संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
संदर्भ: अरावली पहाड़ियों की संशोधित परिभाषा को लेकर राजनीतिक दलों, पर्यावरणविदों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों द्वारा किए गए व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद, उच्चतम न्यायालय ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस मामले को ‘अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की परिभाषा तथा संबंधित मुद्दे’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। इस पर देश की शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जानी है, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत कर रहे हैं और पीठ में न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी तथा न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। यह सुनवाई आज यानी 29 दिसंबर, सोमवार के दिन होनी है।
अरावली की परिभाषा से संबंधित पृष्ठभूमि:
• मई 2024: उच्चतम न्यायालय ने खनन के संदर्भ में चार राज्यों अर्थात गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के लिए अरावली की एक समान परिभाषा की मांग की।
• नवंबर 2025: पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नियुक्त समिति द्वारा अनुशंसित नई परिभाषा को उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है।

- “अरावली पहाड़ी” (Aravali Hill) को निर्दिष्ट अरावली जिलों में किसी भी ऐसे भू-आकृति के रूप में परिभाषित किया जाएगा, जिसकी ऊंचाई आसपास की स्थानीय जमीन के स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक हो।
- “अरावली पर्वतमाला” (Aravali Range) एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में स्थित ऐसी दो या दो से अधिक पहाड़ियों का समूह होगी।
• दिसंबर 2025: मंत्रालय ने चारों राज्यों (गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली) को आदेश दिया है कि वे अपनी सभी आधिकारिक फाइलों और भू-राजस्व रिकॉर्ड में 100 मीटर की ऊंचाई वाले मानक को तत्काल प्रभाव लागू करें-
- राज्यों को अरावली पर्वतमाला में कोई भी नया खनन पट्टा देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया गया है।
- भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को संपूर्ण अरावली पर्वतमाला के भीतर उन अतिरिक्त क्षेत्रों या जोन की पहचान करने का निर्देश दिया गया है जहाँ खनन को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए (केंद्र द्वारा वर्तमान में प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा)। यह पहचान पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और परिदृश्य-स्तरीय होगी। इसके साथ ही, परिषद को पूरे अरावली क्षेत्र के लिए ‘सतत खनन हेतु व्यापक और विज्ञान-आधारित प्रबंधन योजना’ (MPSM) तैयार करने का भी निर्देश दिया गया है।
अरावली पहाड़ियों की संशोधित परिभाषा की आवश्यकता
- सुरक्षा संबंधित चिंताएँ: ‘डाउन टू अर्थ’ के विश्लेषण से पता चला है कि यदि स्वीकृत परिभाषा को लागू किया जाता है, तो लगभग 50 प्रतिशत अरावली पहाड़ियाँ सुरक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगी, जिसमें सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र राजस्थान में है।
- खनन गतिविधियों का विस्तार: 100 मीटर के नियम के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण रणनीतिक और परमाणु खनिजों के खनन के लिए मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
- पर्यावरणीय दुष्प्रभाव: चूंकि अरावली दिल्ली-एनसीआर और पड़ोसी राज्यों की ओर मरुस्थलीय धूल के प्रसार को रोकने के लिए एक अवरोधक के रूप में कार्य करती है, इसलिए संरक्षित क्षेत्रों को सीमित करने से हवा की गुणवत्ता और धूल भरी आंधी की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों के महत्व की उपेक्षा: छोटी पहाड़ियों को सुरक्षा के दायरे से बाहर करने से पारिस्थितिक निरंतरता टूट जाती है, जिससे वायु प्रदूषण में वृद्धि होने, भूजल की कमी, आवास की हानि और मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है।
अरावली के संरक्षण के लिए की गईं पहल
- अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जून 2025 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में अरावली पर्वतमाला के चारों ओर 5 किमी चौड़ा ग्रीन बफर (हरित क्षेत्र) बनाना है।
- मातृ वन पहल: इसका उद्देश्य ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के हिस्से के रूप में अरावली क्षेत्र में एक विशाल शहरी वन विकसित करना है, जो बड़े पैमाने पर वनीकरण और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देता है।
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ: इस ऐतिहासिक फैसले में, उच्चतम न्यायालय ने अरावली पर्वतमाला के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हिस्सों में अवैध और अनियमित खनन पर सख्त प्रतिबंध और रोक लगा दी थी।
- एनजीटी (NGT) के हस्तक्षेप: राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अरावली में अवैध निर्माण, खनन और पत्थर तोड़ने (स्टोन क्रशिंग) की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कई आदेश जारी किए हैं और राज्यों को संरक्षण एवं बहाली योजनाएं तैयार करने का निर्देश दिया है।
