संदर्भ: 

हाल ही में, न्यायाधीशों को लेकर हुए विवाद के कारण अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) के माध्यम से अधिक पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया की मांग की गई है। 

न्यायपालिका में हालिया विवाद

  • केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति वी. चिताम्बरेश ने ब्राह्मण समुदाय की “स्वच्छ आदतों” और “उच्च विचारों” के लिए प्रशंसा करते हुए विवादास्पद बयान दिया।
  • पूर्व राजनीतिक नेता और मद्रास उच्च न्यायालय के नवनियुक्त न्यायाधीश लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी ने ईसाइयों और मुसलमानों के बारे में विवादास्पद टिप्पणी की। 
  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर आग लग गई, जिसके बाद कथित तौर पर वहां नोटों से भरी बोरियां पाई गईं।

वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया

उच्च न्यायालय:

  • संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार उच्च न्यायालय (HC) के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाएगी।
  • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (CJ) के अलावा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भी मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किया जाता है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अपने दो वरिष्ठतम सहयोगियों से परामर्श करना होता है। 
  • उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय में न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करता है।
  • केंद्रीय कानून मंत्री इस प्रस्ताव पर विचार करते हैं और उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से सलाह मांगते हैं जिसमें मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। इसके बाद कानून मंत्री सिफारिशें प्रधानमंत्री को भेजते हैं।  
  • प्रधानमंत्री नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देते हैं, जिसके बाद विधि मंत्रालय राजपत्र में अधिसूचना जारी करता है।

अधीनस्थ न्यायिक प्रणाली:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 233 और 234 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित हैं।
  • जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्य लोक सेवा आयोगों और संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है।
  • परीक्षा के बाद, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का पैनल उम्मीदवारों का साक्षात्कार लेता है और नियुक्ति के लिए उनका चयन करता है। 

वर्तमान न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में कमियां

  • न्यायिक उम्मीदवारों के नाम कॉलेजियम के चयन के बाद ही सार्वजनिक किए जाते हैं, जिससे नियुक्तियों को अंतिम रूप देने से पहले सार्वजनिक प्रतिक्रिया की कोई संभावना नहीं रहती।
  • सरकार कॉलेजियम से महत्वपूर्ण जानकारी रोक सकती है, जिससे चयन प्रक्रिया पर अपनी पसंद के पक्ष में प्रभाव डालने की संभावना बनती है, जो न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है। 
  • न्यायिक चयन के लिए कोई मानकीकृत, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध मानदंड नहीं है, जिसके कारण मनमाने निर्णय की संभावना बनी रहती है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) 

  • 42वें संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 312 में AIJS के गठन का प्रावधान किया गया है। 
  • संबंधित प्रस्ताव को राज्य सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
  • AIJS का उद्देश्य सभी राज्यों में निचली न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की भर्ती को केंद्रीकृत करना है, विशेष रूप से अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों और जिला न्यायाधीशों जैसे पदों के लिए। 

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) की आवश्यकता 

  • AIJS एक पूर्णकालिक, स्वतंत्र निकाय बनाएगा जो न्यायिक उम्मीदवारों का मूल्यांकन योग्यता, ईमानदारी, न्यायिक स्वभाव और सामाजिक संवेदनशीलता जैसे स्पष्ट मानदंडों के आधार पर करेगा। इससे भाई-भतीजावाद समाप्त होगा।
  • शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करके न्यायपालिका की समग्र गुणवत्ता में सुधार लाना, विशेष रूप से अधीनस्थ न्यायपालिका में, जो उच्च न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक प्रमुख स्रोत है। 
  • न्यायाधीशों की कमी और उसके कारण लंबित न्यायिक मामलों की समस्या का समाधान। AIJS उच्च न्यायालय और  उच्चतम न्यायालय दोनों में सेवा देने के लिए सक्षम उम्मीदवारों को आकर्षित करके इस मांग को पूरा करने में मदद करेगा।
  • हाशिए पर पड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाएगा और न्यायपालिका में विविधता सुनिश्चित करेगा।

AIJS के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • न्यायपालिका, विशेषकर कॉलेजियम प्रणाली की ओर से प्रतिरोध, जो चिंतित है कि AIJS न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
  • सरकार का राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का प्रस्ताव 2015 में उच्चतम न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था, और प्रक्रिया पत्र (MoP) को अंतिम रूप देने में हुई देरी ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है।
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