संदर्भ:
उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि स्नातकोत्तर (PG) चिकित्सा प्रवेश के लिए अधिवास-आधारित (domicile-based) आरक्षण असंवैधानिक तथा यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
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फैसले की मुख्य बातें
1. समानता के अधिकार का उल्लंघन:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अधिवास-आधारित आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्राप्त समानता के अधिकार के विरुद्ध है।
- इसने माना कि सभी भारत के सभी नागरिक का एक ही अधिवास- भारत – है, तथा राज्य-आधारित अधिवास आरक्षण नागरिकों के बीच कृत्रिम असमानताएँ पैदा करता है।
2. PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में किसी भी प्रकार के अधिवास-आधारित आरक्षण का नहीं होना:
- राज्य के कोटे की सीटें अखिल भारतीय PG प्रवेश परीक्षा के माध्यम से योग्यता के आधार पर ही भरी जानी चाहिए।
- हालाँकि MBBS प्रवेश के लिए सीमित मात्रा में अधिवास-आधारित आरक्षण की अनुमति हो सकती है, लेकिन अत्यधिक कुशल विशेषज्ञों की आवश्यकता के कारण यह PG चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए मान्य नहीं हैं।
- यह फैसले वर्ष 1984 के डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ मामले के अनुरूप है, जिसमें यह भी माना गया था कि PG स्तर पर अधिवास-आधारित आरक्षण अस्वीकार्य है।
3. राष्ट्रीय हित के विरुद्ध:
- न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि डॉक्टरों को भारत में कहीं भी अध्ययन और प्रैक्टिस करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, ताकि सभी राज्यों में विशेष चिकित्सा सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित हो सके।
4. MBBS प्रवेश में सीमित आरक्षण का औचित्य:
- न्यायालय ने चिकित्सा अवसंरचना के निर्माण में राज्य के निवेश, स्थानीय आवश्यकताओं और क्षेत्रीय पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए MBBS पाठ्यक्रमों के लिए आरक्षण को उचित ठहराया है।
- हालाँकि, ये बातें PG स्तर पर लागू नहीं होतीं है, क्योंकि इस स्तर पर चिकित्सा पेशेवर अत्यधिक कुशल होते हैं और उनसे पूरे देश की सेवा करने की अपेक्षा की जाती है।
फैसले के निहितार्थ
- PG मेडिकल प्रवेश अब पूर्णतः अखिल भारतीय परीक्षा द्वारा निर्धारित योग्यता पर निर्भर करेगा, जिससे सभी के लिए निष्पक्षता और समान पहुँच सुनिश्चित होगी।
- इस फैसले से अधिवास-आधारित आरक्षण समाप्त हो गया है, तथा प्रत्येक राज्य के छात्रों को PG मेडिकल सीटें प्राप्त करने का समान अवसर प्राप्त हुआ है।
- राज्यों को इस फैसले के अनुपालन हेतु अपनी नीतियों में समायोजन करना होगा तथा अधिवास-आधारित आरक्षण प्रणाली को हटाना होगा।
- इस फैसले से अधिवास-आधारित आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत होने वाले प्रवेश अप्रभावित रहेंगे।
- यह फैसले योग्यता आधारित, प्रतिस्पर्धी माहौल को बढ़ावा देने के साथ-साथ अनुच्छेद 14 के अंतर्गत समानता सुनिश्चित करता है तथा चिकित्सा शिक्षा की समग्र गुणवत्ता में सुधार लाता है।
अनुच्छेद 14
भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लेखित समानता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी देता है।
इसमें उल्लेखित है कि “राज्य भारत के क्षेत्र में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।”
इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो, कानून से समान व्यवहार का हकदार है तथा उसके पास देश के कानूनों के तहत समान सुरक्षा का अधिकार है।
- कानून के समक्ष समानता: इसका तात्पर्य यह है कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा तथा समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करेगा।
- कानून का समान संरक्षण: इसका तात्पर्य यह है कि जब व्यक्ति समान स्थितियों या परिस्थितियों में हों, तब उसके साथ समान व्यवहार होना चाहिए।
- “वर्ष 1960 के उत्तर प्रदेश राज्य बनाम देवमन उपाध्याय मामले में, न्यायमूर्ति सुब्बा राव ने असहमति व्यक्त करते हुए टिप्पणी की कि अनुच्छेद 14 में “सकारात्मक सामग्री” के साथ-साथ “नकारात्मक सामग्री” दोनों शामिल हैं। हालाँकि, अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता नकारात्मक है, जबकि कानूनों का समान संरक्षण अनुच्छेद 14 की सकारात्मक सामग्री है।”