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 सामान्य अध्ययन-2: केंद्र और राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति-संवेदनशील वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति-संवेदनशील वर्गों के संरक्षण और बेहतरी के लिए गठित तंत्र, कानून, संस्थाएं और निकाय।

संदर्भ: हाल ही में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने आंकड़े जारी किए जो दर्शाते हैं कि भारत में केंद्र सरकार के कार्यबल में दिव्यांगजनों (PwD) का प्रतिनिधित्व एक दशक से अधिक समय से लगभग 1% पर स्थिर बना हुआ है।

आँकड़ों के मुख्य बिंदु

  • स्थिर प्रतिनिधित्व: कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के आंकड़ों के अनुसार, केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में दिव्यांग कर्मचारियों की संख्या 2011 से 13,000 से 22,000 के बीच रही है, जो सभी पदों का 0.5% से 1.1% है।
  • दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व: कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2022 तक, केंद्रीय मंत्रालयों में दिव्यांगजनों की संख्या 21,874 (1.15%) थी। उनका सबसे अधिक प्रतिनिधित्व 1.93% ग्रुप सी (सफाई कर्मचारी) में, 1.53% ग्रुप बी में, 1.1% ग्रुप सी (गैर-सफाई कर्मचारी) में और 1%  ग्रुप ए में था। 2011 में, उनकी संख्या 15,747 थी, जो कुल कार्यबल के 1% से भी कम थी।
  • मामूली वृद्धि: निरपेक्ष रूप से, केंद्र सरकार के पदों पर दिव्यांग कर्मचारियों की संख्या 2016 में 20,000 से बढ़कर 2022 में 22,000 हो गई।
  • सीटों के आवंटन में अस्पष्टता: हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर चिंता जताई कि मेरिट के आधार पर अर्हता प्राप्त दिव्यांगजनों (PwDs) की गणना आरक्षित पदों में की  की जा रही है और केंद्र से जवाब तलब किया है कि क्या ऐसे उम्मीदवारों को अनारक्षित सीटों पर स्थानांतरित किया गया है ताकि श्रेणी के अन्य लोग कोटे से लाभान्वित हो सकें।

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016

  • 1995 के अधिनियम को प्रतिस्थापित करता है: यह अधिनियम निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करता है। यह दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्रीय कन्वेंशन (UNCRPD) के दायित्वों को पूरा करता है। भारत, UNCRPD का हस्ताक्षरकर्ता है।
  • दिव्यांगता की परिभाषा का विस्तार: अधिनियम ने मान्यता प्राप्त दिव्यांगताओं की संख्या 7 से बढ़ाकर 21 कर दी है। इसमें हीमोफीलिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी स्थितियों को शामिल किया गया है।
  • शिक्षा और रोजगार में आरक्षण: मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटों में 5% आरक्षण और सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • मानक विकलांगता: किसी व्यक्ति को तब मानक दिव्यांग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है यदि उसमें निर्दिष्ट दिव्यांगता का कम से कम 40% हो।
  • संरक्षकता: अधिनियम के तहत जिला न्यायालय द्वारा संरक्षकता प्रदान करने का उल्लेख है जिसके अंतर्गत निर्णय, संरक्षक और दिव्यांगजन द्वारा संयुक्त रूप से लिए जाएंगे।
  • निःशुल्क शिक्षा का अधिकार: 6 से 18 वर्ष की आयु के बीच मानक दिव्यांगता वाले प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार होगा।

निम्न प्रतिनिधित्व के कारण

  • कार्यान्वयन में खामियाँ: कई मंत्रालय सक्रिय रूप से दिव्यांगजनों की नियुक्ति नहीं करते हैं या उनके लिए उचित रूप से पदों की पहचान और उनका निर्धारण नहीं करते हैं।
  • नियुक्ति संबंधी बाधाएँ: पहुँच रहित भौतिक अवसंरचना, उचित आवास का अभाव और नौकरी की सख्त शर्तों के कारण विभिन्न प्रकार की दिव्यांग श्रेणी के व्यक्ति कार्यबल से बाहर हो जाते हैं।
  • अकुशल निगरानी और जवाबदेही: हालाँकि दिव्यांगजनों से संबंधित आँकड़े जुटाए जाते हैं, लेकिन जब कोटा की शर्ते पूरी नहीं होती हैं तो उन पर बहुत कम अनुवर्ती कार्रवाई या सुधारात्मक कार्रवाई होती है।
  • सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियाँ: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल विकास तक सीमित पहुँच और सामाजिक उपेक्षा के कारण उनकी रोज़गार प्राप्त करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • रिक्तियों/पदों की जानकारी न होना: कई दिव्यांगजनों को अपने अधिकारों और उनके लिए आरक्षित रिक्तियों/पदों की जानकारी नहीं होती है।

आगे की राह

  • पदों की सिलसिलेवार पहचान: सभी श्रेणियों के दिव्यांगजनों के लिए उपयुक्त पदों का निर्धारण करने हेतु सभी संवर्गों (cadres) की व्यापक समीक्षा करना।
  • बेहतर पहुँच: साथ ही स्क्रीन रीडर, स्क्राइब और अनुकूली उपकरणों जैसी सहायता उपलब्ध कराने के साथ ही कार्यालयों, परीक्षाओं और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तक पूर्ण पहुँच सुनिश्चित करना।
  • क्षमता निर्माण और कौशल विकास: रोज़गार क्षमता में सुधार के लिए विश्वविद्यालयों, आईआईटी और कौशल केंद्रों के साथ साझेदारी के माध्यम से लक्षित प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल प्रदान करना।
  • जवाबदेही और निगरानी: मंत्रालयों से वार्षिक दिव्यांगजन नियुक्ति रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनिवार्यता और आरक्षण मानदंडों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान करना।
  • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की सशक्त निगरानी: कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को पारदर्शिता के लिए अद्यतन डेटा रखना चाहिए, अनुपालन का ऑडिट करना चाहिए और विभागवार प्रदर्शन प्रकाशित करना चाहिए।

स्रोत:
The Hindu
Social Welfare

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