे इस पूरी प्रणाली में उनका विश्वास बढ़ेगा।
- परिभाषाओं में स्पष्टता: विधेयक में सुरक्षा हितों, सेवा प्रदाताओं और परिवर्जन लेनदेन (Avoidance Transactions) को अधिक स्पष्टता से परिभाषित किया गया है, जिससे कानून को लागू करने में होने वाली अस्पष्टताओं को कम करने में मदद मिलेगी।
- बेहतर निगरानी: यह विधेयक दिवाला प्रक्रियाओं में संशोधन करता है और पेशेवरों की अधिक श्रेणियों को शामिल करने के लिए भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) के निरीक्षण के दायरे का विस्तार करता है, जिससे शासन और अनुपालन में सुधार होगा।
प्रमुख सिफारिशें
- दिवाला अपीलों की समय सीमा: दिवाला अपीलों का निपटारा करने के लिए, संहिता की संबंधित धारा में संशोधन के माध्यम से राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के लिए तीन महीने की समय सीमा तय करने का प्रस्ताव दिया गया है।
- समावेशी परिभाषा: ‘सेवा प्रदाता’ शब्द की परिभाषा में उचित संशोधन किया जाए ताकि IBC के तहत प्रदान की गई संस्थाओं की सूची में ‘पंजीकृत मूल्यांकक’ (Registered Valuer) को शामिल किया जा सके।
- समाधान योजना का विस्तार: कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के संबंध में, समिति ने ‘समाधान योजना’ की परिभाषा को व्यापक बनाने का प्रस्ताव दिया है, ताकि CIRP से गुजर रहे एक कॉर्पोरेट देनदार के लिए एक से अधिक समाधान योजनाओं की अनुमति दी जा सके।
IBC संशोधन विधेयक 2025 का महत्त्व:
- समाधान के समय को घटाकर 6-7 महीने करने से वसूली दर बेहतर होगी, विशेष रूप से ‘ग्रुप इंसॉल्वेंसी’ (समूह दिवाला) की शुरुआत के बाद।
- सख्त समय सीमा से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि समाधान और परिसमापन एक वर्ष के भीतर पूरे हो जाएं, जैसा कि कानून में निर्धारित है।
- IBC प्रक्रिया में ‘क्लीन स्लेट सिद्धांत’ और सख्त समय सीमा NPA (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों) की स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी।
- कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के तहत ‘समाधान योजना’ की परिभाषा को व्यापक बनाने से, CIRP से गुजर रहे एक कॉर्पोरेट देनदार के लिए एक से अधिक समाधान योजनाओं की अनुमति मिल सकेगी।
- यह विधेयक भारत के दिवाला ढांचे को आधुनिक बनाने का प्रयास करता है ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम नियमों के अनुरूप बनाया जा सके, जिससे इस पर निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
