संदर्भ:
हाल ही में, डाक विभाग ने कित्तूर रानी चेन्नम्मा के कित्तूर विजयोत्सव की 200वीं वर्षगाँठ के अवसर पर एक स्मारक टिकट जारी किया।
रानी चेनम्मा के बारे में
- कित्तूर की रानी, कित्तूर चेन्नम्मा, 1824 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व करने वाले पहले भारतीय शासकों में से एक थीं, जिन्होंने व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse) के कार्यान्वयन का विरोध किया था।
- वर्ष 1824 से, प्रत्येक वर्ष अक्टूबर में उनकी वीरता और विरासत के स्मरण में ‘कित्तूर उत्सव’ का आयोजन किया जाता है।
प्रारंभिक जीवन
- उनका जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को भारत के कर्नाटक राज्य के वर्तमान बेलगावी जिले के एक गाँव काकती (Kakati) में हुआ था।
- वे लिंगायत समुदाय से थीं और उन्होंने छोटी-सी उम्र में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरंदाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था, जिससे उन्हें अपनी बहादुरी के लिए ख्याति मिली।
- उनका विवाह 15 वर्ष की आयु में कित्तूर के राजा मल्लसर्ज देसाई (Mallasarja Desai) से हुआ, और वह रानी बन गईं।
- उनका एक पुत्र था, लेकिन उनके पति और पुत्र दोनों की मृत्यु हो गई। उनके पति की मृत्यु वर्ष 1816 में तथा पुत्र की मृत्यु वर्ष 1824 में हुई।
- इन त्रासदियों के बाद, चेन्नम्मा ने शिवलिंगप्पा (Shivalingappa) को गोद ले लिया, तथा उसे कित्तूर के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शिवलिंगप्पा को कित्तूर के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया और व्यपगत के सिद्धांत के अनुसार उन्हें निर्वासित करने का आदेश दिया।
- इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी शासक की मृत्यु बिना किसी पुरुष उत्तराधिकारी के हो जाती थी तो उस रियासत का विलय कर लिया जाता था।
- भारतीय शासकों ने इसे अपने पारंपरिक अधिकारों का हनन करने वाले एक अनैतिक और एकपक्षीय नीति के रूप में देखा।
कारावास और मृत्यु
- अक्टूबर, 1824 में, पहली लड़ाई के दौरान, उसकी सेना ने अंग्रेजों को हरा दिया, उनके सेनानायक सेंट जॉन थैकरे को मार डाला और दो अधिकारियों को बंधक बना लिया।
- इसके उपरांत हुई वार्त्ता विश्वासघात वाली वार्त्ता साबित हुई। इसके बाद अंग्रेजों की एक बड़ी सेना में वापस से आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में रानी चेन्नम्मा को पकड़ लिया गया और उन्हें बैलहोंगल के किले (Bailhongal Fort) में आजीवन कैद कर दिया गया।
- उन्होंने अपने अंतिम पाँच वर्ष वहीं कैद में बिताए तथा 21 फरवरी, 1829 को उनकी मृत्यु हो गयी।
- उनकी समाधि (दफ़न स्थल) बैलहोंगल तालुका में स्थित है और इसका रखरखाव, मुख्यतः ‘कित्तूर उत्सव’ और ‘कन्नड़ राज्योत्सव’ के दौरान, सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
विरासत और स्मरणोत्सव
- बी.आर. पंथुलु द्वारा निर्देशित कित्तुरु चेनम्मा नामक एक ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म में उनके जीवन को दर्शाया गया है।
- उनके सम्मान में बैंगलोर और कोल्हापुर को जोड़ने वाली भारतीय रेलवे ट्रेन का नाम रानी चेन्नम्मा एक्सप्रेस रखा गया है।
- 11 सितम्बर, 2007 को भारत की पहली महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा नई दिल्ली स्थित भारतीय संसद परिसर में रानी चेनम्मा की प्रतिमा का अनावरण किया गया।