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सामान्य अध्ययन-3: बफर स्टॉक और खाद्य सुरक्षा से संबंधित विषय।

संदर्भ: हाल ही में, खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपनी द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर (SOFA) 2025 रिपोर्ट जारी की, जिसमें मानव-जनित भूमि क्षरण के कारण वैश्विक स्तर पर उपज को होने वाले नुकसान में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

समस्या का दायरा

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 1.7 बिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ मानव-जनित भूमि क्षरण के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट आ रही है।
  • पूर्वी और दक्षिणी एशिया में ऐसी सबसे बड़ी आबादी है जो भूमि क्षरण से उपज को होने वाले नुकसान से प्रभावित होती है।
  • भारत उन देशों में शामिल है जहाँ मानव-जनित भूमि क्षरण के कारण उपज में सबसे अधिक अंतर पाया गया है।
  • प्रतिवर्ष लगभग 3.6 मिलियन हेक्टेयर फसली भूमि को परती छोड़ दिया जाता है और भूमि क्षरण इस प्रवृत्ति में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • सर्वाधिक संवेदनशील हॉटस्पॉट दक्षिणी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में हैं, जहाँ भूमि क्षरण गरीबी और बाल विकास में बाधा (अर्थात् बौनापन) से जुड़ा हुआ है।
  • पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 47 मिलियन बच्चे, जिनका विकास रुक गया है, गंभीर रूप से क्षरित उपज के नुकसान वाले क्षेत्रों में रहते हैं।

वनों की कटाई और भूमि उपयोग के रुझान

  • कृषि विस्तार वैश्विक स्तर पर वनों की कटाई का मुख्य कारण बना हुआ है और सदियों से भूमि उपयोग के स्वरूप को प्रभावित करता रहा है।
  • 2001 और 2023 के बीच वैश्विक कृषि भूमि में 78 मिलियन हेक्टेयर की कमी आई, जबकि फसली भूमि का क्षेत्रफल भी उतनी ही मात्रा में बढ़ा।
  • उप-सहारा अफ्रीका में 69 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि का विस्तार और 72 मिलियन हेक्टेयर वनों का नुकसान दर्ज किया गया।

पुनर्स्थापन और खाद्य सुरक्षा क्षमता

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि मानव-जनित क्षरण के केवल 10 प्रतिशत को रोकने से प्रतिवर्ष 154 मिलियन लोगों के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन किया जा सकता है।
  • परती फसली भूमि को बहाल करने से संभावित रूप से 292 से 476 मिलियन लोगों को खाद्य की आपूर्ति हो सकती है।

खेत का आकार और प्रबंधन का पैटर्न

  • खेत के आकार का भूमि प्रबंधन और खाद्य उत्पादन परिणामों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
  • बड़े खेत ऐसी तकनीक में निवेश करते हैं जो उत्पादकता में सुधार लाती है, लेकिन समय के साथ भूमि क्षरण को और बढ़ा सकती है।
  • छोटे खेत प्रभावित होने योग्य अर्थात् अस्थिर भूमि पर होते हैं और उनके स्वामियों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते| इस प्रकार ये टिकाऊ भूमि उपयोग की संभावना को सीमित करते हैं।
  • विश्व के लगभग 85 प्रतिशत खेतों का क्षेत्रफल 2 हेक्टेयर से कम है और केवल 9 प्रतिशत कृषि भूमि पर ही खेती होती है।
  • केवल 0.1 प्रतिशत खेतों का क्षेत्रफल 1,000 हेक्टेयर से अधिक है, फिर भी विश्व की लगभग आधी खेती योग्य भूमि पर उनका नियंत्रण है।
  • यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बड़े खेतों में भारी मात्रा में आगत का प्रयोग किया जाता है जिससे पैदावार उच्च बनी रहती है| इससे भूमि क्षरण तो छिप जाता है, लेकिन आर्थिक और पारिस्थितिक लागत बढ़ जाती है।

Source:
Down To Earth
Open Knowledge
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