संदर्भ: 

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act-CPA) के तहत सेवा में कमी के लिए अधिवक्ताओं (वकीलों) को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

पिछले निर्णय को बदला: न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के वर्ष 2007 के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) में अधिवक्ता (वकील) भी शामिल है।

  • इसका अर्थ यह है कि कोई भी मुवक्किल अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सेवा में कमी हेतु अधिवक्ताओं के विरुद्ध शिकायत दर्ज नहीं करा सकेंगे। 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA)

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को सबसे पहले वर्ष 1986 में अधिनियमित किया गया था, जिसे नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। भारत में व्यवसायों द्वारा अनुचित प्रथाओं के संरक्षण हेतु उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाये गए कानून का एक अहम हिस्सा है। 

प्रयोजन:

  • यह उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार प्रथाओं, दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं के साथ-साथ भ्रामक विज्ञापनों से बचाता है।
  • यह उपभोक्ताओं को शिकायतों का निवारण करने हेतु सशक्त बनाता है।

विधायी आशय: न्यायालय ने निर्णय में कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का मूल उद्देश्य कानून जैसी व्यावसायिक सेवाओं को कवर करना नहीं था।

  • यह अधिनियम विश्वास और प्रत्ययी कर्तव्य पर आधारित व्यावसायिक संबंधों को विनियमित करने के बजाय उपभोक्ताओं को व्यवसायों के अनुचित प्रथा से संरक्षण पर केंद्रित है।

विधिक सेवाओं की प्रकृति: इसमें न्यायालय ने कानूनी कार्य की अनूठी प्रकृति को मान्यता दी है। न्यायालय ने कहा कि इसके लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, इसमें वकील के पूर्ण नियंत्रण से परे कारक (जैसे कि साक्षी का व्यवहार) शामिल हैं, और अक्सर यह विशुद्ध रूप से शारीरिक (मैनुअल) कार्यों से परे होता है।  

व्यक्तिगत सेवा अनुबंध: न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिवक्ता मुवक्किल के साथ व्यक्तिगत सेवा अनुबंधों के तहत काम करते हैं। यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम द्वारा परिकल्पित मानकीकृत उपभोक्ता सेवा अनुबंधों से भिन्न है। साथ ही, मुवक्किलों का इस बात पर भी काफी हद तक नियंत्रण होता है कि अधिवक्ता उनके मामलों को किस प्रकार से आगे बढ़ाता हैं, जो कि प्रदान की गई सेवा की गतिशीलता को आकार देता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना: न्यायालय ने अपने निर्णय को और अधिक पुष्ट करते हुए कहा कि कई देश विधिक प्रतिनिधित्व जैसी व्यावसायिक सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण कानूनों से बाहर रखते हैं।

चिकित्सा पेशेवरों के समावेशन की समीक्षा: न्यायालय ने मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी.पी. शांतना के 1995 के निर्णय पर पुनर्विचार करने का संकेत दिया, जिसमें चिकित्सा पेशेवरों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शामिल किया गया था।

इससे व्यावसायिक सेवाओं में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू करने में संभावित व्यापक बदलाव का संकेत मिलता है।

सुमेलित मत: अंतरराष्ट्रीय कानून भी विधिक सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण नियमों से बाहर रखते हैं।

Also read :

मसाला बोर्ड ने एथिलीन ऑक्साइड को शामिल करने की सीमा को निर्धारित करने के लिए कोडेक्स से किया समझौता

Shares: