संदर्भ:

हाल ही में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने संसद से बाल सगाई या बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया, जिसमें कहा गया कि ये बच्चों के पसंद और बचपन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

बाल अधिकारों पर उच्चतम न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियां:

यह निर्णय बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल देता है।   इसका उद्देश्य बाल विवाह को रोकने  के लिए  रूपरेखा प्रदान करना है।

  • बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत  (बाल विवाह को  अपराध मानता है) 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़कों को ‘बालक’ माना जाता है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “महिलाओं के प्रति  सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर सम्मेलन (CEDAW) जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून नाबालिगों की सगाई के खिलाफ प्रावधान करते हैं”

उच्चतम न्यायालय के अनुसार  किसी बच्चे की अल्पवयस्कता में तय की गई शादी से उसकी स्वतंत्र पसंद, स्वायत्तता, स्वतंत्रता और बचपन के अधिकारों का भी उल्लंघन होता है।

  • बाल विवाह  संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है ।

उच्चतम न्यायालय के अनुसार  बाल विवाह निषेध अधिनियम के अधिनियमित होने के बाद से भारत में बाल विवाह का प्रचलन  आधा हो गया है, जो वर्ष 2015-16 में 47% से घटकर 27% और वर्ष 2019-2021 में 23.3% हो गई।  

कार्यान्वयन के लिए मुख्य दिशानिर्देश:

  • कानूनी प्रवर्तन: न्यायालय ने बाल विवाह की निगरानी और रोकथाम के लिए जिला स्तर पर  बाल विवाह रोकथाम अधिकारियों (CMPOs) की नियुक्ति का आदेश दिया है।
  • राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा त्रैमासिक जानकारी: प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश  व्यक्तिगत जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए बाल विवाह रोकथाम अधिकारियों की त्रैमासिक रिपोर्ट को अपनी आधिकारिक वेबसाइटों पर डालेंगे ।
  • मंत्रालयों द्वारा निष्पादन समीक्षा: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय बाल विवाह रोकथाम पहलों की प्रभावशीलता का आंकलन करने के लिए बाल विवाह रोकथाम अधिकारियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के त्रैमासिक निष्पादन समीक्षा  करेगा। 
  • जिला स्तरीय जिम्मेदारी: बाल विवाह को रोकने की जिम्मेदारी जिला स्तर पर तय की गई है, जिससे स्थानीय कार्रवाई और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
  • विशेष पुलिस इकाई की स्थापना: बाल विवाह को रोकने तथा कानूनों के प्रवर्तन को बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने के लिए एक विशेष पुलिस इकाई की स्थापना की जाएगी।
  • लापरवाही के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई: बाल विवाह के मामलों में अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने वाले किसी भी लोक सेवक के खिलाफ  अनुशासनात्मक कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

भारत में बाल विवाह की स्थिति पर यूनिसेफ का मत: 

विश्व की तीन में से एक बाल वधू  भारत में रहती है।

  • बाल वधुओं में 18 वर्ष से कम आयु की वे लड़कियां शामिल हैं जो पहले से ही विवाहित हैं, साथ ही सभी आयु वर्ग की वे महिलाएं भी शामिल हैं जिनकी पहली शादी बचपन में हुई थी।

भारत में बचपन में विवाह करने वाली आधी से अधिक लड़कियां और महिलाएं पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश) से संबंधित हैं। 

  • उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या सबसे अधिक है।

लगभग चार में से एक युवती (23 प्रतिशत) अपनी 18वें  जन्मदिवस से पहले ही विवाहित थी या सगाई हो चुकी थी।

भारत में बाल विवाह का प्रचलन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भिन्न-भिन्न है।

  • पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा में कम से कम 40 प्रतिशत युवतियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले ही हो जाता  है, जबकि लक्षद्वीप में यह आंकड़ा 1 प्रतिशत है।

बाल वधुओं को अपनी शिक्षा जारी रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

  • 10 में से 2 से भी कम विवाहित लड़कियां स्कूल जा पाती  हैं। 

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