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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
संदर्भ:
हाल ही में, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 30वें कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (कॉप 30) का आयोजन ब्राज़ील के बेलेम में हुआ।
COP 30 के मुख्य परिणाम
- बेलेम हेल्थ एक्शन प्लान: इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना है। यह दो प्रमुख अंतर्व्यापी सिद्धांतों और अवधारणाओं पर आधारित है — स्वास्थ्य समानता और जलवायु न्याय, तथा सामाजिक भागीदारी के साथ जलवायु और स्वास्थ्य पर नेतृत्व एवं सुशासन।
- ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फ़ैसिलिटी (TFFF): इसका उद्देश्य सार्वजनिक और निजी निवेश के माध्यम से लगभग 125 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाना है। इस व्यवस्था के तहत, निवेश से प्राप्त रिटर्न का उपयोग उन देशों को भुगतान करने में किया जाएगा जो अपने वनों का संरक्षण करते हैं। ब्राज़ील ने इस सुविधा में सबसे पहले 1 अरब डॉलर का निवेश किया है।
- बेलेम पॉलिटिकल एग्रीमेंट: कार्यक्रम के अंतिम दिन प्रस्तुत किए गए पॉलिटिकल पैकेज के नए मसौदा पाठ ने चार लंबे समय से लंबित मुद्दों को किनारे कर दिया, जो इस प्रकार हैं:
- जलवायु-वित्त दायित्व: विकासशील देशों की यह मांग कि पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 में निहित वित्तीय प्रावधानों का पूर्ण रूप से पालन और क्रियान्वयन किया जाए।
- जलवायु-संबंधित व्यापार उपाय: भारत, चीन और कुछ अन्य विकासशील देशों ने उन व्यापारिक प्रतिबंधात्मक उपायों पर गंभीर चिंता जताई है, जिनका जलवायु से संबंध है — जैसे यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM)।
- 1.5°C लक्ष्य के प्रति सामूहिक प्रतिक्रिया/जीवाश्म ईधन: विकसित देश वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अधिक सुदृढ़ और उन्नत शमन कार्रवाइयों की मांग कर रहे हैं।
- ट्रांसपेरेंसी रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क: विकसित देशों द्वारा मुख्य रूप से उठाई गई यह मांग कि जलवायु कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
- सांता मार्टा सम्मेलन: इस सम्मेलन का उद्देश्य जीवाश्म ईंधनों के चरणबद्ध निष्कासन से जुड़े कानूनी, आर्थिक और सामाजिक आयामों की पड़ताल करना है — जिसमें व्यापार पर प्रभाव, सब्सिडी सुधार, व्यापक आर्थिक स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा का प्रसार और श्रमिकों के संक्रमण जैसी पहलू शामिल हैं।
- ओपन प्लैनेटरी इंटेलिजेंस नेटवर्क (OPIN): इसे डेटा इंटरऑपरेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया है। यह महत्वपूर्ण डिजिटल तकनीकों को एकीकृत करके वैश्विक जलवायु परिवर्तन-परिवर्तन (क्लाइमेट ट्रांसफॉर्मेशन) की गति को तेज़ करने में मदद करेगा।
- ग्लोबल एथिकल स्टॉकटेक (GES): इस पहल का उद्देश्य वैश्विक जलवायु कार्रवाई एजेंडा में नैतिक और सदाचार संबंधी विचारों तथा नागरिक समाज के दृष्टिकोण को शामिल करना है। इसका एशिया संस्करण इस वर्ष सितंबर में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था।
- बेलेम 4x प्रतिबद्धता: यह कई देशों द्वारा की गई वह प्रतिबद्धता है, जिसके तहत 2035 तक टिकाऊ ईंधनों के उत्पादन और उपयोग को चार गुना बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि ऊर्जा संक्रमण की प्रक्रिया को तेज़ किया जा सके।
- नेशनल अडैप्टेशन प्लान (NAP) इम्प्लीमेंटेशन अलायंस: यह COP30 एक्शन एजेंडा के अंतर्गत तैयार किए गए प्लान टू एक्सेलरेट सॉल्यूशंस (PAS) का एक प्रमुख घटक है। इस अलायंस का उद्देश्य NAPs के क्रियान्वयन में सहयोग देने वाले संगठनों के बीच समन्वय को तेज़ करना तथा राष्ट्रीय अनुकूलन प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक और निजी निवेश को सक्रिय रूप से जुटाना है।
