संदर्भ: 

हाल ही में, वियतनाम और कंबोडिया से लौटे केरल के एक 75 वर्षीय व्यक्ति में जीवाणुजनित रोग म्यूरिन टाइफस (Murine Typhus) की पुष्टि   हुई है।

अन्य संबंधित जानकारी       

  • उनके यात्रा इतिहास पर विचार करने के बाद, डॉक्टरों ने नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग (Next Generation Sequencing-NGS) जैसे उन्नत नैदानिक  विधियों का उपयोग करके रोग की पुष्टि की, जिसमें माइक्रोबियल डीएनए का उपयोग किया जाता है। 
  • यह केरल में दुर्लभ जीवाणुजनित रोग का पहला मामला है।

म्यूरिन टाइफस (Murine Typhus) के बारे में

  • म्यूरिन टाइफस (स्थानिक टाइफस या पिस्सू जनित धब्बेदार बुखार )एक संक्रामक रोग है जो पिस्सू जनित बैक्टीरिया रिकेट्सिया टाइफी के कारण होता है। 
  • यह संक्रमित पिस्सू (Flea) के काटने से मनुष्यों में फैलता है।
  • चूहे, मूषक और नेवले जैसे कृदंतक  इस रोग के  वाहक हैं। ये संक्रमित पिस्सू अन्य छोटे स्तनधारियों (बिल्ली,कुत्ता इत्यादि घरेलू पालतू जानवर) के शरीर पर भी जीवित रह सकते हैं।   
  • उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों में म्यूरिन टाइफस के मामले देखने को मिलते है, क्योंकि यहाँ चूहे बहुतायत में पाए जाते हैं।  
  • पूर्वोत्तर भारत , मध्य प्रदेश और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में भी इसके मामले सामने आए हैं।

संचरण:

  • इसका  संचरण  मुख्यतः रिकेट्सिया टाइफी (Rickettsia Typhi) को फैलाने वाले संक्रमित पिस्सू के काटने से होता है।  पिस्सू का मल मनुष्य के त्वचा के किसी घाव, खरोंच या श्लेष्मा झिल्ली के संपर्क में आता है, तो वह मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है।   
  • यह रोग प्रत्यक्ष रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में या एक व्यक्ति से दूसरे पिस्सू में नहीं फैलता है।

लक्षण     

  • म्यूरिन टाइफस का लक्षण संक्रमण के 7 से 14 दिन बाद दिखाई देते हैं तथा इसके सामान्य लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, शरीर और जोड़ों में दर्द, मतली, उल्टी और पेट का दर्द शामिल हैं।
  • सामान्यतः यह रोग दो सप्ताह में ठीक हो जाती है, लेकिन अनुपचारित मामलों में (उपचार न करने की स्थिति में) जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं और रोग कई महीनों तक बना  रह सकता  है।

उपचार और रोकथाम

  • वर्तमान में, इस रोग के उपचार हेतु कोई टीका (वैक्सीन) उपलब्ध नहीं है।
  • इस रोग के उपचार  में एंटीबायोटिक डॉक्सीसाइक्लिन (Antibiotic Doxycycline) को प्रभावी माना जाता है, लेकिन इसके  लिए रोग की शीघ्र पहचान  होना महत्वपूर्ण है।
  • समय पर उपचार न मिलने  पर यह रोग एक या दो सप्ताह में गंभीर रूप ले सकता है तथा कुछ मामलों में यह घातक भी हो सकता है।
  • इसके निवारक उपायों के रूप में, खाद्य पदार्थों को समुचित तरीके से भंडारित करना और ढककर रखना चाहिए तथा कृन्तकों को घरों से, विशेष रूप से रसोईघर से दूर रखना चाहिए।

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