संदर्भ:
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक को घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक (D-SIBs) के रूप में बरकरार रखा है।
अन्य संबंधित जानकारी
- बकेट आवंटन: एसबीआई को बकेट 4 में, एचडीएफसी बैंक को बकेट 3 में तथा आईसीआईसीआई बैंक को बकेट 1 में रखा गया है जो उनके संस्थागत महत्व के विभिन्न स्तरों को दर्शाता है।
- पूंजी समायोजन : एसबीआई के लिए अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर 1 (CET1) आवश्यकता 0.80%, एचडीएफसी बैंक का 0.40% तथा आईसीआईसीआई बैंक को 0.20% जोखिम-भारित परिसंपत्तियां बनाए रखनी होंगी।CET1 एक पूंजी माप है जो वित्तीय संस्थाओं के लिए नियामक पूंजी की उच्चतम गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करता है।
- कार्यान्वयन अवधि : एसबीआई और एचडीएफसी बैंक के लिए उच्च D-SIBs अधिभार 1 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगा।
D-SIBs के बारे में
परिभाषा: D-SIBs वे बैंक हैं जिनका आकार, जटिलता और अंतर्संबंध उन्हें बैंकिंग प्रणाली के निर्बाध संचालन के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं।
प्रणालीगत प्रभाव: इनकी विफलता आवश्यक बैंकिंग सेवाओं और समग्र आर्थिक गतिविधि में महत्वपूर्ण व्यवधान पैदा कर सकती है।
जोखिम प्रबंधन: इन बैंकों को संस्थागत, नैतिक जोखिमों से निपटने के लिए अतिरिक्त नीतिगत उपायों की आवश्यकता होती है।
बाजार की अवधारणा: इन्हे ‘टू-बिग टू-फेल’(TBTF), माना जाता है जिससे संकट के समय सरकार से सहायता की उम्मीद पैदा होती है।
बकेट-आधारित प्रणाली: पूंजी अधिभार बकेट प्लेसमेंट के आधार पर 0.20% से 0.80% तक भिन्न होता है।
- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को उनके जोखिम प्रोफाइल और पूंजी आवश्यकताओं के आधार पर पांच श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:
- यह वर्गीकरण मुख्य रूप से उनके अतिरिक्त CET1 अनुपात और जोखिम भारित परिसंपत्तियों (आरडब्ल्यूए) पर आधारित है।
- बकेट 1 में शामिल बैंकों को न्यूनतम CET1 पूंजी अधिभार बनाए रखना होगा जबकि बकेट 5 में शामिल बैंकों को उच्चतम CET1 बफर बनाए रखना होगा।
विनियामक निरीक्षण: D-SIBs को अधिक पर्यवेक्षण का सामना करना पड़ता है तथा उन्हें नियमित बैंकों की तुलना में अधिक पूंजी भंडार बनाए रखना पड़ता है।
पृष्ठभूमि
- रूपरेखा : आरबीआई ने जुलाई 2014 में D-SIBs से निपटने के लिए रूपरेखा जारी की।
- प्रथम सूचीबद्ध बैंक: एसबीआई 2015 में D-SIBs के रूप में नामित होने वाला पहला बैंक था। आईसीआईसीआई बैंक को 2016 तथा एचडीएफसी बैंक को 2017 में शामिल किया गया।
- नियमित विनियमन : आरबीआई 2015 से प्रतिवर्ष D-SIBs वर्गीकरण कर रहा है।
महत्व
- वित्तीय स्थिरता: बैंकिंग क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में D-SIBs महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- आर्थिक प्रभाव: अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए इनका निरंतर संचालन आवश्यक है।
- बाज़ार में विश्वास: इनकी स्थिति बैंकिंग प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखने में मदद करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व : D-SIBs दर्जा प्राप्त बैंक वैश्विक बाजारों विश्वसनीयता बढ़ाता है।
चयन मानदंड और प्रक्रिया
- आकार का आकलन: सकल घरेलू उत्पाद के 2% से अधिक ऋण वाले बैंकों को D-SIBs के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है।
- मूल्यांकन मापदंड: मूल्यांकन में अंतर-न्यायक्षेत्रीय गतिविधियां, जटिलता, प्रतिस्थापनीयता और अंतर्संबंध शामिल हैं।
- दो-चरणीय प्रक्रिया: प्रारंभिक नमूना चयन के बाद विस्तृत प्रणालीगत महत्व गणना।
- स्कोरिंग प्रणाली: बैंकों को उनकी बकेट प्लेसमेंट निर्धारित करने के लिए प्रणालीगत महत्व अंक प्रदान किए जाते हैं।
- नियमित समीक्षा: पहचान और समीक्षा प्रक्रिया कम से कम हर तीन साल में होती है।
D-SIBs के लाभ:
- बाजार लाभ: D-SIBs को अपनी स्थिति के कारण वित्तपोषण बाजारों में कुछ लाभ प्राप्त होते हैं।
- स्थिर परिचालन: उन्नत विनियामक निगरानी से अधिक स्थिर परिचालन सुनिश्चित होता है।
- जोखिम प्रबंधन: मजबूत जोखिम प्रबंधन ढांचा विफलताओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
- प्रणालीगत सुरक्षा: अतिरिक्त पूंजी आवश्यकताएं बेहतर आघात अवशोषण क्षमता का निर्माण करती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: D-SIBs दर्जा वैश्विक बैंकिंग व्यवस्था में मान्यता प्रदान करता है।
आगे की राह
- गतिशील ढांचा: D-SIBs ढांचे के निरंतर विकास की आवश्यकता।
- जोखिम प्रबंधन : प्रणालीगत जोखिम प्रबंधन के लिए बेहतर उपकरणों का विकास।
- अंतर्राष्ट्रीय संरेखण: वैश्विक बैंकिंग मानकों के साथ सामंजस्य।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: निगरानी और अनुपालन के लिए प्रौद्योगिकी का उन्नत उपयोग।
वैश्विक SIBs:
- उत्पत्ति: वैश्विक SIBs का विचार 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट की प्रतिक्रियास्वरूप आया, जब FSB ने 2011 में G-SIBs की पहली सूची प्रकाशित की थी।
- वर्तमान स्थिति: 2023 FSB सूची में 29 वैश्विक प्रणालीबद्ध रूप से महत्वपूर्ण बैंक (G-SIBs ) शामिल हैं।
- प्रमुख संस्था: इसमें जेपी मॉर्गन चेस, बैंक ऑफ अमेरिका, एचएसबीसी और बीएनपी पारिबा जैसे संस्थान शामिल हैं।
- भारतीय संदर्भ: भारत में कार्यरत विदेशी G-SIBs को आनुपातिक CET1 पूंजी बनाए रखनी होगी।
- अंतर्राष्ट्रीय ढांचा: G-SIBs वैश्विक रूप से समन्वित नियामक मानकों का पालन करते हैं।
वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB ):
- वैश्विक समन्वय: FSB, G-SIBs की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय प्राधिकारियों के साथ समन्वय करता है।
- वार्षिक मूल्यांकन: वार्षिक आंकड़ों के आधार पर G-SIBs की वार्षिक सूची प्रकाशित करता है।
- कार्यप्रणाली विकास: संस्थागत महत्व के लिए मूल्यांकन कार्यप्रणाली का विकास एवं अद्यतनीकरण।
बेसल III मानदंड:
- बेसल III मानदंड अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग विनियमों का एक समूह है।
- उद्देश्य: बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता और लचीलेपन को मजबूत करना।
- उत्पत्ति: ये मानदंड 2007-2008 के वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) द्वारा विकसित किए गए थे।