संदर्भ:

विश्व सूखा एटलसके अनुसार, वर्ष 2050 तक वैश्विक जनसंख्या का लगभग 75% भाग सूखे से प्रभावित होगा। 

अन्य संबंधित जानकारी: 

विश्व सूखा एटलसको मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) और यूरोपीय आयोग संयुक्त अनुसंधान केंद्र (EC-JRC) द्वारा जारी किया गया था। 

  • इसे रियाद में UNCCD के COP16 में जन-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ पृथ्वी और सूखे के लचीलेपन पर वैश्विक कार्रवाई को बढ़ावा देने हेतु जारी किया गया था। 

इस एटलस का निर्माण सीमा रिसर्च फाउंडेशन (इटली), व्रिजे यूनिवर्सिटी एम्स्टर्डम (नीदरलैंड) और यूएन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड ह्यूमन सिक्योरिटी (जर्मनी) के साथ मिलकर किया गया है। एटलस की मुख्य विशेषताएं:

  • जलवायु परिवर्तन तथा भूमि और जल संसाधनों के असंतुलित प्रबंधन के कारण वर्ष 2000 के बाद से सूखे में 29% की वृद्धि हुई है। 
  • यह ऊर्जा, व्यापार और कृषि पर सूखे के प्रभावों पर प्रकाश डालता है।  इस बात पर बल देता है कि सूखा केवल एक जलवायु घटना नहीं है, बल्कि मानव कारकों, जैसे- अस्थिर जल उपयोग, खराब भूमि प्रबंधन और अकुशलजल संसाधन प्रबंधन से भी बढ़ जाता है। 
  • सूखा जल विद्युत उत्पादन को कम कर सकता है, जिससे ऊर्जा की कीमतें उच्च या बिजली की आपूर्ति बाधित  हो सकती है।  जल स्तर कम होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधित हो सकता है, जिससे अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है (उदाहरण- पनामा नहर)।
  • डेटा साझाकरण, सूखे के लिए प्रारंभिक चेतावनी और पूर्वानुमान प्रणालियों में निवेश को सूखे के प्रभावों को कम करने और लचीलापन बनाने के लिए आवश्यक माना जाता है। 

भारत का दृष्टिकोण:

  • यह एटलस विशेष रूप से भारत में सूखे से संबंधित फसल की विफलता की बेहतर समझ की आवश्यकता बताई गई  है, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में, जो 25 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। 
  • यह सूखे की स्थिति के कारण सोयाबीन की पैदावार में होने वाले संभावित  नुकसान पर प्रकाश डालता है और चेन्नई में जल संकट पर ध्यान आकर्षित करता है, जिसे खराब जल संसाधन प्रबंधन और शहरीकरण के कारण वर्ष 2019 में “डे जीरो” जल संकट का सामना करना पड़ा। 
  • डे ज़ीरो उस महत्वपूर्ण बिंदु को संदर्भित करता है जिस पर किसी शहर की जल  आपूर्ति लगभग पूरी तरह से समाप्त होने की भविष्यवाणी की जाती है, जिससे नल सूख जाते हैं और समुदाय संकट में आ जाते हैं।
  • एटलस में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2020 और वर्ष 2023 के बीच भारत में तनाव बढ़ गया, जो आंशिक रूप से जल संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण हुआ।

मुख्य सिफारिशें: 

एटलस में सूखे से निपटने के लिए बताए गए उपाय निम्न तीन श्रेणियों में आते हैं: 

  • शासन (जैसे- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, छोटे किसानों के लिए लघु बीमा, जल के उपयोग हेतु मूल्य निर्धारण योजनाएं); 
  • भूमि उपयोग प्रबंधन (जैसे- भूमि पुनर्स्थापन और कृषि वानिकी); 
  • जल आपूर्ति और इसके उपयोग का प्रबंधन (जैसे- अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग, प्रबंधित भूजल पुनर्भरण और संरक्षण।)

राष्ट्रों को सक्रिय और एकीकृत सूखा जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को अपनाना चाहिए। 

  • यह सूखे के जोखिमों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और कम करने के लिए सरकार, व्यवसाय और समाज के सभी स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में बदलाव की आवश्यकता  है। 

वर्ष 2022 में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय सूखा लचीलापन गठबंधन (IDRA) इस बात पर बल देता है कि उचित मृदा और कृषि विज्ञान प्रबंधन फसलों पर सूखे के प्रभाव को महत्त्वपूर्ण रूप से कम कर सकता है। 

यह गठबंधन वित्त जुटाने, ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देने और स्थायी, प्रभावशाली कार्यवाहियां तैयार करने पर केंद्रित है। 

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