संदर्भ :

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिक्स देशों में जीवाश्म ईंधन क्षमता 2024 के अंत तक उनकी कुल स्थापित बिजली क्षमता के आधे से भी कम हो जाएगी।

अन्य संबंधित जानकारी

  • ब्रिक्स समूह, जिसमें मूल रूप से ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे, का हाल ही में विस्तार करके इसमें ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, इथियोपिया और मिस्र को शामिल किया गया है। 
  • ब्रिक्स विश्व की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है तथा विश्व के सकल घरेलू उत्पाद और CO2 उत्सर्जन में एक तिहाई का योगदान देता है।

ब्रिक्स देशों द्वारा की गई पहल 

  • ब्रिक्स देश कुल 1,550 गीगावाट क्षमता की पवन और सौर परियोजनाएं विकसित कर रहे हैं, जो जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं की क्षमता से दोगुनी से भी अधिक है।
  • वर्ष 2024 में चीन, भारत और ब्राजील में 190 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता विकसित की है, जबकि 2024 तक 72 गीगावाट नई जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य है।
  • ब्रिक्स देश 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में लगभग तीन गुना वृद्धि करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जो कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के 28वें सम्मेलन (COP28) में निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा में तीन गुना वृद्धि करने और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के भीतर रखने का लक्ष्य रखा गया है।
  • 2024 के अंत तक ब्रिक्स के पास जीवाश्म ईंधन से 2,245 गीगावाट की तुलना में लगभग 2,289 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता होगी।

नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि:     

2030 तक तीन गुना क्षमता: वर्तमान विकास प्रवृत्तियों से पता चलता है कि ब्रिक्स देशों की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 2030 तक 2.5 गुना से अधिक वृद्धि होगी ।

  • निर्माणाधीन या योजना के चरण में पवन और उपयोगिता-स्तरीय सौर परियोजनाओं की कुल क्षमता अब 1,550 गीगावाट है।

प्रमुख निवेश : पवन, सौर और जल विद्युत में पर्याप्त निवेश के साथ, ब्रिक्स देश नवीकरणीय ऊर्जा विकास में अग्रणी हैं।

वैश्विक तुलना : यूरोपीय संघ ने 2010 के प्रारंभ में 50% नवीकरणीय ऊर्जा हिस्सेदारी हासिल कर ली थी, वहीं जी7 पिछले वर्ष ये उपलब्धि हासिल की है, जो ब्रिक्स की तीव्र प्रगति को दर्शाता है।

भविषयोगमी चुनौतीयाँ 

  • इथियोपिया को छोड़कर सभी ब्रिक्स देश वर्तमान में कोयला, तेल या गैस परियोजनाएं विकसित कर रहे हैं, जिससे कोयले के लिए जीवाश्म ईंधन क्षमता में 36% तथा तेल एवं गैस क्षमता में 53% की वृद्धि का खतरा उत्पन्न हो सकता है। 

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