संदर्भ:

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India – RBI) ने भारतीय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए विदेशों में रुपया खाते खोलने की अनुमति दी है।

मुख्य बातें

  • रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए आरबीआई की रणनीतिक योजना: आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में स्थानीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार के निपटान को सक्षम बनाने हेतु भारतीय मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए विनियमों को युक्तिसंगत बनाने की दिशा में किए गए प्रयासों को रेखांकित किया है।
  • बाह्य वाणिज्यिक उधार: आरबीआई की रणनीतिक योजना में बाह्य वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowing – ECB) फ्रेमवर्क को सरल बनाना शामिल है।
    बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) का अर्थ भारतीय संस्थाओं द्वारा लिए गए उन ऋणों से है, जो विदेशी ऋणदाताओं से विदेशी मुद्रा में ऋण प्राप्त करती हैं।

भारत के बाहर रुपया खाता खोलना 

  • घरेलू मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 की रणनीतिक योजना के हिस्से के रूप में, आरबीआई भारत से बाहर रहने वाले व्यक्तियों (Persons Resident Outside India – PROIs) को देश के बाहर रुपया खाता खोलने की अनुमति देगा।
  • इस रिपोर्ट में, भारतीय बैंकों द्वारा पीआरओआई को रुपया उधार देने की सुविधा प्रदान करने तथा विशेष गैर-निवासी रुपया (Special Non-Resident Rupee – SNRR) खाता और विशेष रुपया वास्ट्रो खाता (Special Rupee Vostro Account – SRVA) जैसे विशेष खातों के माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और पोर्टफोलियो निवेश को सक्षम करने का भी उल्लेख किया गया है।
बिन्दुविशेष अनिवासी रुपया (SNRR) खाताविशेष रुपया वास्ट्रो खाता (SRVA)
खाता धारकभारत से बाहर रहने वाला व्यक्तियों (PROIs) भारत में किसी अधिकृत डीलर (AD) बैंक में यह खाता खोल सकता है।साझेदार देश का नामित बैंक भारत में किसी अधिकृत डीलर (AD) बैंक में यह खाता खोल सकता है।
उद्देश्ययह भारत और भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति (PROI) के देशों के बीच निर्यात और आयात के लिए व्यापार निपटान, एफडीआई, पीआरओआई द्वारा भारत में पोर्टफोलियो निवेश और रुपये में मूल्यवर्गित ईसीबी सहित रुपये में विशिष्ट सीमा पार लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है।मुख्य रूप से, इसका उपयोग भारत और साझेदार देश के बीच रुपये में व्यापार लेनदेन का निपटान करने के लिए किया जाता है।
फ़ायदेंयह पीआरओआई को रुपया-मूल्यवर्गित लेनदेन में शामिल होने में सक्षम बनाता है, व्यापार निपटान के लिए परिवर्तनीय विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता को कम करता है, और खाता शेष पर अर्जित ब्याज जैसे संभावित लाभ प्रदान करता है।यह रुपये में व्यापार लेनदेन का तेजी से और अधिक कुशल निपटान करना, भारतीय और साझेदार देश दोनों की संस्थाओं के लिए विदेशी मुद्रा जोखिम को कम करना और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए रुपये के उपयोग को बढ़ावा देने में सहायता करता है

मुख्य अंतर:

  • खाताधारक: विशेष अनिवासी रुपया (SNRR) खाता भारत से बाहर रहने वाले व्यक्तियों (Persons Resident Outside India – PROIs) के लिए उपलब्ध है, वहीं विशेष रुपया वास्ट्रो खाता (SRVA) साझेदार देशों के नामित बैंकों के लिए उपलब्ध है।
  • उद्देश्य: एसएनआरआर रुपया लेनदेन की एक व्यापक श्रेणी को पूरा करता है, जबकि एसआरवीए व्यापार निपटान पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत की मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण

  • यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार निपटान (आयात और निर्यात भुगतान) और विदेशी निवेश आदि के लिए अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में रुपये के उपयोग को बढ़ाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।

भारतीय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के फायदें

  • इससे व्यापार के लिए विदेशी मुद्राओं (जैसे डॉलर आदि) पर निर्भरता कम हो जाती है, जिससे भारतीय व्यवसायों के लिए मुद्रा जोखिम न्यूनतम हो जाता है।
  • इससे भारतीय व्यवसायों के लिए लेन-देन की लागत कम हो जाती है, जिससे बेहतर विकास संभव होता है, तथा भारतीय व्यवसायों के लिए वैश्विक स्तर पर विकास की संभावनाएँ बेहतर होती हैं।
  • इससे रुपये की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ेगी और भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

चुनौतियाँ:

  • अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए मुद्रा के प्रयोग से इसकी विनिमय दर में अस्थिरता की संभावना बढ़ सकती है, जो विशेष रूप से प्रारंभिक चरणों में देखने को मिल सकती है।
  • रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से वैश्विक बाजारों में भारतीय मुद्रा की माँग बढ़ सकती है, जिससे अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपया मजबूत हो सकता है। इससे वैश्विक स्तर पर भारतीय उत्पादों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • वर्तमान में, रुपया पूर्ण विनिमय साध्य नहीं है, क्योंकि इसमें पूँजी खाता लेनदेन पर विशेष प्रतिबंध हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्त में इसका उपयोग सीमित है।

सिफारिशें 

अल्पकालिक

  • रुपये और स्थानीय मुद्राओं में चालान (इनवॉयस), निपटान और भुगतान को शामिल करते हुए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिए एक मानकीकृत दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए।
  • भारत में और भारत से बाहर रहने वाले गैर-निवासियों को रुपया खाता खोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

मध्यकालिक: 

  • सीमा पार व्यापार के लिए रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (Real Time Gross Settlement – RTGS) के अंतरराष्ट्रीय उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • वैश्विक बॉण्ड सूचकांक में भारतीय सरकारी बॉण्ड को शामिल करना चाहिए।   

दीर्घकालिक: 

  • रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विशेष आहरण अधिकार (SDR) बास्केट में शामिल करने की दिशा में कार्य करना चाहिए।

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