संदर्भ:

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) के CoP16 में भारत का औपचारिक वक्तव्य दिया।

UNCCD COP16 के बारें में 

UNCCD के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP16) का सोलहवां सत्र 2 से 13 दिसंबर 2024 तक सऊदी अरब के रियाद में आयोजित किया जा रहा है।

विषय: हमारी भूमि, हमारा भविष्य (“Our Land. Our Future”)। 

COP 16 वर्ष 2018-2030 रणनीतिक ढांचे का मध्यावधि मूल्यांकन करेगा और UNCCD के द्विवार्षिक बजट को अपनाएगा।

UNCCD की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित होने वाला COP16, अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त राष्ट्र भूमि सम्मेलन होगा।

  • यह मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में आयोजित होने वाला पहला UNCCD COP भी होगा, जो मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के प्रभावों को सीधे अनुभव करता है।  

यह वैश्विक महत्वाकांक्षा को बढ़ाने और जन-केंद्रित दृष्टिकोण के माध्यम से भूमि और सूखे के प्रतिरोधकता  पर कार्रवाई में तेजी लाने के लिए एक ऐतिहासिक आयोजन होगा।  

COP16 से भूमि पुनर्स्थापन और सूखे से निपटने की नई पहलों को उत्प्रेरित करने की उम्मीद है। 

यह G20 वैश्विक भूमि पहल के साथ-साथ सऊदी और मध्य पूर्व हरित पहल  के लिए मंच के रूप में कार्य करेगा। 

COP 16 में भारत का दृष्टिकोण 

भारत ने भूमि क्षरण, पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्स्थापन  और जैव विविधता संवर्धन के लिए  एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें जिसमें इस वर्ष 1 बिलियन से अधिक पौधे लगाने के साथ “एक पेड़ माँ के नाम ” अभियान की शुरूआत भी शामिल है। 

भारत इस सिद्धांत में विश्वास करता है कि भूमि सभी जीवन रूपों द्वारा साझा की जाती है। 

  • भारत वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि को पुनर्स्थापन  करने के लिए इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस और बॉन चैलेंज जैसी पहल कर रहा है, जिनमें से 22.50 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि को पहले ही पुनर्स्थापित  किया जा चुका है।

भारत सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से भूमि बहाली के लिए “संपूर्ण सरकार” और “संपूर्ण समाज” दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिसमें हरित भारत मिशन  जैसे कार्यक्रम तथा पारंपरिक ज्ञान और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

भारत सूखे से निपटने की क्षमता को मजबूत करने तथा पूर्व चेतावनी प्रणालियों में सुधार के लिए सहयोग को प्रोत्साहित करता है, जिसमें जल संरक्षण के लिए अमृत सरोवर तथा बंजर भूमि के पारिस्थितिकी पुनरुद्धार के लिए ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम जैसी पहल शामिल हैं।

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