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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
संदर्भ: हाल ही में, CSIR -CCMB हैदराबाद ने पाया कि कई जीवाणु अपनी कोशिका भित्ति बनाते समय गलतियाँ करते हैं।
अन्य संबंधित जानकारी
- जीवाणु कभी-कभी सही अमीनो एसिड L -एलानिन का उपयोग करने के बजाय, संरचनात्मक रूप से इसके समान दिखने वाले ग्लाइसिन नामक अमीनो एसिड का उपयोग करते हैं।
- यह छोटा सा परिवर्तन उनकी कोशिका भित्ति को कमजोर कर देता है जिससे वे एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- ये निष्कर्ष प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
- वैज्ञानिकों ने पाया है कि जीवाणु अपनी कोशिका भित्ति को ठीक से बनाए रखने के लिए PgeF (Peptidoglycan Editing Factor) नामक एक विशेष एंजाइम का उपयोग करते हैं।
- उन्होंने जीवाणु के जीन का अध्ययन करके और अणुओं का विश्लेषण करने के लिए उन्नत उपकरणों का उपयोग करके यह पता लगाया।
- मनुष्यों में भी एक ऐसा ही एंजाइम पाया जाता है, जिसे LACC1 कहा जाता है।
- यह एंजाइम कई सूजन (autoinflammatory) संबंधी बीमारियों से जुड़ा है, जहाँ प्रतिरक्षा लो अतिसक्रिय हो जाता है।
- कोशिका भित्ति के अध्ययन से वैज्ञानिकों को जीवाणु से निपटने के लिए नई दवा विकसित करने में मदद मिलेगी।
जीवाणु कोशिका भित्ति के बारे में

- जीवाणु कोशिका भित्ति शर्करा और अमीनो एसिड की छोटी श्रृंखलाओं से बनी होती है जिन्हें पेप्टिडोग्लाइकन (peptidoglycan) कहा जाता है।
- इसमें छोटे पेप्टाइड्स द्वारा परस्पर जुड़े हुए कई शर्करा पॉलिमर (बहुलक) होते हैं।
- पेप्टिडोग्लाइकन परत जीवाणु कोशिकाद्रव्य झिल्ली को जूट के थैले की तरह घेरे रहती है।
- इस संरचना के भीतर पेप्टाइड्स विभिन्न तरीकों से परस्पर जुड़े होते हैं, विशेष रूप से पड़ोसी पेप्टाइड श्रृंखलाओं पर अमीनो एसिड अवशेषों के बीच विशिष्ट बंधों के माध्यम से।
- ऐसा ही एक दुर्लभ घटक, जो केवल जीवाणु कोशिका भित्ति में पाया जाता है, मेसो-डायमिनोपिमेलिक एसिड (mDAP) है।
- यह मनुष्यों सहित अन्य जीवन रूपों में अनुपस्थित है, यही कारण है कि कई एंटीबायोटिक्स इसे लक्षित करते हैं।
- पेप्टिडोग्लाइकन कई समान उप-इकाइयों से बना होता है।
- गुहा (sacculus) के भीतर प्रत्येक उपइकाई में दो शर्करा व्युत्पन्न, N -एसिटाइलग्लूकोसामाइन (NAG), N -एसिटाइलमुरैमिक एसिड (NAM) और कई अलग-अलग अमीनो एसिड होते हैं।
- यह आकार, शक्ति और सुरक्षा प्रदान करता है। यह जीवित रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रमुख लक्ष्य भी है।
CCMB के बारे में
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के तहत 1977 में स्थापित कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (CCMB), हैदराबाद, तेलंगाना में स्थित है।
- कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान में उन्नत अनुसंधान के लिए एक केंद्र स्थापित करने का विचार प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और CCMB की प्रथम निदेशक डॉ. पुष्पा मित्रा भार्गव द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- यूनेस्को के वैश्विक आणविक एवं कोशिका जीव विज्ञान नेटवर्क ने इसे “उत्कृष्टता केंद्र” के रूप में मान्यता दी है।