संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन
संदर्भ:
वार्षिक जलपक्षी गणना (Annual Waterbird Census – AWC) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में ओखला पक्षी अभ्यारण्य में जलपक्षियों की संख्या में भारी गिरावट पाई गई — 2020 में 8,776 से घटकर 2024 में केवल 3,380 रह गई।
अन्य संबंधित जानकारी
• ओखला पक्षी अभ्यारण्य (OBS) में पक्षियों की संख्या में आई गिरावट ने महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं को बाधित किया है, जिससे जैव विविधता पर संकट उत्पन्न हो गया है।
• यह गिरावट देशभर के शहरी आर्द्रभूमियों (Urban Wetlands) पर मंडरा रहे खतरों को दर्शाती है।
• यह इस बात का संकेत भी है कि तेज़ी से होते शहरीकरण के बीच मानवता का प्रकृति से अस्थिर और असंवेदनशील संबंध किस प्रकार पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है।
ओखला पक्षी अभ्यारण्य (OBS)
• 1990 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ओखला पक्षी अभ्यारण्य को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।
• यह 3.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और इसे भारत के महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (Important Bird Areas – IBAs) में गिना जाता है।
• यह यमुना नदी पर स्थित है और प्रवासी पक्षियों के लिए प्रजनन, भोजन की खोज और विश्राम स्थल के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ओखला पक्षी अभ्यारण्य के क्षरण के प्रमुख कारण:
- अवैध अतिक्रमण और अवसंरचनात्मक विकास: ओखला पक्षी अभयारण्य के आसपास अतिक्रमण, जो कि निकटवर्ती बस्तियों द्वारा अवैध तथा वन विभाग द्वारा वैध है, इसके पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है।
- पूर्वी दिशा में बने किओस्क, सड़कें और ऊँची इमारतें पक्षियों के प्राकृतिक निवास स्थान को बाधित करती हैं।
- 2015 में पर्यावरण मंत्रालय ने OBS के चारों ओर इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित किया, लेकिन मानक 1 किमी की सीमा के बजाय केवल कुछ मीटर की ही बफर ज़ोन बनाई गई, जिससे शहरी विस्तार (Urban Sprawl) को बढ़ावा मिला।
- प्रदूषण: अनट्रीटेड सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट यमुना नदी को अत्यधिक प्रदूषित कर रहे हैं — 2020 में BOD स्तर 58 mg/l रहा, जो कि स्वीकृत सीमा 3 mg/l से लगभग 20 गुना अधिक है।
- राजमार्गों और पुलों से घिरे OBS में शोर प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है।
- कुप्रबंधन (Mismanagement): प्रशासनिक उपेक्षा के कारण पक्षी अभ्यारण्य की पारिस्थितिक आवश्यकताओं की अनदेखी की जा रही है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वर्षा के बदलते पैटर्न और सूखे की आवृत्ति में वृद्धि ने OBS की जल-स्तर की स्थिरता को प्रभावित किया है।
- प्रजातिगत असंतुलन (Species Unrest): फलभक्षी पक्षी (Frugivores) बीज फैलाव में मदद करते हैं और मूल वनस्पति की पुनः उत्पत्ति में सहायक होते हैं।
- इनकी अनुपस्थिति के कारण जलकुंभी (water hyacinth) और टाइफा जैसी आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive species) तेजी से फैल रही हैं, जिससे पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर संकट उत्पन्न हो गया है।
आगे की राह:
- अंतरराष्ट्रीय नदी पुनर्जीवन मॉडल को अपनाना, थेम्स (Thames) और राइन (Rhine) जैसी नदियों के सफल पुनर्जीवन प्रयासों से सीख लेते हुए यमुना की स्वच्छता और पुनरुद्धार के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
- सीवेज और अपशिष्ट प्रबंधन:शहरी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार (treatment) कर ही जल निकायों में प्रवाह सुनिश्चित किया जाए।
- ओखला बैराज से निरंतर जल प्रवाह सुनिश्चित करके, आक्रामक प्रजातियों को हटाकर, तथा पक्षी आबादी को सहारा देने के लिए देशी फलदार वृक्ष लगाकर आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य को बहाल करना।
- वैज्ञानिक प्रबंधन योजनाएँ बनाना और लागू करना, OBS के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित योजनाएँ, जिनमें नियमित निगरानी, आक्रामक प्रजाति नियंत्रण, आवास पुनर्स्थापन और जल प्रबंधन शामिल हों।