संदर्भ:
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सत्र में भाग लेने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने हाल ही में नजफगढ़ में एक फार्म स्थल का दौरा किया, जहां ‘एग्रीवोल्टेइक फार्मिंग सिस्टम’ के व्यावहारिक कार्यान्वयन का प्रदर्शन किया गया।
अन्य संबंधित जानकारी
- अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी: भारत की अध्यक्षता और फ्रांस की सह-अध्यक्षता में नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के 7वें सत्र में 120 सदस्य और हस्ताक्षरकर्ता देशों के मंत्री, मिशन प्रमुख और प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
- रणनीतिक फोकस: तीन दिवसीय कार्यक्रम में ऊर्जा पहुंच, सुरक्षा और सतत ऊर्जा समाधानों की ओर संक्रमण के लिए प्रयासों पर जोर दिया गया।
एग्रीवोल्टिक कृषि प्रणाली
- एग्रीवोल्टिक फ़ार्मिंग में एक ही भूमि का उपयोग कृषि और सौर ऊर्जा उत्पादन दोनों के लिए किया जाता है।
- 1981 में, इस तकनीक की कल्पना सर्वप्रथम एडोल्फ गोएट्ज़बर्गर और आर्मिन ज़ैस्ट्रो द्वारा की गई थी, जो संधारणीय कृषि में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।
- यह प्रणाली सौरयुक्त खेतों में एक सूक्ष्म-जलवायु का निर्माण करती है जो फसलों को चरम मौसमी परिस्थितियों से सुरक्षा प्रदान करती है, मृदा नमी के वाष्पीकरण को कम करती है और सौर पैनल की दक्षता को 2 से 6 डिग्री तक बढ़ाती है।
- एग्रो-PV संयंत्र खाद्य और गैर-खाद्य दोनों प्रकार की फसलों के लिए लाभकारी है। ये संयंत्र बागवानी फसलों, जैसे पत्तेदार सब्जियां, जड़ वाली सब्जियां, फलियां और जड़ी-बूटियों के लिए भी लाभकारी हैं।
यंत्रविन्यास और डिजाइन
पैनल विन्यास: फसलों के लिए इष्टतम छाया और चरम मौसमी परिस्थितियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए सौर पैनलों को आमतौर पर विशिष्ट कोण (आमतौर पर 30 डिग्री) पर धरातल से 2-3 मीटर ऊँचाई पर स्थापित किया जाता है।
सिस्टम प्रकार: तीन प्रकार के बुनियादी विन्यास होते हैं:
- इंटरलीव्ड एरे और फसलें
- फसलों/पशुधन के उत्थित एरे
- ग्रीनहाउस पर स्थापित एरे
प्रकाश प्रबंधन: फसलों को पर्याप्त प्रकाश उपलब्ध कराने के लिए पैनलों के बीच की दूरी का सावधानीपूर्वक निर्धारण किया जाता है।
अवसंरचनात्मक आवश्यकताएँ: सहायक संरचनाओं को कृषि मशीनरी तक पहुंच और धरातल पर विकिरण को एकसमान रूप से वितरित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
एग्रीवोल्टिक कृषि प्रणाली का महत्व
- भूमि के दोहरे उपयोग वाली यह प्रणाली स्थानीयकृत संचरण और वितरण सहित सौर ऊर्जा के लिए भूमि की कमी और अधिग्रहण के लिए एक सतत और विश्वसनीय समाधान प्रदान करती है।
- यह भूमि की कमी का सतत समाधान और सौर ऊर्जा के अधिग्रहण के माध्यम से भूमि उत्पादकता में 35 से 73 प्रतिशत तक सुधार करता है।
- यह मृदा में नमी की वृद्धि से मृदा अपरदन और भूमि क्षरण को कम करने में मदद करता है।
- इस प्रणाली से भूमि-उपयोग की तीव्रता में भी कमी आई तथा कृषि सम्बद्ध भूमि-उपयोग परिवर्तन से होने वाले उत्सर्जन में भी कमी आई।
- यह बिजली की बिक्री के माध्यम से किसानों के लिए राजस्व का एक अतिरिक्त स्रोत उत्पन्न करता है।
एग्रीवोल्टिक कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देने के कुछ उदाहरण
- दक्षिण कोरिया: फोटोवोल्टिक पैनलों के तहत ब्रोकोली की सफल खेती के परिणामस्वरूप गहरा हरा रंग और गुणवत्ता बरकरार रही।
- केन्या: रणनीतिक अंतराल के साथ ऊंचे सौर पैनल स्थापित करने से किसानों को पहले से अनुपयोगी भूमि पर उच्च मूल्य वाली फसलें उगाने में मदद मिलती है।
- फ़्रांस: अमांस में पायलट परियोजना में 5,000 से अधिक सौर पैनल लगाए जाएंगे जो दिन के समय अधिक प्रकाश वाले समय में 2.5 मेगावाट बिजली उत्पादन करने में सक्षम होंगे।
- जापान और चीन: सिद्ध आर्थिक व्यवहार्यता के साथ एग्रीवोल्टिक प्रणालियों के व्यावसायिक कार्यान्वयन में अग्रणी।
- भारत: विभिन्न परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं, जैसे अमरेली वितरित सौर ऊर्जा परियोजना (गुजरात), PM-कुसुम योजना के अंतर्गत जोधपुर (राजस्थान) में CAZRI संयंत्र।