संदर्भ:
बैंकों को बड़ी राहत देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने प्रस्तावित तरलता कवरेज अनुपात (LCR) के कार्यान्वयन को (एक वर्ष) 31 मार्च, 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया है।
अन्य संबंधित जानकारी
- RBI ने जुलाई 2024 में एक मसौदा परिपत्र जारी किया, जिसके अनुसार बैंकों को 1 अप्रैल 2025 से LCR को लागू करने के लिए अधिक धनराशि अलग रखनी होगी।
- प्रस्तावित LCR नियमों के तहत बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली तरल परिसंपत्तियों (HQLA) का उच्च अनुपात रखना होगा, जिसमें मुख्य रूप से सरकारी बांड शामिल होंगे, ताकि मुद्रा की अचानक निकासी के कारण संभावित तरलता संकट का प्रबंधन किया जा सके।
- इस संशोधित LCR मानदंडों के कारण बैंकों को कॉरपोरेट्स और व्यक्तियों को ऋण देने के बजाय सरकारी बांड खरीदने के लिए लगभग ₹4 लाख करोड़ का निवेश करना पड़ेगा।
- सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बैंकों ने RBI से इन मानदंडों को स्थगित करने का अनुरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे वित्तीय प्रणाली में तरलता संकट पैदा हो जाएगा।
तरलता कवरेज अनुपात (LCR) के बारें में
LCR को 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद बेसल III सुधारों के तहत पेश किया गया था।
तरलता कवरेज अनुपात (liquidity coverage ratio) वित्तीय संस्थाओं द्वारा रखी गई उच्च गुणवत्ता वाली तरल परिसंपत्तियों (HQLA) के अनुपात को संदर्भित करता है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपने अल्पकालिक दायित्वों (अर्थात 30 दिनों के लिए नकदी बहिर्वाह) को पूरा करने की निरंतर क्षमता बनाए रखें।
- HQLA को RBI द्वारा तरल परिसंपत्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिन्हें आसानी से बेचा जा सकता है या बिना किसी मूल्य हानि के तुरंत नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है या तनावपूर्ण स्थितियों में मुद्रा प्राप्त करने के लिए संपार्श्विक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
गणना: LCR = [उच्च-गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (HQLA)] / (30 दिनों में कुल शुद्ध नकदी बहिर्वाह) ×100
LCR का उद्देश्य बाजार-व्यापी जोखिम का पूर्वानुमान लगाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय संस्थाएं उनसे निपटने में सक्षम हों।
LCR का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों के पास तरलता में किसी भी अल्पकालिक व्यवधान से निपटने के लिए पर्याप्त स्तर की पूंजी हो।
भारत में, RBI ने 2014 में अंतिम दिशानिर्देश जारी किए और 2015 से 1 जनवरी 2019 के बीच इसे लागू किया।
प्रारंभ में बैंकों को 60 प्रतिशत HQLA बनाए रखना पड़ता था, जिसे बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया।
इसके अतिरिक्त, सभी सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) योग्य परिसंपत्तियां, जिन्हें बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत बैंकों द्वारा बनाए रखना अनिवार्य है, यदि वे अधिक हों, तो उन्हें तरलता कवरेज अनुपात (LCR) आवश्यकताओं के तहत उच्च गुणवत्ता वाली तरल परिसंपत्तियां (HQLA) माना जा सकता है।