संदर्भ:
जैसे-जैसे वनाग्नि की घटनाएं अधिक होती जा रही है पृथ्वी का कार्बन संतुलन बिगड़ रहा हैं।
अन्य संबंधित जानकारी
एक अध्ययन के अनुसार, जैसे-जैसे वनाग्नि की घटनाएं बढ़ती जा रही है प्राकृतिक कार्बन के उन भंडारों की हानि होती जा रही हैं, जो ऐतिहासिक रूप से पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में मदद करते रहे हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के कई राज्य हाल ही में बवंडर, वनाग्नि और धूल के तूफान से प्रभावित हुए है।

यूरोपीय संघ की कोपरनिकस एयर मॉनिटरिंग सर्विस (CAMS) के अनुसार, जनवरी 2025 में जंगल की आग से 800,000 टन कार्बन उत्सर्जित हुई।
- इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि आग की विकिरण शक्ति, अर्थात् उनके द्वारा विकीर्ण की गई ऊष्मा की मात्रा, वाट में मापी जाती है।
- यह पाया गया कि यह विकिरण शक्ति 2003 और 2024 के बीच दीर्घकालिक औसत शक्ति से एक क्रम परिमाण से अधिक है।
अमेरिकी राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) द्वारा जारी 2024 आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि लगातार वनाग्नि आर्कटिक टुंड्रा को जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण प्रदूषण के रिकॉर्ड स्तर को अवशोषित करके कार्बन के स्रोत में बदल रही है।
आर्कटिक बोरियल ज़ोन (ABZ): कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत तक
ABZ- आर्कटिक सर्कल के आसपास टुंड्रा, शंकुधारी जंगलों और आर्द्रभूमि का एक विशाल विस्तार है।
पृथ्वी के महासागर, वन और मृदा प्रमुख कार्बन सिंक हैं।
ABZ सिंक से स्रोत की ओर मुड़ गया: आर्कटिक बोरियल ज़ोन (ABZ) ने 2001 से 2020 तक कार्बन को अवशोषित किया, इस ज़ोन का एक तिहाई हिस्सा 2001 से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहा है।
- अलास्का में ‘नए’ उत्सर्जन का 44% हिस्सा था, और उत्तरी यूरोप और साइबेरिया में क्रमशः 25% और 13% हिस्सा था।
वनाग्नि की बढ़ती प्रचंडता: नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 30% से अधिक ABZ ने अब कार्बन को ग्रहण करना बंद कर दिया है और इसके बजाय इसे छोड़ रहा है।
- अध्ययन के अनुसार ABZ में गैर-ग्रीष्मकालीन महीनों में कार्बन उत्सर्जन, ग्रीष्म महीनों (जून से अगस्त) के दौरान अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा से अधिक हो गया है।
ABZ एक कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में परिवर्तित हो गया, जिसे 2003 में रूस में पूर्वी साइबेरिया की आग और 2012 में कनाडा के टिमिन्स की वनाग्नि से बढ़ावा मिला है।
ABZ द्वारा अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने के प्रमुख कारण-
- टुंड्रा पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना
- शीत क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग के अधिक स्पष्ट प्रभाव
भारत में वनाग्नि का परिदृश्य
- दिसंबर 2024 में प्रकाशित भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार, उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गईं हैं।
- अकेले उत्तराखंड में नवंबर 2022 और जून 2023 के बीच 5,315 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गईं।
- देश भर में आग के ‘हॉटस्पॉट’ की संख्या 2021-2022 में 2.23 लाख से घटकर 2023-2024 में 2.03 लाख हो गई।
- आईआईटी-खड़गपुर और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे द्वारा 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और मध्य भारत में भूमि का तापमान प्री-मानसून सीज़न में प्रति दशक 0.1º–0.3ºC और पोस्ट-मानसून सीज़न में प्रति दशक 0.2º–0.4ºC बढ़ रहा है।
- भारत में वनाग्नि से प्रतिवर्ष लगभग 69 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है।