संदर्भ:
हाल ही में, पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दी है। इसमें उन्होंने अपने विरुद्ध प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आरोपपत्र पर संज्ञान लेने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को रद्द करने की माँग की गई है।
अन्य संबंधित जानकारी
याचिकाकर्ताओं ने EDद्वारा उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों पर संज्ञान लेने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय के 6 नवंबर के बिभु प्रसाद आचार्य मामले के दिए गये निर्णय का संदर्भ दिया है।
बिभु प्रसाद आचार्य मामले में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी
उपरोक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि पूर्व स्वीकृति PMLA के अंतर्गत कथित अपराधों पर भी लागू होगा।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की टिप्पणियाँ PMLA की धारा 65 और 71 पर आधारित थी।
- उच्चतम न्यायालय के अनुसार धारा 65 PMLA मामलों में असंगत प्रावधानों के अपवाद के साथ CrPC के प्रावधानों के अनुप्रयोग की सुविधा प्रदान करती है, इसलिए धारा 71 (1) CrPC के प्रावधानों पर अधिभावी नहीं हो सकती है।
“पूर्व स्वीकृति” से संबंधित कानूनी प्रावधान
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 / भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 197 :
- यह प्रावधान न्यायालयों को किसी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते समय कथित रूप से किए गए अपराधों का संज्ञान लेने से रोकता है, जब तक कि सरकार द्वारा पूर्व अनुमोदन या “पूर्व” मंजूरी न दी गई हो।
- इसमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न और मानव तस्करी जैसे महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामलों को अपवाद में रखा गया है।
- इस नियम को लोक सेवकों को अनुचित अभियोजन से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) की धारा 19(1)
किसी लोकसेवक द्वारा किए गए अपराधों का संज्ञान लेने से पहले न्यायालय को सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है, जैसे: –
- रिश्वत लेना (धारा 7) या
- पर्याप्त प्रतिफल के बिना अनुचित लाभ प्राप्त करना (धारा 11)।
अभियोजन शुरू होने से पहले लोक सेवक को सरकार द्वारा सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
PCA की संशोधित धारा 17A (2018) के अंतर्गत, किसी लोक-सेवक द्वारा अपने कर्तव्यों के दौरान की गई किसी भी सिफारिश या निर्णय की जाँच सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना नहीं की जा सकती है।