- ग्लोबल मुतिराओ एग्रीमेंट: इस प्रस्ताव का उद्देश्य प्रतिबद्धताओं और वास्तविक क्रियान्वयन के बीच के अंतराल को काम करना है। यह ब्राज़ील द्वारा COP30 के लिए प्रस्तुत एक महत्वपूर्ण खाका है, जिसका केंद्र ऊर्जा, वित्त और व्यापार के क्षेत्रों में प्रगति को तीव्र गति से आगे बढ़ाना है।
- ग्लोबल इम्प्लीमेंटेशन ट्रैकर एवं बेलेम मिशन टू 1.5°C: ग्लोबल इम्प्लीमेंटेशन ट्रैकर विभिन्न देशों की जलवायु कार्रवाइयों की निगरानी करेगा। बेलेम मिशन टू 1.5°C यह मूल्यांकन करने में सहायता करेगा कि क्या राष्ट्रीय प्रयास वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के लक्ष्य के अनुरूप हैं।
- जलवायु वित्त प्रतिबद्धताएँ: देशों ने वैश्विक जलवायु कार्रवाई को समर्थन देने के लिए वर्ष 2035 तक प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू 2035 तक अनुकूलन वित्त को तीन गुना बढ़ाने का निर्णय है, जिससे जलवायु-संवेदनशील देशों में लचीलापन को सुदृढ़ किया जा सके।
COP 30 पर भारत का दृष्टिकोण
- जलवायु वित्त दायित्व: विकसित देशों पर कानूनी दायित्व है कि वे जलवायु वित्त उपलब्ध कराएँ — वह भी बड़े पैमाने पर, पूर्वानुमानित तथा रियायती रूप में, ताकि ट्रिलियन-डॉलर स्तर की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
- उन्नत नेट-ज़ीरो समयसीमाएँ: विकसित देशों को अपनी नेट-ज़ीरो लक्षित समयसीमाओं को और आगे लाना चाहिए तथा पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के तहत निर्धारित अपने सभी वित्तीय दायित्वों को पूर्ण रूप से पूरा करना चाहिए।
- समानता और समान किन्तु विभेदित दायित्व एवं संबंधित क्षमताएँ (CBDR-RC): वैश्विक जलवायु कार्रवाई को समानता, CBDR-RC और जलवायु न्याय को अपने मूलभूत सिद्धांतों के रूप में बनाए रखना चाहिए।
- निष्पक्ष बहुपक्षीय व्यापार प्रथाएँ: जलवायु-संबंधित व्यापार नीतियों में एकपक्षीय कदमों से बचना चाहिए, ताकि वे विकासशील देशों के लिए प्रतिकूल न हों और बहुपक्षीय सहयोग के सिद्धांतों के अनुरूप बनी रहें।
- अनुकूलन और क्रियान्वयन पर प्रबल ध्यान: COP30 को अनुकूलन और प्रभावी क्रियान्वयन को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके लिए सुदृढ़ किए गए ग्लोबल गोल ऑन अडैप्टेशन, UAE–बेलेम वर्क प्रोग्राम और बाकू अडैप्टेशन रोडमैप का सहयोग आधार बनेगा।
कॉप 30 के समक्ष चुनौतियाँ
- जीवाश्म ईंधनों के चरणबद्ध निष्कासन पर कोई बाध्यकारी सहमति नहीं: सम्मेलन जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने पर किसी बाध्यकारी प्रतिबद्धता को सुरक्षित नहीं कर सका; अंतिम चरण की वार्ताओं में प्रस्तावित भाषा को हटा दिया गया।
- जलवायु वित्त अंतराल: वर्षों पुराना 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष का जलवायु वित्त लक्ष्य अब भी अधूरा है। औसत वार्षिक योगदान अभी भी लगभग 60 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास ही है, जिससे एक बड़ी कमी बनी हुई है।
- सख्त प्रवर्तन उपायों का अभाव: कई देशों ने अंतिम समझौतों में अनिवार्य उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों और सुदृढ़ प्रवर्तन तंत्रों की अनुपस्थिति को रेखांकित किया।
- भू-राजनीतिक और वार्तागत चुनौतियाँ: राजनीतिक मतभेदों और भू-राजनीतिक तनावों ने अधिक महत्वाकांक्षी परिणामों की संभावनाओं को सीमित कर दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जलवायु परिवर्तन पर एकीकृत वैश्विक कार्रवाई प्राप्त करना अभी भी अत्यंत कठिन बना हुआ है।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)
- UNFCCC एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे 1992 में अपनाया गया था, जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को स्थिर करके जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रियाओं का समन्वय करना है।
- यह 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल और 2015 के पेरिस समझौते जैसे बाद के समझौतों की मूल संधि है, और इसका सचिवालय बॉन, जर्मनी में स्थित है।
- अंतिम उद्देश्य जलवायु प्रणाली में मानवजनित खतरनाक हस्तक्षेप को रोकना है।
Sources:
The Hindu
Indian Express
BBC
