संदर्भ:
हाल ही में, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) ने लद्दाख में मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) वेधशाला का उद्घाटन किया है।
मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) वेधशाला के बारे में
एमएसीई एक इमेजिंग एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव टेलीस्कोप (IACT) है, जो भारत के लद्दाख के हानले डार्क स्काई रिजर्व (HDSR) में स्थित है।
- इमेजिंग एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव टेलीस्कोप (IACT) एक बड़े एपर्चर वाला टेलीस्कोप है, जो अप्रत्यक्ष रूप से वायुमंडल में मौजूद गामा किरणों का पता लगाता है।
एमएसीई (MACE) एशिया का सबसे बड़ा IACT है। 4,300 मीटर की ऊँचाई पर होने के कारण यह विश्व में अपनी तरह सबसे अधिक ऊँचाई स्थित टेलीस्कोप भी है।
इस टेलीस्कोप का निर्माण भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) और अन्य भारतीय उद्योग भागीदारों के सहयोग से स्वदेशी रूप से किया गया है।
- डॉ. होमी जे. भाभा ने बहुविषयक अनुसंधान कार्यक्रम के लिए जनवरी, 1954 में परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्रॉम्बे (AEET) की स्थापना की। वर्ष 1966 में उनकी मृत्यु के बाद, AEET का नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) कर दिया गया।
मेस (MACE) दूरबीन में सम्मिलित हैं:
- 356 वर्ग मीटर का एक बड़ा क्षेत्र वाला टेसेलेटेड प्रकाश संग्राहक, जो 356 दर्पण पैनलों से बना है।
- वायुमंडलीय चेरेनकोव घटनाओं का पता लगाने एवं उनके लक्षण-वर्णन हेतु लगभग 1200 किलोग्राम भार का उच्च-विभेदन प्रतिबिंबन कैमरा।
- इस टेलीस्कोप का वजन लगभग 180 टन है और यह छह पहियों पर स्थित है, जो 27 मीटर व्यास वाले ट्रैक पर चलते हैं।
- इसमें एक एकीकृत इमेजिंग कैमरा लगा है, जो 1088 फोटो मल्टीप्लायर पिक्सेल वाला कैमरा हैं।
MACE टेलीस्कोप का कार्य
- गामा किरणें पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुँच पातीं है क्योंकि वे वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाती हैं।
- वायुमंडल के साथ संपर्क के कारण उच्च ऊर्जा वाले कण उत्पन्न होते हैं, जो प्रकाश की गति से भी अधिक तेज गति से गमन करते हैं और चेरेनकोव विकिरण उत्सर्जित करते हैं जो ध्वनि बूम के समान है।
- दर्पण और कैमरे इन फ्लैश (दीप्तों) को कैद कर लेते हैं और उन्हें उनके ब्रह्मांडीय स्रोत तक वापस ले जाते हैं।
परियोजना का महत्व
- MACE परियोजना भारत की अंतरिक्ष और ब्रह्मांडीय किरणों संबंधी अनुसंधान क्षमताओं को बेहतर बनाने में मददगार होने के साथ-साथ लद्दाख के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी सहायक होगी।
- यह उच्च ऊर्जा वाली गामा किरणों का अवलोकन करेगी, जिससे यह ब्रह्मांड में सर्वाधिक ऊर्जावान परिघटनाओं, जैसे अधिनव तारा (सुपरनोवा), कृष्ण विवर (ब्लैक होल) और गामा-किरणों के विस्फोटों को समझने के वैश्विक प्रयासों में मदद करेगी।
- यह परिसर वैश्विक वेधशालाओं की भी पूरक होगी, तथा बहु-संदेशवाहक खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करेगी।
- यह भारतीय खगोलविदों, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने में भी मदद करेगी।
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