संदर्भ:

भारत ने 5 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस के साथ-साथ सहकारिता मंत्रालय की चौथी वर्षगांठ मनाई।

अन्य संबंधित जानकारी

  • यह आयोजन ऐसे वर्ष में हुआ जिसे वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मान्यता दी गई है।
  • इन दोनों का एक साथ आना विशेष रूप से आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India) दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में भारत की विकास योजनाओं में सहकारी मॉडल के बढ़ते महत्व को रेखांकित करता है।

भारत में सहकारी समितियों के लिए कानूनी प्रावधान

  • भारत में सहकारी समितियाँ केंद्र और राज्य दोनों कानूनों द्वारा शासित होती हैं।
  • मुख्य कानून सहकारी समिति अधिनियम, 1912 है जो एक से अधिक राज्यों की समितियों पर लागू होता है।
  • प्रत्येक राज्य में सहकारी समितियों के लिए अपना कानून है, जैसे महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम, 1960.
  • 97वें संविधान संशोधन (2011) द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा दिया गया ।
  • इसने संविधान में भाग IXB जोड़ा और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 43B (सहकारिता का संवर्धन) को शामिल किया।
  • सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को अनुच्छेद 19(1)(c) के तहत मूल अधिकार बना दिया गया।
  • बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 राज्यों में काम करने वाली सहकारी समितियों को नियंत्रित करता है।

भारत में सहकारिता:

  • भारत की लगभग 54% सहकारी समितियाँ तीन प्रमुख क्षेत्रों – आवास, डेयरी और ऋण से हैं।
  • कृषि और ग्रामीण सहकारी समितियां समय पर और पर्याप्त ऋण और उर्वरक की आपूर्ति करने तथा फसलों की खरीद में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • जबकि कुल अल्पावधि ऋण का लगभग 15%,  1 लाख प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के माध्यम से 13 करोड़ किसान सदस्यों को वितरित किया जाता है, भारत के कुल चीनी उत्पादन का 30%, उर्वरक वितरण का 35%, धान का 20% और गेहूं की 13% खरीद सहकारी समितियों के माध्यम से की जाती है।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में कुल प्रत्यक्ष रोजगार में सहकारी समितियों की हिस्सेदारी 13.3 प्रतिशत है।

MSME का महत्त्व

वर्ष 2006 में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 पारित किया गया था, जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी में निवेश के आधार पर परिभाषा मानदंड निर्धारित किए गए थे। वर्ष 2020 और 2025 के दौरान, टर्नओवर-आधारित मानदंडों को शामिल करने के लिए इन परिभाषाओं को संशोधित किया गया।

  • रोजगार सृजन:
    • MSMEs भारत में गैर-कृषि नौकरियों का सबसे बड़ा स्रोत हैं, खासकर अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समावेशी विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
    • डिजिटल उपकरणों और फिनटेक ने छोटे व्यवसायों के लिए वित्त तक पहुँच को आसान बना दिया है जिससे उनके लिए विकास के द्वार खुले हैं।
    • पीएम विश्वकर्मा और मुद्रा योजना (वित्त वर्ष 24 में स्वीकृत 5.41 लाख करोड़ रुपये) जैसी सरकारी योजनाओं ने स्वरोजगार को बढ़ावा दिया है।
    • भारत में 1 करोड़ से अधिक पंजीकृत MSMEs हैं, जो लगभग 7.5 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं।
  • जीडीपी में योगदान
    • MSMEs सकल घरेलू उत्पाद में 30% और विनिर्माण उत्पादन में 45% का योगदान करते हैं।
    •  वे कच्चे माल और मध्यवर्ती वस्तुओं की आपूर्ति करके बड़े उद्योगों का समर्थन करते हैं।
    • उद्यम पोर्टल पर 4 करोड़ MSMEs पंजीकृत हैं (मार्च 2024 तक), जिससे औपचारिक विकास को बढ़ावा मिला है।
  • निर्यात और विदेशी मुद्रा को बढ़ावा देना
    • MSMEs भारत के कुल निर्यात (2023-24) में 45.73% का योगदान देते हैं।
    • प्रमुख क्षेत्र: कपड़ा, चमड़ा, इंजीनियरिंग सामान।
    • PLI योजना और GeM पोर्टल उन्हें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल होने में मदद करते हैं।
  • डिजिटल होते MSMEs
    • MSME के 72% लेन-देन अब डिजिटल माध्यम से होते हैं।
    • ये ONDC और ₹1 लाख करोड़ के इनोवेशन फंड द्वारा समर्थित हैं।
    • एयरोस्पेस और फार्मा जैसे क्षेत्रों में तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है।
  • रोजगार एवं आजीविका सृजन
    • MSMEs भारत में लगभग 7.5 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं।
    • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों की मदद करते हैं।
    • पीएम विश्वकर्मा और मुद्रा योजना जैसी योजनाएं स्वरोजगार को बढ़ावा देती हैं।
  • महिला सशक्तिकरण और सामाजिक उद्यमिता
    • 68% मुद्रा ऋण महिलाओं को दिए गए हैं।
    • उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत MSMEs में से 20.5% का नेतृत्व महिलाएं कर रहीं हैं।
    • महिलाओं के नेतृत्व वाले MSMEs लैंगिक समानता और सामाजिक प्रभाव को बढ़ावा देते हैं।

भारत में सहकारिता के लिए चुनौतियाँ

  • कई सहकारी समितियों में ( मुख्यतः गांवों में) कुशल इमारतों और डिजिटल उपकरणों की कमी है, जो उनके काम और बाजार तक पहुंच को सीमित करता है।
  • बहुत अधिक सरकारी नियंत्रण और पुराने कानून उनकी स्वतंत्रता और सुचारू कामकाज को प्रभावित करते हैं।
  • कुप्रबंधन और भर्ती में पक्षपात से इन पर विश्वास कम होता है जिससे सहकारी समितियां पेशेवर ढंग से आगे नहीं बढ़ पाती हैं।
  • कमजोर वर्गों के लोगों को सहकारी समितियों में नेतृत्व और निर्णय लेने की भूमिका से बाहर रखा जाता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत के सकल घरेलू उत्पाद और औद्योगिक विकास में MSMEs की भूमिका के योगदान की जांच कीजिए। प्रकाश डालिए कि उद्यम पोर्टल जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से औपचारिकीकरण उनके प्रभाव को कैसे प्रभावित कर रहा है? (10अंक, 150शब्द)

स्रोत:

https://www.thehindubusinessline.com/opinion/how-cooperatives-can-boost-msme-potential/article69769477.ece

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