संदर्भ:
थाईलैंड का समलैंगिक विवाह कानून 120 दिन की छूट अवधि के बाद 23 जनवरी 2025 को लागू हो जायेगा।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस कदम का उद्देश्य एलजीबीटीक्यू जोड़ों को वही कानूनी अधिकार प्रदान करना है जो मौजूदा नागरिक और वाणिज्यिक संहिता के तहत विषमलैंगिक जोड़ों को प्राप्त हैं।
- नये कानून में विवाह की न्यूनतम आयु भी 17 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
- विदेशी समलैंगिक जोड़े अब थाईलैंड में अपने विवाह का पंजीकरण करा सकते हैं, बशर्ते वे यह साबित कर दें कि वे पहले से विवाहित नहीं हैं।
कानून के बारे में
- मार्च 2024 में थाईलैंड की प्रतिनिधि सभा ने समलैंगिक विवाह को मजबूत मत (400 से 10) से मंजूरी दी थी। जून में सीनेट ने (130 से 4), और अगस्त में राजा वजीरालोंगकोर्न ने भी इसे मंजूरी दी थी।
- थाई नागरिक और वाणिज्यिक संहिता में परिवर्तन करने वाला यह नया कानून, 2024 के अंत में राजा द्वारा आधिकारिक रूप से अनुमोदित होने के बाद, 120 दिनों की छूट अवधि के बाद 23 जनवरी, 2025 को प्रभावी होगा।
- इसमें “पति” और “पत्नी” जैसे शब्दों के स्थान पर “जीवनसाथी” और “व्यक्ति” जैसे लिंग-तटस्थ शब्दों को शामिल किया गया है।
इस कानून की सीमाएं
प्रगति के बावजूद, कानून में कुछ द्विआधारी लिंग श्रेणियां अब भी मौजूद हैं।
- उदाहरण के लिए, धारा 1453 किसी महिला को उसके पति की मृत्यु या तलाक के बाद 310 दिनों के भीतर किसी अन्य पुरुष से पुनर्विवाह करने से रोकती है।
- इसका उद्देश्य पितृत्व संबंधी मुद्दों का समाधान करना है, लेकिन यह समलैंगिक जोड़ों के लिए बाधा उत्पन्न करता है।
नया विवाह कानून थाईलैंड के चार दक्षिणी प्रांतों पर लागू नहीं होगा, जहां पारिवारिक मामलों पर इस्लामी कानून लागू होता है।
वर्तमान सरोगेसी कानून केवल विषमलैंगिक दम्पतियों को ही अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी की अनुमति देता है।
थाईलैंड में आधिकारिक दस्तावेजों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की लिंग पहचान को मान्यता देने के लिए स्पष्ट रूपरेखा का भी अभाव है।
समलैंगिक विवाह पर भारत का रुख
- भारतीय कानूनी व्यवस्था समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देती है। विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 (c) विवाह को केवल ‘पुरुष’ और ‘महिला’ के बीच के मिलन तक सीमित करती है।
- पुट्टस्वामी मामले (2017) में , भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। इसने यह भी माना कि “यौन अभिविन्यास निजता का एक अनिवार्य गुण है।”
- नवतेज सिंह जौहर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द करके सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया ।
- सुप्रियो बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 (c) को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं को स्वीकार कर लिया ।
- मई 2023 में, भारत के सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को बताया कि समान लिंग वाले भागीदारों को सीमित कानूनी अधिकार प्रदान करने के संबंध में अध्ययन करने के लिए एक संसदीय समिति का गठन किया जाएगा।
- 17 अक्टूबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से इनकार कर दिया और कहा कि देश में समलैंगिक विवाह की वैधता पर फैसला भारत की संसद को करना है। साथ ही कहा गया कि LGBTQ+ लोगों के अधिकारों को बरकरार रखा जाना चाहिए।