संदर्भ:

ETH ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि ऊपरी वायुमंडल में लाखों टन हीरे के चूर्ण  (डायमंड डस्ट) का छिड़काव करने से पृथ्वी को ठंडा करने और भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) को कम करने  में मदद मिल सकती है।

अन्य संबंधित जानकारी   

  • भू-अभियांत्रिकी (जियो-इंजीनियरिंग) समाधान के अनुसार, 45 वर्षों की अवधि में प्रति वर्ष 5 मिलियन टन हीरे के चूर्ण को समताप मंडल में छिड़कने से हमारा ग्रह 1.6 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो सकता है।
  • सल्फर, कैल्शियम, एल्युमीनियम और सिलिकॉन जैसी अन्य योगिकों  का उपयोग  भी  प्रस्तावित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य शीतलन में भूमिका निभाने वाले सौर विकिरण को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करना है। 
  • इन सामग्रियों के अतिरिक्त, सूर्य की रोशनी को पृथ्वी से दूर परावर्तित करने के लिए अंतरिक्ष में दर्पण लगाने के विचार को भी एक अन्य प्रभावी भू-अभियांत्रिकी विकल्प के रूप में खोजा गया है।
  • इन नवीन विचारों के बावजूद, वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। जिसके कारण वर्तमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान अधिक है तथा वर्ष 2023 में यह लगभग 1.45 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जाएगा।
  • वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में उल्लिखित तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को पूरा करने हेतु, वैश्विक उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक वर्ष 2019 के स्तर से कम से कम 43 प्रतिशत कम करना होगा।

भू-अभियांत्रिकी के बारे में   

  • भू-अभियांत्रिकी (जियोइंजीनियरिंग) वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने के लिए पृथ्वी की जलवायु को बदलने के उद्देश्य से किए जाने वाले  प्रयास को संदर्भित करता है।
  • इसकी  दो मुख्य रणनीतियों  में सौर विकिरण प्रबंधन (SRM) और कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR) शामिल है।

सौर विकिरण प्रबंधन (SRM) के बारे में

एसआरएम की प्रक्रिया में अंतरिक्ष में ऐसी सामग्री को परिनियोजित करना शामिल है जो आने वाली सौर किरणों को परावर्तित कर उन्हें पृथ्वी तक पहुँचने से रोकती है।

यह प्राकृतिक घटनाओं जैसे ज्वालामुखी विस्फोट  से निकलने वाले  सल्फर डाइऑक्साइड के से प्रेरित है, जो वायुमंडल में छोटे-छोटे कणों का निर्माण करता है तथा  सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है और पृथ्वी को अस्थायी रूप से ठंडा करता है।

  • उदाहरण के लिए, वर्ष 1991 में माउंट पिनाटूबो (Mount Pinatubo) के विस्फोट के कारण वैश्विक तापमान में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस की कमी आई थी।

शोधकर्ताओं ने इस प्राकृतिक शीतलन प्रभाव की पुनरावृति हेतु एसआरएम के लिए सल्फर, कैल्शियम और सोडियम क्लोराइड जैसी विभिन्न योगिकों  पर विचार किया है।   

एसआरएम में आने वाली चुनौतियाँ    

  • तकनीक और लागत संबंधी चुनौतियाँ: एसआरएम के क्रियान्वयन में तकनीक और लागत संबंधी चुनौतियाँ आती हैं।
  • अनपेक्षित परिणाम: प्राकृतिक प्रक्रियाओं में बदलाव के कारण अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिल सकते हैं, जिससे वैश्विक और क्षेत्रीय मौसम पैटर्न और वर्षा वितरण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ सकता है।  
  • नैतिक चिंताएँ: प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाली सूर्य के प्रकाश के स्तर में परिवर्तन से कृषि, वनस्पति और जैव- विविधता के नुकसान होने के साथ-साथ कुछ प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR) के बारे में

सीडीआर तकनीक के माध्यम से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को हटाया जाता हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • कार्बन कैप्चर और सीक्वेस्ट्रेशन (CCS): इसमें कारखानों/उद्योगों से निकलने वाले CO2 उत्सर्जन को एकत्रित करके  उन्हें भूमिगत रूप से संगृहीत करना शामिल है।
  • कार्बन कैप्चर और उपयोग (CCU): इसमें एकत्रित  की गई CO2 का विभिन्न प्रकार के औद्योगिक इस्तेमाल के लिए उपयोग करना शामिल है।
  • कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS): इसमें CO2 का उपयोग और भंडारण दोनों शामिल है।
  • प्रत्यक्ष वायु कैप्चर (DAC): इसमें भंडारण या उपयोग के लिए बड़े “कृत्रिम पेड़ों” का उपयोग करके हवा से CO2 का निष्कर्षण शामिल है।

कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन प्रौद्योगिकियों से संबंधित चुनौतियाँ   

  • कार्बन कैप्चर और सीक्वेस्ट्रेशन (CCS) से संबंधित समस्याएँ: ऑक्सफोर्ड और इंपीरियल कॉलेज (लंदन) के अध्ययनों के अनुसार, वर्ष 2050 तक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए CCS पर बहुत अधिक निर्भर रहना अव्यावहारिक और बहुत महँगा (संभवतः 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक) हो सकता है। 
  • भंडारण सीमाएँ: कैप्चर की गई CO2 को संगृहीत करने के लिए सुरक्षित स्थान ढूँढना अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।

महासागर  उर्वरीकरण  (Ocean fertilization)

यह एक भू-अभियांत्रिकी पद्धति है, जिसका उद्देश्य फाइटोप्लांकटन की वृद्धि को बढ़ावा देकर महासागरीय अम्लीकरण और वैश्विक तापमान में कमी लाना है, जो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से CO2 को ऑक्सीजन में परिवर्तित करता है।

  • पृथ्वी  के प्रकाश संश्लेषण का लगभग 50 प्रतिशत कार्यसूक्ष्म वनस्पति प्लवक (फाइटोप्लांकटन) द्वारा होता  हैं।

जिस प्रकार पौधों की वृद्धि के लिए बगीचों में उर्वरक डाला जा सकता है, उसी प्रकार फाइटोप्लांकटन को तेजी से बढ़ने और अधिक CO2 के अवशोषण में मदद करने हेतु विभिन्न उर्वरकों को महासागरों में डाला जा सकता है।

भू-अभियांत्रिकी (जियोइंजीनियरिंग) का भविष्य

  • इससे संबंधित कठिनाइयों और चुनौतियों के बावजूद, भू-अभियांत्रिकी शोध का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे एसआरएम और सीडीआर जैसी विधियों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
  • संभवतः, जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इन तकनीकों के किसी न किसी रूप की आवश्यकता होगी। भविष्य में भू-अभियांत्रिकी के क्रियान्वयन के परिणामों की खोज जारी रखना और उन पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है।

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