संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है कि अपराध की गंभीरता के बावजूद दंडात्मक उपाय के रूप में जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि

  • यह आदेश जावेद गुलाम नबी शेख के विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA),1967  के तहत बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देने से इनकार करने के विरुद्ध दायर की गई अपील में आया है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कार्यवाही को स्थगित करने के राष्ट्रीय आसूचना एजेंसी (National Investigation Agency-NIA) के अनुरोध को खारिज कर दिया तथा शेख को रिहा करने का आदेश दिया, यह ध्यान देते हुए कि उन्हें बिना आरोपपत्र दाखिल किए ही लंबे समय से हिरासत में रखा गया था। 
  • गंभीर आरोपों के बावजूद, न्यायालय ने इस सिद्धांत की पुनरावृति की कि जमानत को सजा के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों द्वारा समय के साथ इस कानूनी मानक के पालन में चूक को भी रेखांकित किया।

प्रमुख बिंदु 

इसने त्वरित सुनवाई के अधिकारों का संरक्षण किया। 

  • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यदि राज्य, अभियोजन एजेंसियाँ या न्यायालयों द्वारा शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, तो कथित अपराध की गंभीरता के आधार पर जमानत पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए।
  1. शीर्ष न्यायालय ने, हाल ही में मोहम्मद मुस्लिम बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र), 2023 में दिए गए फैसले का संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया है कि यदि मुकदमे में अनुचित देरी होती है, तो स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, (NDPS) 1985 जैसे कठोर कानूनों के तहत भी जमानत दी जा सकती है।
  2. इसके अतिरिक्त, भारत संघ बनाम के.ए. नजीब (2021) मामले के निर्णय को पुनर्स्थापित किया गया, जिसमें कहा गया था कि UAPA कानून भी न्यायालयों को मुकदमे के अधिक समय तक लंबित के कारण अभियुक्त को जमानत देने से नहीं रोकता है।

जमानत अस्वीकार करने के परिणाम

  • उच्चतम न्यायालय ने चेतावनी दी है कि जमानत देने से इनकार करने पर अभियुक्त यानी आरोपी व्यक्ति (जिसे दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष माना जाता है) को विधि-विरुद्ध तरीके से कारागार में रखा जाता है, और इस प्रकार उसे “कारावास” की स्थिति में डाल दिया जाता है। 

वैधानिक अधिकारों को कायम रखना

  • पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, कथित अपराध की प्रकृति चाहे जो भी हो, त्वरित सुनवाई का अधिकार सार्वभौमिक रूप से लागू होता है।
  1. अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। यह मनमाने ढंग से जीवन और स्वतंत्रता से वंचित करने के खिलाफ सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करता है।

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